धार्मिक भाषा
धार्मिक भाषा एक ऐसी भाषा होती है जिसे धार्मिक प्रयोगों के लिये इस्तेमाल किया जाता है। किसी धार्मिक भाषा का प्रयोग करने वाले अपने दैनिक जीवन में किसी अन्य भाषा का प्रयोग करते हैं और वह धार्मिक भाषा उनकी मातृभाषा नहीं होती। अक्सर श्रद्धालुओं की दृष्टि में धार्मिक भाषा को मातृभाषा से अधिक शुद्ध, आध्यात्मिक, या अन्य गुणों से भरपूर माना जाता है। हिन्दुओं के लिये संस्कृत, कैथोलिक ईसाईयों के लिये लातीनी, इथोयोपियाई पारम्परिक ईसाईयों के लिये गिइज़, सीरियाई ईसाईयों के लिये सीरियाई, मुसलमानों के लिये शास्त्रीय अरबी (जो आधुनिक अरबी भाषा से काफ़ी भिन्न है) और बौद्ध धर्मियों के लिये पालि धार्मिक भाषाओं की भूमिका निभातीं हैं। इनमें से कोई भी आधुनिक युग में दैनिक प्रयोग की भाषा नहीं है। समाज में अक्सर किसी धार्मिक भाषा को लिखने-पढ़ने वालों को अन्य लोग मान्यता देते हैं, क्योंकि वे धर्मग्रंथ समझने-समझाने और धार्मिक समारोहों में सही भाषा प्रयोग व उच्चारण द्वारा धार्मिक नियमों का पालन करने में सक्षम माने जाते हैं।[1][2]