दल-बदल

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दल-बदल का अभिप्राय -

  • यदि कोई निर्वाचित सांसद या विधायक यदि अपने दल की सदस्यता का परित्याग करता है तो उसकी सदस्यता रद्द या अयोग्य हो जायेगी।
  • यदि सदन में दल के निर्देश के विरुद्ध सांसद या विधायक कार्य करता है या निर्देश के विरुद्ध मतदान करना या ना करना तब भी अयोग्य घोषित कर दिया जायेगा लेकिन सामान्य विधेयक पर यह स्थिति लागू नहीं होती ।

सदन में तीन प्रकार के सदस्य होते है - (i) किसी दल के निर्वाचित सदस्य-

                      जो किसी दल से निर्वाचित हो कर आया है दल के निर्देश की अवहेलना कर दिया हो तो उसकी सदस्यता रद्द या अयोग्य कर दी जायेगी ।

(ii) स्वतंत्र निर्वाचित सदस्य (निर्दलीय सदस्य) -

                               यदि निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी दल की सदस्यता प्राप्त कर ले तो उसकी सदस्यता रद्द या अयोग्य हो जायेगी ।

(iii) मनोनीत सदस्य -

                यदि मनोनीत सदस्य छ माह के बाद किसी दल की सदस्यता प्राप्त कर ले तो उसकी सदस्यता रद्द या अयोग्य घोषित कर दी जायेगी ।

दल बदल की समस्या:- (१) सरकार के अस्थायी होने का खतरा अर्थात् बार-बार चुनाव करवाना पड़ेगा जो कि यह गम्भीर समस्या बन जायेगी इसके लिए संसदीय शासन न हो कर बल्कि अध्यक्षीय शासन करना पड़ेगा । (२) आया राम गया राम की तरह दल हो बदलना जिन्होंने एक ही दिन में 6 पार्टी बदली थी । (३) जब निर्वाचन होता है तो हर एक दल अपना चुनावी घोषणा पत्र लाता है जिसे मेंनीफेस्टो कहते है अगर इस पर चुना जीता और वह दल को छोड़ रहा हो तो यह जनादेश का भी उल्लघंन करता है चुकी मतदाता एक विशेष व्यक्ति को मतदान नहीं देते बल्कि दल या पार्टी को मतदान देते है ।

दल बदल के कुछ अपवाद:- (१) सदन का स्पीकर अर्थात् अध्यक्ष । (२) यदि किसी राजनीतिक दल के द्वारा किसी सांसद या विधायक को स्वयं अपने दल से निष्कासित कर दिया जाए । (३) या किसी दल के निर्वाचित सदस्यो के 2/3 सदस्य अन्य दल में विलय हो जाए या कोई नया दल बना लें तो भी उनकी सदस्यता रद्द नहीं होगी ।

दल बदल का मुख्य उद्देश्य:- (१) सरकार के अस्थायित्व को रोकना । (२) सांसद या विधायक दल के निर्देश के अधीन होना । (३) कभी-कभी दल का हित जनता की इच्छा से महत्वपूर्ण हो जाना ।

निर्धारण:-

     सदस्यता रद्द या अयोग्य घोषित करना केवल स्पीकर कर सकता है जिसमे स्पीकर निष्पक्ष कार्य करता है लेकिन इस पर भी विवाद भी हो गया क्योंकि कभी-कभी स्पीकर दल के हितों की ध्यान में रख कर अयोग्य घोषित करने में विलंब कर देती हैं।

इन सब विवादों पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय :- (१) किहोतो होलोहान वाद (1994) :- इसमें यह कहा गया की --

  (i) स्पीकर का निर्णय न्यायिक पुरनावलोकन के अन्तर्गत देखा जा सकता है।
  (ii) जब किसी सांसद या विधायक को अयोग्यता का निर्धारण करता है तब स्पीकर केवल एक अर्द्ध न्यायिक संस्था के रूप में करता  है क्योंकि स्पीकर सदन की संचालन के प्रकिया का निर्धारण भी करता है ।

(२) नाबेम राविया वाद :-

   (i) यदि स्पीकर को पद से हटाने की नोटिस दे दी गई है तो स्पीकर किसी को अयोग्य घोषित नहीं कर सकता।

परिणाम:-

{१} यह संसदीय शासन में प्रतिकूल है।
{२} उच्चतम न्यायालय द्वारा -
     (i) दल बदल,संसदीय शासन एक दूसरे के पूरक है जिसको कुलदीप नैयर वाद में कहा गया है।
     (ii) दल बदल का प्रयोग चयनात्मक रूप में होना चाहिए । किसी सामान्य विधेयक पर विचारक के लिए नहीं, इसका प्रयोग वहा हो जहां सरकार गिरने का खतरा हो ।