द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध
द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध Second Anglo-Burmese War ဒုတိယ အင်္ဂလိပ် မြန်မာ စစ် | |||||||||
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योद्धा | |||||||||
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सेनानायक | |||||||||
मेजर जनरल हेनरी गॉडविन | मूंग गाई क्युक लोन |
द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध 1852 ईसवी में हुआ था। वर्मा के प्रथम युद्ध का अंत याण्डबू की संधि से हुआ था परंतु यह संधि बर्मा के इतिहास में ज्यादा कारगर सिद्ध नहीं हुई और यह संधि समाप्त हो गई। इस संधि के समापन का कारण यह था कि संधि के पश्चात कुछ अंग्रेजी व्यापारी बर्मा के दक्षिणी तट पर बस गए और वहीं से अपने व्यापार का संचालन प्रारंभ किया। कुछ समय पश्चात इन व्यापारियों ने बर्मा सरकार के निर्देशों एवं नियमों का उल्लंघन करना प्रारंभ कर दिया। इस कारण बर्मा सरकार ने उन व्यापारियों को दंडित किया जिसके फलस्वरुप अंग्रेज व्यापारियों ने अंग्रेजी शासन से सन 1851 ईस्वी में सहायता मांगी। लॉर्ड डलहौजी ने इस अवसर का फायदा उठाकर सन 1852 ईस्वी में बर्मा के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस युद्ध में अंग्रेजों ने बर्मा को पराजित किया और मर्तवान एवं रंगून पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। इस युद्ध के पश्चात बर्मा का समस्त दक्षिणी भाग अंग्रेजी सरकार के अधिकार में आ गया।,[1].[2]
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ D.G.E.Hall (1960). Burma (PDF). Hutchinson University Library. pp. 109–113. मूल से (PDF) से 2005-05-19 को पुरालेखित।.
- ↑ "Southeast Asia: a historical encyclopaedia, from Angkor Wat to East Timor, Volume 1 By Keat Gin Ooi, p. 736". पुरालेखित from the original on 13 मई 2016. अभिगमन तिथि: 11 अगस्त 2018.