दीनानाथ बत्रा
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दीनानाथ बत्रा 'शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति' के संस्थापक तथा राष्ट्रीय संयोजक[1] हैं। वे विद्या भारती के महासचिव भी रह चुके हैं। वे पंजाब तथा हरियाणा में अंग्रेजी तथा हिन्दी विषयों के अध्यापक तथा प्रधानाचार्य रहे हैं।
जीवन परिचय[संपादित करें]
दीनानाथ बत्रा का जन्म डेरा गाजीखान (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। लाहौर विश्वविद्यालय में पढ़ाई के बाद उन्होंने अध्यापन कार्य शुरू किया। कुरुक्षेत्र के श्रीमद भागवत गीता कॉलेज में प्रधानाचार्य भी रहे।
इन दिनों दीनानाथ बत्रा 'शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति' के माध्यम से शिक्षा में बदलाव की लड़ाई लड़ रहे हैं। शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति की देश भर में 26 शाखाएं हैं।
कृतियाँ[संपादित करें]
दीनानाथ बत्रा ने बहुत सी पुस्तकों की रचना की है। उनमें से कुछ पुस्तकें है-
- शिक्षा का भारतीयकरण
- तेजोमय भारत
- प्ररेणादीप - १, २, ३ और ४
- विद्यालय : प्रवृत्तियों का घर
- शिक्षण में त्रिवेणी
- वैदिक गणित
- आचार्य का आचार्यत्व जागे
इन पुस्तकों में भारतीय संस्कृति के पालन एवं पुनरोदय पर बल दिया गया है। इनमें लिखित कुछ प्रमुख बातें ये हैं-
- बच्चों को जन्मदिन पर मोमबत्ती नहीं जलानी चाहिए। पूर्णतया भारतीय संस्कृति को अपनाते हुए स्वदेशी वस्त्र पहनें, हवन करें, गायत्री मंत्र का पाठ करें, जरूरतमंदों को कपडे दें, गाय को भेाजन दें, प्रसाद वितरण करें और विद्या भारती के बनाए गए गानों को सुनकर आनंद लें।
- 'शिक्षा का भारतीयकरण’ पुस्तक में कहा गया है कि वर्तमान भाषा नीति के कारण अंग्रेजी प्रभावी है और संस्कृत को दरकिनार कर दिया गया है। संस्कृति का अध्ययन न करने से विद्यार्थी वेदों में लिखे गए भारतीय संस्कृति से जुडे अथाह ज्ञान को नष्ट कर रहे हैं। इसलिए छात्रोंको अपनी संस्कृति के बारे में जानना चाहिए।
- बत्रा स्कूल में तीन भाषाओं की प्रणाली को लागू करने की सलाह देते हैं। वह सबसे पहले स्थानीय भाषा, फिर हिंदी और तीसरी भाषा के रूप में संस्कृत या और कोई विदेशी भाषा लागू करने की सलाह देते हैं।
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ "कोलकाता में शिक्षा एवं संस्कृति रक्षा मंच का कार्यकर्ता सम्मेलन". मूल से 25 अक्तूबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 जून 2014.