धूमावती
धूमावती अखतज़ापडी | |
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संबंध | महाविद्या, देवी |
अस्त्र | सुप |
जीवनसाथी | धूमवान |
धूमावती पार्वती का एक रूप है मां धूमावती के प्राकट्य से संबंधित कथाएं अनूठी हैं। पहली कहानी तो यह है कि जब सती ने पिता के यज्ञ में स्वेच्छा से स्वयं को जला कर भस्म कर दिया तो उनके जलते हुए शरीर से जो धुआं निकला, उससे धूमावती का जन्म हुआ। इसीलिए वे हमेशा उदास रहती हैं। यानी धूमावती धुएं के रूप में सती का भौतिक स्वरूप है। सती का जो कुछ बचा रहा- उदास धुआं।
दूसरी कहानी यह है कि एक बार सती शिव के साथ हिमालय में विचरण कर रही थी। तभी उन्हें ज़ोरों की भूख लगी। उन्होंने शिव से कहा-'मुझे भूख लगी है' मेरे लिए भोजन का प्रबंध करें' शिव ने कहा-'अभी कोई प्रबंध नहीं हो सकता' तब सती ने कहा-'ठीक है, मैं तुम्हें ही खा जाती हूं। और वे शिव को ही निगल गईं। शिव तो स्वयं इस जगत के सर्जक हैं, परिपालक हैं। लेकिन देवी की लीला में वे भी शामिल हो गए।
भगवान शिव ने उनसे अनुरोध किया कि 'मुझे बाहर निकालो', तो उन्होंने उगल कर उन्हें बाहर निकाल दिया... निकालने के बाद शिव ने उन्हें शाप दिया कि ‘ आज और अभी से तुम विधवा रूप में रहोगी.... [1]
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ N. राज गोपाल, सुमन सचर (2000). Indian English poetry and fiction: a critical evaluation (अंग्रेज़ी में). नई दिल्ली: Atlantic Publishers & Distributors. पृ॰ 164. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7156-905-2.
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