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द्वितीय इटालो-इथियोपियाई युद्ध

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दूसरा इतालो-इथियोपियन युद्ध 1935 से 1936 तक लड़ा गया। यह संघर्ष इथियोपिया और इटली (फासीवादी) के बीच हुआ, जिसमें इटली ने इथियोपिया पर अपना साम्राज्य स्थापित करने का प्रयास किया। इस युद्ध का कारण इटली के सन् 1896 में आडोवा की लड़ाई में इथियोपिया के हाथों मिली हार का बदला लेना और "अफ्रीकी साम्राज्य" स्थापित करना था।

दूसरा इतालो-इथियोपियन युद्ध
अफ्रीकी संघर्ष और मुसोलिनी की आक्रामक नीति का भाग
तिथि 3 अक्टूबर 1935 – 5 मई 1936
स्थान इथियोपिया
परिणाम इटली की विजय; इतालवी पूर्व अफ्रीका का गठन
योद्धा
 इटली  इथियोपिया
सेनानायक
बेनिटो मुसोलिनी
पिएत्रो बडोग्लियो
हैले सेलासी प्रथम
शक्ति/क्षमता
500,000 सैनिक 800,000 सैनिक
मृत्यु एवं हानि
10,000 मृत या घायल 275,000 मृत या घायल

पृष्ठभूमि

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सन् 1896 में आडोवा की लड़ाई में इथियोपियाई सेना ने इटली को हराकर अफ्रीका में अपनी स्वतंत्रता बनाए रखी। यह जीत अफ्रीकी देशों के लिए एक प्रेरणा बनी और इथियोपिया अफ्रीका के उन गिने-चुने देशों में शामिल था जो यूरोपीय उपनिवेशवाद से बचा रहा। 1922 में बेनिटो मुसोलिनी के नेतृत्व में फासीवाद के उदय के साथ, इटली ने अपनी प्रतिष्ठा बहाल करने और एक साम्राज्य स्थापित करने के लिए इथियोपिया पर पुनः आक्रमण की योजना बनाई।[1]

सन् 1930 में हैले सेलासी प्रथम इथियोपिया के सम्राट बने। उन्होंने देश को आधुनिक बनाने और अपनी सेना को सुदृढ़ करने की कोशिश की, लेकिन उनकी सेना तकनीकी रूप से इटली की सेना से काफी पिछड़ी हुई थी। इथियोपिया 1923 में लीग ऑफ नेशन्स का सदस्य बना, जिसे उसने अपनी स्वतंत्रता की गारंटी के रूप में देखा। हालांकि, 1935 में इटली ने इथियोपिया पर आक्रमण करने के लिए सीमा विवाद का बहाना बनाया।[1]

युद्ध की शुरुआत

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3 अक्टूबर 1935 को इटली ने इथियोपिया पर आक्रमण किया। इटली ने भारी सैन्य संसाधनों का उपयोग किया, जिसमें आधा मिलियन सैनिक, आधुनिक हथियार, बख्तरबंद गाड़ियां, और वायुसेना शामिल थी। इटली ने रासायनिक हथियारों का भी उपयोग किया, जो जेनेवा सम्मेलन के नियमों का उल्लंघन था। इथियोपियाई सेना ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी, लेकिन उनके पारंपरिक हथियार इटली की आधुनिक युद्ध तकनीक के सामने टिक नहीं सके।[2]

निर्णायक लड़ाइयाँ

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6 मई 1936 को इटली की सेना आदिस अबाबा में प्रवेश कर गई, और इथियोपिया पर अधिकार कर लिया गया। हैले सेलासी प्रथम यूरोप भाग गए और लीग ऑफ नेशन्स में इटली की आक्रामकता की निंदा की। हालांकि, लीग कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर सका, और ब्रिटेन तथा फ्रांस ने इटली पर केवल प्रतीकात्मक प्रतिबंध लगाए।[2]

इटली ने इथियोपिया को अपने पूर्व अफ्रीकी साम्राज्य (इरीट्रिया और सोमालिलैंड) के साथ मिलाकर "इतालवी पूर्व अफ्रीका" बनाया। इथियोपिया का यह विलय 1941 तक चला, जब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मित्र राष्ट्रों ने इटली को हराया और इथियोपिया को स्वतंत्रता वापस मिली।[2]

दूसरा इतालो-इथियोपियन युद्ध इथियोपिया के इतिहास में एक काला अध्याय है। इसने इटली की आक्रामकता और लीग ऑफ नेशन्स की विफलता को उजागर किया। यह युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध की भूमिका का अग्रदूत बना, जिसमें फासीवाद की क्रूरता और यूरोपीय शक्तियों की उदासीनता स्पष्ट हुई।[1]

सन्दर्भ

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  1. Finaldi, Giuseppe (2011), "Italo-Abyssinian Wars (1887–1896, 1935–1936)", The Encyclopedia of War (अंग्रेज़ी में), John Wiley & Sons, Ltd, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-4443-3823-2, डीओआइ:10.1002/9781444338232.wbeow311, अभिगमन तिथि 2025-01-17
  2. "Italo-Ethiopian War | Causes, Summary, & Facts | Britannica". www.britannica.com (अंग्रेज़ी में). 2025-01-13. अभिगमन तिथि 2025-01-17.

बाहरी कड़ियाँ

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