दशरथ शर्मा
दशरथ शर्मा | |
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जन्म |
१९०३ चूरु, राजस्थान |
मौत |
१९७६ |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शिक्षा की जगह | दिल्ली विश्वविद्यालय |
दशरथ शर्मा (१९०३, चूरु, राजस्थान - १९७६) एक भारतविद् एवं भारत के राजस्थान क्षेत्र के इतिहास पर जाने-माने विद्वान थे। आप भाष्याचार्य हरनामदत्त शास्त्री के पौत्र तथा विद्यावाचस्पति विद्याधर शास्त्री के अनुज थे[1]।
आरंभिक जीवन
[संपादित करें]आपकी प्रारंभिक शिक्षा चूरु में हुई। आपने दिल्ली विश्वविद्यालय और आगरा विश्वविद्यालय (वर्तमान बी आर अम्बेडकर विश्वविद्यालय) से क्रमशः इतिहास तथा संस्कृत कलाधिस्नातक परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं। शोध प्रबंध अर्ली चौहान डाईनेस्टीस के लिए आपको डी.लिट् की उपाधि प्राप्त हुई[2]। डॉ॰ शर्मा मुनि जिनविजय की अध्यक्षता में गठित उस आयोग के सदस्य थे जिसके प्रयत्न से आबू क्षेत्र को राजस्थान में समाहित किया गया[3]।
विद्योचित कर्म
[संपादित करें]१९२५ ई. में आप डूंगर कॉलेज, बीकानेर में इतिहास के प्रोफेसर नियुक्त हुए। १९३५ ई. में आप महाराजा गंगा सिंह के पौत्र डॉ॰ करणी सिंह के निजी शिक्षक नियुक्त हुए। इसी समय आपने बीकानेर स्थित अनूप संस्कृत पुस्तकालय के संचालन में भाग लिया। 'पृथ्वीराज रासो' के विषय में जो शंकाएं अन्य विद्वानों ने प्रकट की थी उनका आपने खंडन किया। १९४४ में आपने सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टिट्यूट की स्थापना में योगदान दिया और कई वर्षों तक इस संस्था का निर्देशन किया। १९४९ से १९५७ तक आप हिन्दू कॉलेज, दिल्ली के इतिहास और राजनीति वभाग के अध्यक्ष रहे। १९५७ में आप दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में प्राचीन इतिहास के रीडर नियुक्त हुए। दिल्ली विश्वविद्यालय में आपका सम्बन्ध इतिहास, हिंदी तथा संस्कृत इन सब विभागों से था। आपके मार्गदर्शन में इतिहास, संस्कृत, हिंदी, पालि तथा प्राकृत के शोधार्थी सहयोगी रूप से कार्य करते थे। १९५९ में आप राजस्थान सरकार के द्वारा राजस्थान के प्रामाणिक इतिहास लेखन योजना के प्रधान सम्पादक नियुक्त हुए। यह पुस्तक राजस्थान थ्रू दी एजिज़ (भाग एक) के रूप में १९६६ में प्रकाशित हुई। १९६६ में आप जोधपुर विश्वविद्यालय (वर्त्तमान जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय) के इतिहास विभाग के अध्यक्ष तथा प्रोफेसर नियुक्त हुए। कुछ वर्ष पश्चात आप जोधपुर विश्वविद्यालय कला संकाय के अधिष्ठाता नियुक्त हुए। १९६९ में आपने कलकत्ता विश्वविद्याय में 'आर पी नोपानी भाषणमाला' के अन्तर्गत सात भाषण दिए। इन्ही भाषणों को बाद में लेक्चर्स ऑन राजपूत हिस्टरी एंड कल्चर के रूप में प्रकाशित किया गिया। जोधपुर विश्वविद्यालय से सेवा निवृत्ति के पश्चात आपने राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान (राजस्थान पुरातत्व मंदिर) का निर्देशन किया। १९६७ में आप इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस के प्राचीन भारतीय खंड के अध्यक्ष रहे तथा १९६९ में राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस के उदयपुर आधिवेशन के सभापति रहे[4]।
शिष्य वर्ग
