दीपावली (जैन)

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जल मंदिर, पावापुरी

जैन समाज द्वारा दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है।[1] जैन ग्रथों के अनुसार महावीर स्वामी (वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर) को चर्तुदशी के प्रत्युष काल में मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। चर्तुदशी का अन्तिम पहर होता है इसलिए जैन लोग दीपावली अमावस्या को मनाते है। संध्या काल में तीर्थंकर महावीर के प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः अन्य सम्प्रदायों से जैन दीपावली की पूजन विधि पूर्णतः भिन्न है।

दीपावली[संपादित करें]

दीपावली शब्द से संबंधित शब्द, "दीपलिक" का सबसे पुराना संदर्भ आचार्य जिनसेन द्वारा लिखित हरिवंश-पुराण में मिलता है: [2]

ततस्तुः लोकः प्रतिवर्षमादरत् प्रसिद्धदीपलिकयात्र भारते |
समुद्यतः पूजयितुं जिनेश्वरं जिनेन्द्र-निर्वाण विभूति-भक्तिभाक् |२० |

हिंदी अनुवाद: देवताओं ने इस अवसर पर दीपक द्वारा पावानगरी (पावापुरी) को प्रबुद्ध किया। उस समय के बाद से, भारत के लोग जिनेन्द्र (यानी भगवान महावीर) के निर्वाणोत्सव पर उनकी की पूजा करने के लिए प्रसिद्ध त्यौहार "दीपलिक" मनाते हैं।

निर्वाण लड्डू[संपादित करें]

इस दिन, कई जैन मंदिरों में निर्वाण लाडू चढ़ाया जाता है। लड्डू गोल होता है, जिसका अर्थ होता है जिसका न आरंभ है न अंत है। अखंड लड्डू की तरह आत्मा होती है, जिसका न आरंभ होता है और न ही अंत। लड्डू बनाते समय बूँदी को कड़ाही में तपना पड़ता है और तपने के बाद उन्हें चाशनी में डाला जाता है। उसी प्रकार अखंड आत्मा को भी तपश्चरण की आग में तपना पड़ता है तभी मोक्षरूपी चाशनी की मधुरता मिलती है।

मोक्ष लक्ष्मी[संपादित करें]

जैन धर्म में लक्ष्मी का अर्थ होता है निर्वाण और सरस्वती का अर्थ होता है केवलज्ञान, इसलिए प्रातःकाल जैन मंदिरों में भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण उत्सव मनाते समय भगवान की पूजा में लड्डू चढ़ाए जाते हैं।[3] भगवान महावीर को मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्ति हुई और गणधर गौतम स्वामीजी को केवलज्ञान रूपी सरस्वती प्राप्त हुई, इसलिए लक्ष्मी-सरस्वती का पूजन दीपावली के दिन किया जाता है। लक्ष्मी पूजा के नाम पर रुपए-पैसों की पूजा जैन धर्म में स्वीकृत नहीं है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Jharkhand Sachivalaya SewaS Jharkhand Lok Sewa Ayog sahayak Prarambhik Pariksha. उपकार प्रकाशन. पृ॰ ४८. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789350132913. मूल से 22 नवंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 नवंबर 2015.
  2. Akademi, Sahitya (1988). Encyclopaedia of Indian literature. 2. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-260-1194-7.
  3. "संग्रहीत प्रति". मूल से 5 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.

[1]

  1. http://www.jaingolalariya.org/articledetail.php?url=-[मृत कड़ियाँ]