चमार
चमार (या जाटव ) एक दलित समुदाय है जिसे आधुनिक भारत की सकारात्मक कार्रवाई प्रणाली के तहत अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है । वे पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाते हैं , मुख्य रूप से भारत के उत्तरी राज्यों और पाकिस्तान और नेपाल में । यह रविदासवंशी है।
चमार (जाटव) | |||
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धर्म | बौद्ध • हिन्दू | ||
भाषा | हिन्दी • भोजपुरी • पंजाबी • हरयाणवी • राजस्थानी • अन्य | ||
देश | भारत | ||
वासित राज्य | बिहार • झारखंड • उत्तर प्रदेश • हरियाणा • पंजाब • मध्यप्रदेश • राजस्थान • अन्य | ||
क्षेत्र | भारत • नेपाल • पाकिस्तान | ||
आबादी | उत्तर प्रदेश - 14% • बिहार - 5.2% • हरियाणा - 9.8% • राजस्थान - 10% • पंजाब - 11.9% • मध्यप्रदेश - 9.3% • उत्तराखंड - 5% • दिल्ली - 6.4% • छत्तीसगढ़ - 8% • हिमाचल प्रदेश - 6.8% • झारखंड - 3.1% • गुजरात - 1.7% |
इतिहास[संपादित करें]
चमार पारंपरिक रूप से चमड़े के काम से जुड़े हुए हैं। रामनारायण रावत का मानना है कि चमार समुदाय का संबंध चर्मशोधन के पारंपरिक व्यवसाय से था, और चमार ऐतिहासिक रूप से कृषक थे।
चमार शब्द का प्रयोग आम तौर पर दलितों के लिए अपमानजनक शब्द के रूप में किया जाता है। इसे भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जातिवादी गाली के रूप में वर्णित किया गया है और किसी व्यक्ति को संबोधित करने के लिए इस शब्द का उपयोग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 का उल्लंघन है।
व्यवसाय[संपादित करें]
चमार पारंपरिक रूप से चमड़े के काम से जुड़े हुए हैं। रामनारायण रावत का मानना है कि चमार समुदाय का जुड़ाव चमड़े के पारंपरिक व्यवसाय से हुआ था, और इसके बजाय चमार ऐतिहासिक रूप से कृषक और बुनकर भी थे। कुछ चमारों ने कपड़ा बुनने का धंधा भी अपना लिया एवं ख़ुद को जुलाहा चमार बुलाने लगे। चमारों का मानना है कि कपड़ा बुनने का काम चमड़े के काम से काफी उच्च दर्जे का काम है।[1] इतिहासकार अबूल फज़ल ने अपनी किताब आईने-ए-अकबरी (16वीं सदी का एक विस्तृत दस्तावेज़ जिसमें सम्राट अकबर के अधीन मुग़ल साम्राज्य के प्रशासन का विवरण दिया गया है) में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि उत्पल वंश के शासक चमार जनजाति से थे।
चमार रेजिमेंट[संपादित करें]
प्रथम चमार रेजिमेंट द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों द्वारा गठित एक पैदल सेना रेजिमेंट थी। आधिकारिक तौर पर, यह 1 मार्च 1943 को बनाई गई थी, क्योंकि 27वीं बटालियन दूसरी पंजाब रेजिमेंट को परिवर्तित किया गया था।[2] चमार रेजिमेंट उन सेना इकाइयों में से एक थी, जिन्हें कोहिमा की लड़ाई में अपनी भूमिका के लिए सम्मानित किया गया था।[3] 1946 में रेजिमेंट को भंग कर दिया गया था। 2011 में, कई राजनेताओं ने मांग की कि इसे पुनर्जीवित किया जाए।[4]
प्रमुख व्यक्ति[संपादित करें]
- संत रविदास -- भारत के मध्यकाल के एक महान सन्त, जिनकी वाणी गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित की गयी है।
- डॉ. भीमराव अम्बेडकर, भारतीय संविधान निर्माता, महान समाज सुधारक।
- बांके चमार, वीर महान स्वतंत्रता सेनानी
- जगजीवन राम, भारत के भूतपूर्व उप-प्रधानमंत्री
- कांशी राम (1934–2006), बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक
- मीरा कुमार, जगजीवन राम की सुपुत्री एवं लोकसभा की भूतपूर्व अध्यक्ष
- मायावती, बहुजन समाज पार्टी की नेत्री एवं उत्तर प्रदेश की भूतपूर्व मुख्यमंत्री
- राम सुंदर दास -- बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री हैं।
- चरणजीत सिंह चन्नी, पंजाब राज्य के भूतपूर्व मुख्यमंत्री
- चंद्रशेखर आज़ाद रावण -- एक सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिज्ञ और भीम आर्मी के संस्थापक हैं।
- विकास राव, भोजपुरी गायक
संत रविदास जी की कुछ चमार जाति पर वाणियाँ[संपादित करें]
संत रविदास जी ने कुछ वाणियों में यह भी समझाया है कि हमें चमार जाति को लेकर कभी भी भेद भाव नहीं करना चाहिए। सिर्फ जाति होने से कोई ऊंचा बड़ा नहीं होता है।
चमड़े, मांस और रक्त से, जन का बना आकार।
आँख पसार के देख लो, सारा जगत चमार।।
रैदास एक ही बूंद से, भयो जगत विस्तार।
ऊंच नींच केहि विधि भये, ब्राह्मण और चमार।।
कहै रविदास खलास चमारा।
जो हम सहरी सो मीत हमारा।।
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ Pruthi, R. K. (2004). Indian Caste System (अंग्रेज़ी में). Discovery Publishing House. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7141-847-3.
- ↑ "27/2 Punjab Regiment". www.ordersofbattle.com. अभिगमन तिथि 2020-05-12.
- ↑ "Battle of kohima" (PDF).
- ↑ "RJD man Raghuvansh calls for reviving Chamar Regiment - Indian Express". archive.indianexpress.com. अभिगमन तिथि 2020-05-12.