[संपादित करें]डॉ॰ शर्मा के निर्देशन में अनेक अध्येताओं ने पीएच. डी. उपाधि प्राप्त की। शोधार्थियों द्वारा लिखित कुछ ग्रंथों के नाम हैं: ए सोसिओ-पोलिटिकल स्टडी ऑफ़ दी वाल्मीकि रामायण (डॉ॰ रामाश्रय शर्मा)[5], सन वरशिप इन एन्शियंट इंडिया (डॉ॰ लालता प्रसाद पांडे)[6], सोसिअल लाइफ इन नॉर्दर्न इंडिया ६००-१००० ई. (डॉ॰ ब्रजनारायण शर्मा)[7], दी परमार ८००-१३०५ ई. (डॉ॰ प्रतिपाल भाटिया)[8], फूड्स एंड ड्रिंक्स इन एन्शियंट इंडिया:फ्रॉम अरलीएस्ट टाइम्स टू १२०० ई. (डॉ॰ ओम प्रकाश)[9]सोसिअल एंड कल्चरल हिस्ट्री ऑफ़ नॉर्दर्न इंडिया १०००-१२०० ई. (डॉ॰ ब्रजेन्द्रनाथ शर्मा)[10], स्ट्रगल फॉर रिस्पोंसिबल गवर्नमेंट इन मारवार (डॉ॰ सोभागमल माथुर)[11], राज मारवार ड्यूरिंग ब्रिटिश पेरामाउंटसी (डॉ॰ पारसराज शाह)[12]।
ग्रन्थकारिता
[संपादित करें]अथाह विद्वान जैन मुनि जिनविजयजी ने डॉ॰ दशरथ शर्मा के बारे में कहा था ' उन्होंने अपने जीवन में ऐसा विद्वान नहीं देखा जिसकी इतिहास और साहित्य दोनों में इतनी गहरी पैठ हो'। डॉ॰ शर्मा ने अपने जीवनकाल में करीब पांच सौ लेख इतिहास तथा साहित्य सम्बंधित विषयों पर लिखे थे। इनमे से चार सौ से अधिक लेखों की सूची डॉ दशरथ शर्मा लेख संग्रह (प्रथम भाग) के रूप में प्रकाशित है। सुप्रसिद्ध इतिहासकार के. एम्. श्रीमाली के अनुसार प्रत्येक लेख को एक स्वतंत्र शोध कार्य कहा जा सकता है। डॉ॰ शर्मा प्राचीन भारतीय इतिहास के विद्वान थे परन्तु उनका सर्वाधिक शोध कार्य राजपूतकाल पर केन्द्रित रहा[13]। १९५९ में प्रकाशित अर्ली चौहान डाईनेस्टीस आपकी प्रथम प्रकाशित पुस्तक है। इसमें डॉ॰ शर्मा ने स्पष्ट लिखा है कि चालुक्य साम्राज्य तथा चौहानों में प्रतिस्पर्धा के कारण मुहम्मद ग़ौरी को भारत पर आक्रमण में सफलता प्राप्त हुई[14]। राजपूतों में शौर्य अथवा निपुण सेनानियों की कमी नहीं थे परन्तु राजपूत शासकों में सहयोग का अभाव था। इस पुस्तक के उत्तरार्ध में चौहान राज्यों की शासन व्यव्यस्था तथा जीवन पद्धति का वर्णन है। लेक्चर्स ऑन राजपूत हिस्टरी एंड कल्चर में डॉ॰ शर्मा ने राजपूतों की उत्पत्ति के बारे में कहा है कि प्रतिहार रघुवंशी लक्ष्मण के वंशज नहीं थे [15]। डॉ॰ शर्मा ने पन्द्रवीं शताब्दी में राजपूतों के पुनरुत्थान पर प्रकाश डालते हुए राणा कुम्भा तथा राव जोधा के शाषनों का विवरण दिया है[16]। अन्य व्याख्यानों में डॉ॰ शर्मा ने ८००-१००० ई. के राजपूत राज्यों के प्रशासन का वर्णन किया है। राजस्थान थ्रू दी एजिज़ (प्रथम भाग) में प्रागैतिहासिक काल से अल्लाउद्दीन की मृत्यु तक राजस्थान का इतिहास प्रस्तुत है। इस पुस्तक का प्रथम भाग डॉ॰ सत्यप्रकाश श्रीवास्तव ने लिखा था जिसमे डॉ॰ शर्मा ने आवश्यकतानुसार परविर्तन कर दिया। सन् ७०१ ई.से १३१६ ई. का संपूर्ण भाग डॉ॰ शर्मा द्वारा लिपिबद्ध है। डॉ॰ शर्मा के अनुसार सन् ७०१ ई. के पश्चात राजपूतों ने प्रधानता प्राप्त की तथा ऐतिहासिक राजस्थान का उद्भव हुआ। इस युग का प्रारंभ में म्लेच्छों के भारत पर आक्रमण का उत्तर प्रतिहारों ने दिया[17]। प्रतिहारों के पश्चात चौहान, तोमर तथा गाहडवालों ने ग़ज़नी के आक्रमकारियों का ११९२ ई. तक विरोध किया[18]। डॉ॰ शर्मा के अनुसार राजपूतों की पराजय में जाति व्यवस्था, भारतीय वयामंडल, शास्त्रधर्म का अभिमान, आक्रमणकारियों पर कट्टरपंथी इस्लाम का प्रभाव, बौद्ध और जैन धर्मों द्वारा अहिंसा का प्रचार आदि कारण प्रमुख थे। सम्राट पृथ्वीराज चौहान और उनका युग आपका चौथा ग्रन्थ है। अर्ली चौहान डाईनेस्टीस तथा राजस्थान थ्रू दी एजिज़ में पृथ्वीराज चौहान के विषय में जो अपूर्ण रह गया उसकी पूर्ति की गयी है। हिंदी भाषा में लिखित आपका यह एकमात्र ग्रन्थ है[19]।
