नरसिंह प्रथम
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नरसिंह प्रथम (कन्नड़: ಒಂದನೆ ನರಸಿಂಹ) (शासनकाल 1152–1173 ई॰) होयसल साम्राज्य के शासक थे। उनकी मुख्य विरासत उनके अधिपति पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य के राजा तैलप तृतीय पर उनकी जीत है। इस जीत के बल पर उनके उत्तराधिकारी द्वारा स्वतंत्रता की घोषणा का मार्ग प्रशस्त हुआ। हालांकि वो कलचुरि सामंत बिज्जाला द्वितीय के सामने असफल रहे। नरसिंह प्रथम को उनके पुत्र वीर बल्लाल द्वितीय ने अपदस्थ किया।
शासन
[संपादित करें]नरसिम्हा प्रथम के सेनापति हुल्ला ने सन् 1163 ई॰में जिननाथपुरा (श्रवणबेलगोला के पास) में एक दान-गृह और सन् 1159 ई॰ में भंडारा बसदी का निर्माण कराया।[1][2]
सन्दर्भ
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[संपादित करें]- ↑ Singh 2008, p. 84.
- ↑ Sangave 1981, p. 18.
स्रोत
[संपादित करें]- Dr. Suryanath U. Kamat, A concise history of Karnataka from pre-historic times to the present, Jupiter Books, MCC, Bangalore, 2001 (Reprinted 2002) OCLC: 7796041
- Singh, Ram Bhushan Prasad (2008) [1975], Jainism in Early Medieval Karnataka, मोतीलाल बनारसीदास, ISBN 978-81-208-3323-4
- Sangave, Vilas Adinath (1981). The Sacred ʹSravaṇa-Beḷagoḷa: A Socio-religious Study. मूर्तिदेवी ग्रंथमाला. Vol. 8. मुम्बई: भारतीय ज्ञानपीठ. ISBN 9789326355599.
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