दीनानाथ बत्रा

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दीनानाथ बत्रा (जन्म : 05 मार्च 1930) 'शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति' के संस्थापक तथा राष्ट्रीय संयोजक[1] हैं। वे विद्या भारती के महासचिव भी रह चुके हैं। वे पंजाब तथा हरियाणा में अंग्रेजी तथा हिन्दी विषयों के अध्यापक तथा प्रधानाचार्य रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रीय एवं शैक्षिक आंदोलन में अग्रणी भूमिका हेतु सात बार जेलयात्रा की है।

जीवन परिचय[संपादित करें]

दीनानाथ बत्रा का जन्म 05 मार्च 1930 को डेरा गाजीखान में हुआ था जो अब वर्तमान पाकिस्तान में है। लाहौर विश्वविद्यालय में पढ़ाई के बाद उन्होंने अध्यापन कार्य शुरू किया। कुरुक्षेत्र के श्रीमद भागवत गीता कॉलेज में प्रधानाचार्य भी रहे।

इन दिनों दीनानाथ बत्रा 'शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति' के माध्यम से शिक्षा में बदलाव की लड़ाई लड़ रहे हैं। शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति की देश भर में 26 शाखाएं हैं।

वे 1955 से 1965 डी.ए.वी. विद्यालय डेराबस्सी पंजाब तथा गीता वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, कुरुक्षेत्र में सन् 1965 से 1990 तक प्राचार्य रहे। उन्होंने हरियाणा शिक्षा बोर्ड की पाठ्य योजना, दिल्ली शिक्षा बोर्ड, दिल्ली शिक्षा कोड समिति, दिल्ली नैतिक-शिक्षा समिति के सदस्य के रूप में कार्य किया। हरियाणा अध्यापक संघ के महामंत्री के रूप में कार्य किया। अखिल भारतीय हिंदुस्तान स्काउट्स गाइड के कार्यकारी अध्यक्ष रहे। विद्या भारती अखिल भारतीया शिक्षण-संस्थान के राष्ट्रीय संस्थान के राष्ट्रीय महामंत्री तथा उपाध्यक्ष रहे। वर्तमान में विद्याभारती की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य। वे पंचनद शोध-संस्थान के निदेशक रहे हैं, वर्तमान में इसके संरक्षक है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की कार्यकारिणी के सदस्य रहे। भारतीय शिक्षा शोध-संस्थान, लखनऊ की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। वर्तमान में शिक्षा संस्कृति उत्थान के अध्यक्ष एवं शिक्षा बचाओ आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक हैं।

कृतियाँ[संपादित करें]

दीनानाथ बत्रा ने बहुत सी पुस्तकों की रचना की है। उनमें से कुछ पुस्तकें है-

  • शिक्षा का भारतीयकरण
  • तेजोमय भारत
  • प्ररेणादीप - भाग १, २, ३ और ४
  • विद्यालय : प्रवृत्तियों का घर
  • शिक्षण में त्रिवेणी
  • शिक्षा परीक्षा तथा मूल्यांकन की त्रिवेणी
  • वैदिक गणित
  • आचार्य का आचार्यत्व जागे
  • वीरव्रत परम सामर्थ्य
  • आत्मवत् सर्वभूतेषु
  • माँ का आह्वान
  • पूजा हो तो ऐसी
  • हमारा लक्ष्य
  • विद्यालयों में संस्कारक्षम वातावरण
  • विद्यालय गतिविधियों का आलय
  • चरित्र-निर्माण तथा व्यक्तित्व के समग्र विकास का पाठ्यक्रम।

इन पुस्तकों में भारतीय संस्कृति के पालन एवं पुनरोदय पर बल दिया गया है। इनमें लिखित कुछ प्रमुख बातें ये हैं-

  • बच्चों को जन्मदिन पर मोमबत्ती नहीं जलानी चाहिए। पूर्णतया भारतीय संस्कृति को अपनाते हुए स्वदेशी वस्त्र पहनें, हवन करें, गायत्री मंत्र का पाठ करें, जरूरतमंदों को कपडे दें, गाय को भेाजन दें, प्रसाद वितरण करें और विद्या भारती के बनाए गए गानों को सुनकर आनंद लें।
  • 'शिक्षा का भारतीयकरण’ पुस्तक में कहा गया है कि वर्तमान भाषा नीति के कारण अंग्रेजी प्रभावी है और संस्कृत को दरकिनार कर दिया गया है। संस्कृति का अध्ययन न करने से विद्यार्थी वेदों में लिखे गए भारतीय संस्कृति से जुडे अथाह ज्ञान को नष्ट कर रहे हैं। इसलिए छात्रोंको अपनी संस्कृति के बारे में जानना चाहिए।
  • बत्रा स्कूल में तीन भाषाओं की प्रणाली को लागू करने की सलाह देते हैं। वह सबसे पहले स्थानीय भाषा, फिर हिंदी और तीसरी भाषा के रूप में संस्कृत या और कोई विदेशी भाषा लागू करने की सलाह देते हैं।

सम्मान-पुरस्कार[संपादित करें]

  • भारत स्काउट्स, हरियाणा में महामहिम राज्यपाल द्वारा ‘मेडल ऑफ मैरिट’
  • हरियाणा शिक्षा बोर्ड द्वारा प्रशंसा प्रमाण-पत्र, श्रेष्ठ शिक्षक हेतु सम्मान
  • अध्यापन के क्षेत्र में राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार
  • भारत विकास परिषद् हरियाणा उत्तर क्षेत्र द्वारा प्रशस्ति-पत्र
  • स्वामी कृष्णानंद सरस्वती सम्मान-2010
  • बीकानेर सम्मान-पत्र
  • साहित्य श्री सम्मान-2012
  • स्वामी श्री अखण्डानन्द सरस्वती विशिष्ट व्यक्तित्व अलंकरण[2]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "कोलकाता में शिक्षा एवं संस्कृति रक्षा मंच का कार्यकर्ता सम्मेलन". मूल से 25 अक्तूबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 जून 2014.
  2. श्री दीनानाथ बत्रा, राष्ट्रीय अध्यक्ष

बाहरी कडियाँ[संपादित करें]