रचनाएँ
[संपादित करें]प्रधान ग्रन्थ
[संपादित करें]- अर्ली चौहान डाईनेस्टीस प्रारंभिक चौहान राजवंशों के राजनीतिक इतिहास का अध्ययन, चौहान राजनीतिक संस्थाएं तथा चौहान प्रभुत्व में जीवन, ८०० से १३१६ ई. तक, प्रस्तावना लेखक: सरदार के एम् पन्निकर आई॰ एस॰ बी॰ एन॰ ०-८४२६-०६१८-१
- राजस्थान थ्रू दी एजिज़ (प्रथम भाग) राजस्थान का व्यापक तथा प्रामाणिक इतिहास, प्रकाशक: राजस्थान स्टेट आर्काइव्ज, बीकानेर १९६६, पुनर्मुद्रण २०१४
- लेक्चर्स ऑन राजपूत हिस्टरी एंड कल्चर (आर पी नोपानी भाषणमाला १९६९) प्रकाशक: मोतीलाल बनारसीदास, जवाहर नगर, दिल्ली, 1970. आई॰ एस॰ बी॰ एन॰ ०-८४२६-०२६२-३
- सम्राट पृथ्वीराज चौहान और उनका युग, प्रकाशक: राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर १९७२
एकत्रित लेख
[संपादित करें]- डॉ दशरथ शर्मा लेख संग्रह (प्रथम भाग), संपादक: मनोहर शर्मा, दिवाकर शर्मा; प्रकाशक: हिंदी विश्वभारती अनुसंधान परिषद्, बीकानेर १९७७
सम्पादित ग्रन्थ
[संपादित करें]- दयालदास की ख्यात (भाग २) प्रकाशक: अनूप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर १९५४
- क्यामखान रासो, प्रकाशक: राजस्थान पुरातत्व मंदिर, जयपुर १९५३
- पंवार वंश दर्पण, प्रकाशक: सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टिट्यूट, बीकानेर १९६०
- इन्द्रप्रस्थप्रबन्ध, प्रकाशक: राजस्थान पुरातत्व मंदिर, जोधपुर १९६३
- अमरसिंहभिषेक-काव्य, पिलानी १९५३
- संगीतरघुनंदनम, प्रकाशक: राजस्थान पुरातत्व मंदिर, जोधपुर १९७४
- रास तथा रासान्वयी काव्य (सह संपादन), प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी १९५९
- मुद्राराक्षस पूर्व संकथानक, प्रकाशक: अनूप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर १९४५
प्रस्तावनाएँ
[संपादित करें]- अचलदास खींची री वचनिका, प्रकाशक: सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टिट्यूट, बीकानेर १९६०
- अहिंसा और उसका विश्वव्यापी (लेखक:डॉ॰ कामता प्रसाद)
- इतिहास के रूप में हम्मीर महाकाव्य (मुनि जिनविजय द्वारा सम्पादित)
- ओझा निबन्ध संग्रह (भाग २) सह संपादन, प्रकाशक: साहित्य संस्थान, उदयपुर १९५४
- जसवंतउदयोत (लेखक: श्री अगरचंद नाहटा)
- जिनदतसूरी (लेखक: श्री अगरचंद नाहटा)
- जैन प्रशस्ति संग्रह, भाग २ (लेखक: पूर्णचन्द शास्त्री)
- दलपतविलास, प्रकाशक: सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टिट्यूट, बीकानेर १९६०
- पद्मिनी चरित्र चौपाई, प्रकाशक: सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टिट्यूट, बीकानेर
- भारत विजय (लेखक: डॉ॰ दशरथ ओझा)
- हम्मीर महाकव्य में एतिद्य सामग्री (लेखक: मुनि जिनविजय)
- हम्मीरायण, प्रकाशक: सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टिट्यूट, बीकानेर
