नाग स्तोत्र

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नाग स्तोत्र नाग देवताओ के नौ अवतारो को सम्बोधन करने के उद्देश्य से रचित है, इस स्तोत्र में विभिन्न नाग देवताओ के नाम के साथ स्तुति कर भक्त नाग देवो को प्रसन्न करता है, क्योंकि यहि वो निम्नलिखित नागो के नाम है जो इस पृथ्वी के भार को अपने मणि पर ग्रहण किये हुए है। इसलिये ये हमारा परम् कर्तव्य है की हम नाग देवता को इस स्तोत्र के माध्यम से उनका धन्यवाद करे।

स्तोत्र[संपादित करें]

नाग स्तोत्र कुछ इस प्रकार से है :

अनंतं वासुकि शेष पद्मनाभं च कम्बलम्।

शड्खपाल धार्तराष्ट्र तक्षकं कालियं तथा।।

एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।

सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातः काले विशेषतः।।

तस्मे विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयीं भवेत्।

भावार्थ[संपादित करें]

नाग स्तोत्र का भावार्थ यहि है की जो इस स्तोत्र का पठन-पाठन प्रतिदिन करता है वो जिस क्षेत्र में जाता है उसे विजय प्राप्त होति है और उसके सारे मनोकामना पुर्ण होते हैं।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]