देवदत्त रामकृष्ण भांडारकर

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देवदत्त रामकृष्ण भांडारकर (19 नवम्बर 1875 -1950) महाराष्ट्र के इतिहासशोधक एवं पुरातत्वशास्त्री थे। आप रामकृष्ण गोपाल भांडारकर के सबसे छोटे पुत्र थे।

परिचय[संपादित करें]

पालि तथा पुरा लिपि लेकर एम. ए. पास करने के पहले ही आपने 'महाराष्ट्र के प्राचीन नगर' शीर्षक एक महत्वपूर्ण लेख लिखा था। सन्‌ 1900 में उन्होंने दो और निबंध लिखे- 'गुजरात राष्ट्रकूट कुमार कर्क प्रथम का नवसारी ताम्र अधिकारपत्र' तथा 'कुषाण शिलालेख और शक संवत्‌ के उद्भव का प्रश्न'। इंडोसीथियन राजाओं का जो वंशक्रम उन्होंने दूसरे निबंध में निश्चित किया था उसे बाद में बार्थ और विंसेंट स्मिथ ने भी मान लिया। उन्होंने भारतीय जनगणना विभाग के बंबई कार्यालय में रहकर रिपोर्ट के 'धर्म और संप्रदाय' तथा 'जातियाँ और कबीले' नामक परिच्छेद लिखे। अहीरों, गुर्जरों तथा गुहलोतों पर उन्होंने विशेष निबंध लिखे।

सन्‌ 1904 में वे भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग में नियुक्त हो गए और जुलाई, 1917 तक वहीं काम करते रहे। फिर वे कललकत्ता विश्वविद्यालय में भारत के प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति के प्रोफेसर नियुक्त हुए। विदिशा के निकट उन्होंने जो खुदाई कराई वह अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण प्रमाणित हुई। ईसा पूर्व द्वितीय शती के वास्तविक फौलाद के टुकड़े, मौर्ययुग में प्रयुक्त होनेवाला चूने का मसाला, यज्ञकुंडों में लगाई जानेवाली अग्निसह मिट्टी की ईटें इत्यादि कई वस्तुओं का पता उन्होंने लगाया। इस काल की उनकी तीन महत्वपूर्ण पुस्तकें ये हैं- इंडियन न्यूमेसमैटिक्स (भारतीय मुद्रा विज्ञान), अशोक तथा किंगशिप ऐंड डेमॉक्रैटिक इंस्टिट्यूशन्स ऑव ऐंशेंट इंडिया (प्राचीन भारत में राजातंत्र एवं लोकतंत्रात्मक संस्थाएँ)। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय तथा मद्रास विश्वविद्यालय में भारतीय शासन व्यवस्था एवं प्राचीन भारतीय संस्कृति पर अनेक व्याख्यान दिए। गुप्त शिलालेखों का विवरण देनेवाली पुस्तक 'कार्पस इंस्क्रिप्टिओनम इंडिकेरम' का द्वितीय संशोधित संस्करण उन्होंने बड़े परिश्रम से तैयार किया, जो इस विषय का उनका बहुमूल्य अंशदान है।