- चुरु मंडल का इतिहास, प्रकाशक: लो. स. संस्थान, नगर श्री चूरु
समीक्षाएं
[संपादित करें]- करणी चरित्र (लेखक: श्री किशोरसिंह बाईस्पल)
- डींगल साहित्य (लेखक: डॉ॰ जगदीश प्रसाद) हिंदी वार्षिकी १९६०
- ढोला मारू रा दुहा, प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी
- बादली (लेखक; चन्द्रसिंह)
- बीकानेर के जैन लेख (लेखक: अगरचंद नाहटा)
- युग प्रधान जिनचंद्र सूरी
- राजस्थान के प्रवाद (लेखक: डॉ॰ कन्हैयालाल सहल)
- राजस्थान रा दुहा (लेखक: नरोत्तमदास स्वामी)
- राजस्थान साहित्य समिति के प्रकाश (वरदा III, अंक २, पृ ५१-४)
- रासो विमर्श (लेखक: डॉ॰ माताप्रसाद)
- हस्तलिखित ग्रंथों की खोज, प्रकाशक: साहित्य संस्थान, उदयपुर
- हिंदी साहित्य का आदिकाल (डॉ॰ हज़ारी प्रसाद द्विवेदी आलोचन)
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- लाइब्रेरी ऑफ़ कांग्रेस संग्रह सूची में हमारे पुरोधा-१९ डॉ॰ दशरथ शर्मा [1]
- यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो पुस्तकालय संग्रह में डॉ॰ दशरथ शर्मा द्वारा लिखित पुस्तकों की सूची [2]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ सारस्वत, डॉ॰ परमानन्द (१९८४) साहित्य़स्रष्टा श्री विद्याधर शास्त्री, प्रकाशक: गनु प्रकाशन, बीकानेर पृष्ठ १०
- ↑ शर्मा, डॉ॰ गिरिजाशंकर (२००३) हमारे पुरोधा-१९ डॉ॰ दशरथ शर्मा, प्रकाशक:राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर २००३ पृष्ठ ९-१० आई॰ एस॰ बी॰ एन॰ ८१-८८४४५-००-२
- ↑ "कल्चरल कोंटूर्स ऑफ़ इंडिया पृष्ठ ८३, प्रकाशक: अभिनव प्रकाशन दिल्ली आई॰ एस॰ बी॰ एन ९७८-०-३९१-०२३५८-१". मूल से 13 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अक्तूबर 2013.
- ↑ शर्मा, डॉ॰ गिरिजाशंकर पृष्ठ १०-१४
- ↑ "ए सोसिओ-पोलिटिकल स्टडी ऑफ़ दी वाल्मीकि रामायण". मूल से 13 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 अक्तूबर 2013.
- ↑ "सन वरशिप इन एन्शियंट इंडिया". मूल से 12 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 अक्तूबर 2013.
- ↑ "सोसिअल लाइफ इन नॉर्दर्न इंडिया". मूल से 12 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 अक्तूबर 2013.
- ↑ "दी परमार ८००-१३०५ ई.". मूल से 12 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 अक्तूबर 2013.
- ↑ फूड्स एंड ड्रिंक्स इन एन्शियंट इंडिया:फ्रॉम अरलीएस्ट टाइम्स टू १२०० ई.
- ↑ "सोसिअल एंड कल्चरल हिस्ट्री ऑफ़ नॉर्दर्न इंडिया १०००-१२०० ई.". मूल से 12 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 अक्तूबर 2013.
- ↑ "स्ट्रगल फॉर रिस्पोंसिबल गवर्नमेंट इन मारवार". मूल से 12 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 अक्तूबर 2013.
- ↑ "राज मारवार ड्यूरिंग ब्रिटिश पेरामाउंटसी". मूल से 12 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 अक्तूबर 2013.
- ↑ शर्मा, डॉ॰ गिरिजाशंकर, पृष्ठ २४
- ↑ अर्ली चौहान डाईनेस्टीस, पृष्ठ ८९, ९९
- ↑ लेक्चर्स ऑन राजपूत हिस्टरी एंड कल्चर, पृष्ठ १-६
- ↑ लेक्चर्स ऑन राजपूत हिस्टरी एंड कल्चर, पृष्ठ ४६-७५, ८५-९४
- ↑ राजस्थान थ्रू दी एजिज़ पृष्ठ १२०
- ↑ राजस्थान थ्रू दी एजिज़ पृष्ठ २६१-३००
- ↑ शर्मा, डॉ॰ गिरिजाशंकर पृष्ठ २२