ध्यान (क्रिया)
ध्यान एक क्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने मन को चेतना की एक विशेष अवस्था में लाने का प्रयत्न करता है। ध्यान का उद्देश्य कोई लाभ प्राप्त करना हो सकता है या ध्यान करना अपने-आप में एक लक्ष्य हो सकता है। 'ध्यान' से अनेकों प्रकार की क्रियाओं का बोध होता है। इसमें मन को विशान्ति देने की सरल तकनीक से लेकर आन्तरिक ऊर्जा या जीवन-शक्ति (की, प्राण आदि) का निर्माण तथा करुणा, प्रेम, धैर्य, उदारता, क्षमा आदि गुणों का विकास आदि सब समाहित हैं।
अलग-अलग सन्दर्भों में 'ध्यान' के अलग-अलग अर्थ हैं। ध्यान का प्रयोग विभिन्न धार्मिक क्रियाओं के रूप में अनादि काल से किया जाता रहा है।
यौगिक ध्यान[संपादित करें]
महर्षि पतंजलि के योगसूत्र में ध्यान भी एक सोपान है।
चित्त को एकाग्र करके किसी एक वस्तु पर केन्द्रित कर देना ध्यान कहलाता है। प्राचीन काल में ऋषि मुनि भगवान का ध्यान करते थे। ध्यान की अवस्था में ध्यान करने वाला अपने आसपास के वातावरण को तथा स्वयं को भी भूल जाता है। ध्यान करने से आत्मिक तथा मानसिक शक्तियों का विकास होता है। जिस वस्तु को चित में बांधा जाता है उस में इस प्रकार से लगा दें कि बाह्य प्रभाव होने पर भी वह वहाँ से अन्यत्र न हट सके, उसे ध्यान कहते है।
ध्यान से लाभ[संपादित करें]
ऐसा पाया गया है कि ध्यान से बहुत से मेडिकल एवं मनोवैज्ञानिक लाभ होते हैं।
बेहतर स्वास्थ्य
- शरीर की रोग-प्रतिरोधी शक्ति में वृद्धि
- रक्तचाप में कमी
- तनाव में कमी
- स्मृति-क्षय में कमी (स्मरण शक्ति में वृद्धि)
- वृद्ध होने की गति में कमी
उत्पादकता में वृद्धि
- मन शान्त होने पर उत्पादक शक्ति बढती है; लेखन आदि रचनात्मक कार्यों में यह विशेष रूप से लागू होता है।
आत्मज्ञान की प्राप्ति
- ध्यान से हमे अपने जीवन का उद्देश्य समझने में सहायता मिलती है। इसी तरह किसी कार्य का उद्देश्य एवं महत्ता का सही ज्ञान हो पाता है।
छोटी-छोटी बातें परेशान नहीं करतीं
- मन की यही प्रकृति (आदत) है कि वह छोटी-छोटी अर्थहीन बातों को बड़ा करके गंभीर समस्यायों के रूप में बदल देता है। ध्यान से हम अर्थहीन बातों की समझ बढ जाती है; उनकी चिन्ता करना छोड़ देते हैं; सदा बडी तस्वीर देखने के अभ्यस्त हो जाते हैं।
दिव्य दर्शन :- प्राचीन समय में ऋषि मुनि और संत लोग ध्यान लगाकर अपने आराध्य देव के दर्शन प्राप्त करते थे और उनसे अपने समस्या का हल भी पुछा करते थे , यह आज के समय में भी संभव है , उदहारण के तौर पर स्वामी राम कृष्ण परमहंस अपने आराध्य देवी काली से ध्यान के द्वारा साक्षात् बाते करते थे |
चिंता से छुटकारा[संपादित करें]
वैज्ञनिकों के अनुसार ध्यान से व्यग्रता का ३९ प्रतिशत तक नाश होता है और मस्तिष्क की कार्य क्षमता बढ़ती है। बौद्ध धर्म में इसका उल्लेख पहले से ही मिलता है।[1] अनंत समाधि को प्राप्त करना / मोक्ष प्राप्त करना - ध्यान एक भट्टी के सामान है जिसमे हमारे जन्म जन्मांतरों की पाप भस्म हो जाती है , और हमें अनंत सुख और आनद प्राप्त होता है |
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ "साइंटिस्ट्स डिकोड हाउ मैडिटेशन रिलिव्ज एंग्जायटी". (वाशिंगटन): द हिन्दू. 5 जून 2013. अभिगमन तिथि 5 जून 2013.
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
- What are 5 ways to Meditate? MEDITATION
- ध्यान (attention)
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
- ध्यान
- ध्यान मुद्रा Archived 2013-12-09 at the Wayback Machine (योगवाणी)
- ओशो ध्यान - यहाँ ध्यान की तरह-तरह के ध्यान का वर्णन है।
- विवेक जी और ध्यान Archived 2014-07-29 at the Wayback Machine - यहाँ विभिन्न ध्यान के आयामों और अलग अलग प्रकार के ध्यान सम्बन्ध में चर्चा समाहित है
ध्यान क्या है Archived 2022-02-23 at the Wayback Machine [[1]] दिव्य दर्शन :- प्राचीन samay में ऋषि मुनि और संत लोग ध्यान लगाकर अपने आराध्य देव क दर्शन प्राप्त करते थे और उनसे अपने समस्या का हल भी पुछा करते थे , यह आज के समय में भी संभव है , उदहारण क्र तौर पर स्वामी राम कृष्ण परमहंस अपने आराध्य देवी काली स ध्यान के द्वारा साक्षात् बाते करते थे |