द्वितीय कांगो युद्ध
दूसरा कांगो युद्ध 1998 से 2002 तक चला, जिसे "अफ्रीका का विश्वयुद्ध" भी कहा जाता है। इस संघर्ष में अफ्रीका के छह से अधिक देशों की सेनाएं और कई विद्रोही गुट शामिल थे। यह मुख्य रूप से प्राकृतिक संसाधनों की लूट, क्षेत्रीय नियंत्रण और राजनीतिक प्रभुत्व के लिए लड़ा गया।
दूसरा कांगो युद्ध | |||||||
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अफ्रीकी संघर्ष का भाग | |||||||
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योद्धा | |||||||
कांगो (सरकार)![]() ![]() ![]() |
RC MLC ![]() ![]() | ||||||
सेनानायक | |||||||
लॉरेंट कबीला जोसेफ कबीला |
पॉल कागामे योवेरी मुसेवेनी |
पृष्ठभूमि
[संपादित करें]1950 के दशक में बेल्जियम ने कांगो को स्वतंत्रता के लिए तैयार करने में विफलता दिखाई। कांगो के लोगों को प्रशासनिक अनुभव और पश्चिमी शिक्षा देने के बजाय, बेल्जियम ने जानबूझकर इसे कमजोर बनाए रखा। सन् 1960 में, जब कांगो स्वतंत्र हुआ, तो प्रधानमंत्री पैट्रिस लुमुम्बा और राष्ट्रपति जोसेफ कासावुबु के नेतृत्व में सरकार बनी।[1]
हालांकि, बेल्जियम ने सेना पर नियंत्रण बनाए रखा, जिससे विद्रोह शुरू हुआ। लुमुम्बा और कासावुबु के बीच सत्ता संघर्ष के दौरान, सेना के कमांडर जोसेफ मोबुतु ने लुमुम्बा को हटाकर खुद सत्ता पर कब्जा कर लिया। उन्होंने अमेरिका समर्थित तानाशाही शासन स्थापित किया और देश का नाम बदलकर ज़ैरे रख दिया।[1]
1990 के दशक में शीत युद्ध समाप्त होने के बाद, मोबुतु ने अपनी शक्ति खो दी। सन् 1994 में रवांडा नरसंहार के बाद, हुतू चरमपंथियों ने ज़ैरे में प्रवेश किया और तुत्सी आबादी पर हमले शुरू कर दिए। सन् 1997 में, विद्रोहियों ने लॉरेंट कबीला के नेतृत्व में मोबुतु को सत्ता से हटा दिया और देश का नाम लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो रखा।[1]
संघर्ष के प्रमुख चरण
[संपादित करें]सन् 1998 में, कबीला ने रवांडा और युगांडा के सैनिकों को देश से बाहर निकाल दिया। इसके जवाब में, अगस्त 1998 में पूर्वी कांगो में एक नया विद्रोह शुरू हुआ। विद्रोहियों और उनके विदेशी समर्थकों ने राजधानी किंशासा तक कूच किया। कबीला को जिम्बाब्वे, नामीबिया अंगोला से मदद मिली। इन सेनाओं ने विद्रोहियों को पीछे धकेल दिया, लेकिन देश तेजी से विद्रोहियों और सरकारी क्षेत्रों में बंट गया।[2]
युद्ध की शुरुआत
[संपादित करें]विद्रोहियों के दो प्रमुख समूह बन गए: रवांडा समर्थित रैली फॉर कांगोलीज डेमोक्रेसी (RCD) और युगांडा समर्थित मूवमेंट फॉर द लिबरेशन ऑफ कांगो (MLC)। 1999 तक, कांगो के पूर्वी क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों की लूट और आपसी संघर्ष जारी रहा। विद्रोही गुटों के बीच किसांगानी में नियंत्रण के लिए लड़ाई ने संघर्ष को और जटिल बना दिया। यह युद्ध मुख्य रूप से लूटपाट, भूख और बीमारी के कारण हुई तबाही के लिए जाना जाता है।[3]
युद्ध का अंत और परिणाम
[संपादित करें]जनवरी 2001 में लॉरेंट कबीला की हत्या के बाद, उनके बेटे जोसेफ कबीला ने सत्ता संभाली। उन्होंने वार्ता शुरू की, जिसके परिणामस्वरूप सन् 2002 में विदेशी सेनाओं की वापसी हुई। विद्रोही गुटों को एक नई राष्ट्रीय सेना में शामिल कर लिया गया। हालांकि, पूर्वी कांगो में हिंसा और प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण के लिए संघर्ष आज भी जारी है।[3]
प्रभाव
[संपादित करें]दूसरा कांगो युद्ध कांगो के समाज और अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी प्रभाव छोड़ गया। संघर्ष के दौरान, लाखों लोग विस्थापित हुए और हजारों बाल सैनिकों को लड़ाई में झोंक दिया गया। कांगो के प्राकृतिक संसाधनों की लूट ने इसे एक आर्थिक संकट में डाल दिया। आज भी, पूर्वी कांगो में हिंसा जारी है, जहां संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन तैनात है।[1][2]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ अ आ इ ई Stapleton, Timothy J. (2011), "Congo Wars (1960s–2000s)", The Encyclopedia of War (in अंग्रेज़ी), John Wiley & Sons, Ltd, doi:10.1002/9781444338232.wbeow137, ISBN 978-1-4443-3823-2, retrieved 2025-01-17
- ↑ अ आ "Democratic Republic of the Congo - Conflict, Colonialism, Independence | Britannica". www.britannica.com (in अंग्रेज़ी). 2025-01-13. Retrieved 2025-01-17.
- ↑ अ आ "8 Deadliest Wars of the 21st Century | Britannica". www.britannica.com (in अंग्रेज़ी). Retrieved 2025-01-17.
बाहरी कड़ियाँ
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African World War से संबंधित मीडिया विकिमीडिया कॉमंस पर उपलब्ध है। |
- कांगो गृह युद्ध कर बीबीसी समाचार और प्रश्नोत्तरी (अंग्रेज़ी में)