दामोदर दास बैरागी

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महाराज श्री दामोदर दास बैरागी (बड़े दाऊजी) वल्लभ सम्प्रदाय के थे और जगद्गुरु वल्लभाचार्य के वंशज थे दामोदर दास बैरागी ने श्रीनाथ जी के विग्रह को वृन्दावन से औरंगज़ेब की सेना ‌से बचाकर राजस्थान के जोधपुर ले आए थे।[1][2] वर्तमान ‌नाथद्वारा मन्दिर का निर्माण दामोदर दास बैरागी ने राणा राज सिंह के साथ मिलकर 20 फरवरी 1672 को संपूर्ण कराया था।[3]

नाथद्वारा मेें विराजमान श्रीनाथजी का विग्रह (चित्र)

इतिहास[संपादित करें]

09 अप्रैल 1669 को औरंगज़ेब ने हिंदू मंदिरों को तोड़ने के लिए आदेश जारी किया। तब वृन्दावन में गोवर्धन के पास श्रीनाथजी के मंदिर को तोड़ने का काम भी शुरू हो गया। इससे पहले कि श्रीनाथजी की मूर्ति को कोई नुकसान पहुंचे, मन्दिर के पुजारी दामोदर दास बैरागी ने मूर्ति को मंदिर से बाहर निकाल लिया। दामोदर दास बैरागी वल्लभ संप्रदाय के थे और वल्लभाचार्य के वंशज थे। उन्होंने बैलगाड़ी में श्रीनाथजी की मूर्ति को स्थापित किया और उसके बाद वे बूंदी, कोटा, किशनगढ़ और जोधपुर तक के राजाओं के पास आग्रह लेकर गए कि श्रीनाथजी का मंदिर बनाकर उसमें मूर्ति स्थापित की जाए। लेकिन औरंगज़ेब के डर से कोई भी राजा दामोदर दास बैरागी के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर रहा था।[4]

कोटा से 10 किमी दूर श्रीनाथजी की चरण पादुकाएं आज भी रखी हुई हैं, उस स्थान को चरण चौंकी के नाम से जानते हैं। तब दामोदर दास बैरागी ने मेवाड़ के राजा राणा राज सिंह के पास संदेश भिजवाया। जब किशनगढ़ की राजकुमारी चारुमती से विवाह करने का प्रस्ताव औरंगजेब ने भेजा तो चारुमती ने इससे साफ इनकार कर दिया और रातों-रात राणा राजसिंह को संदेश भिजवाया कि चारुमती उनसे शादी करना चाहती है। राज सिंह प्रथम ने बिना कोई देरी के किशनगढ़ पहुंचकर चारुमती से विवाह कर लिया। इससे औरंगज़ेब का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया और वह राज सिंह प्रथम को अपना सबसे बड़ा शत्रु समझने लगा। यह बात 1660 की है।

राणा राज सिंह ने कहा कि मेरे रहते हुए श्रीनाथजी की मूर्ति को कोई छू तक नहीं पाएगा। उस समय श्रीनाथजी की मूर्ति बैलगाड़ी में जोधपुर के पास चौपासनी गांव में थी और चौपासनी गांव में कई महीने तक बैलगाड़ी में ही श्रीनाथजी की मूर्ति की उपासना होती रही। यह चौपासनी गांव अब जोधपुर का हिस्सा बन चुका है और जहां पर यह बैलगाड़ी खड़ी थी वहां पर आज श्रीनाथजी का एक मंदिर बनाया गया है। 5 दिसंबर 1671 को सिहाड़ गांव में श्रीनाथजी की मूर्तियों का स्वागत करने के लिए राणा राजसिंह स्वयं पहुंचे। यह सिहाड़ गांव उदयपुर से 30 मील एवं जोधपुर से लगभग 140 मील पर स्थित है। जिसे आज नाथद्वारा के नाम से जानते हैं। 20 फरवरी 1672 को मंदिर का निर्माण संपूर्ण हुआ और श्रीनाथजी की मूर्ति सिहाड़ गांव के मंदिर में स्थापित कर दी गई। यही सिहाड़ गांव अब नाथद्वारा बन गया।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  1. https://m.punjabkesari.in/dharm/news/temple-of-shrinath-1080928
  2. http://sunilnathdwara.blogspot.com/2018/06/blog-post_23.html?m=1
  3. https://www.jansatta.com/religion/nathadvara-mein-sthapana/1210656/
  4. https:///amp/s/hindi.news18.com/amp/news/rajasthan/jaipur-special-story-famous-temple-of-rajasthan-srinath-ji-mandir-nathdwara-mughal-emperor-aurangzeb-3529783.html