दक्षिण भारत का इतिहास

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दक्षिण भारत का इतिहास चार हज़ार वर्षों से अधिक प्राचीन है। इस दौरान दक्षिण भारत में अनेकों राजवंशों और साम्राज्यों का उत्थान-पतन हुआ।

दक्षिण भारत के इतिहास की अवधि लौह युग(1200 ईसा पूर्व से 200 ईसा पूर्व), संगम काल(600 ईसा पूर्व से 300 ई.) ई. से आरंभ होती है। उस समय चेर, चोल, पांड्यन, त्रावणकोर, कोचीन, ज़ामोरिन, कोलाथुनाडु, चालुक्य, पल्लव, सातवाहन, राष्ट्रकूट, काकतीय, रेड्डी वंश, सेउना (यादव) वंश, विजयनगर, बहमनी साम्राज्य और होयसला के राजवंश अपने चरम पर थे। जब उत्तरी सेनाओं ने दक्षिणी भारत पर आक्रमण किया तो ये राजवंश लगातार कभी आपस में तो कभी बाहरी ताकतों से लड़ते रहे।

विजयनगर साम्राज्य मुस्लिम हस्तक्षेप के कारण उनके विरोध में उभरकर सामने आया। 16वीं और 18वीं सदी के दौरान जब यूरोपीय ताकतों का दखल हुआ तब दक्षिणी राज्यों ख़ासकर मैसूर साम्राज्य के टीपू सुल्तान ने नए खतरों का विरोध किया। अधिकांश ने अंग्रेज़ी आधिपत्य के सामने अपने घुटने टेक दिए। अंग्रेज़ों ने मद्रास प्रेसीडेंसी का निर्माण किया, जो शेष दक्षिण भारत के लिए एक प्रशासनिक केंद्र के रूप में कार्य करती थी। भारतीय स्वतंत्रता के बाद दक्षिण भारत भाषिक रूप से आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना और केरल राज्यों में विभाजित हो गया।

प्रागैतिहासिक काल से लौह युग तक[संपादित करें]

दक्षिण भारत का मध्यपाषाण युग 2500 ईसा पूर्व तक, 6000 से 3000 ईसा पूर्व तक पाषाणयुग तथा 2500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व तक नवपाषाण युग रहा। इसके बाद लौह युग आया, जिसे महापाषाणकालीन समाधि के रूप में चिह्नित किया जाता है।[1] तिरुनेलवेली जिले के आदिचनल्लूर और उत्तरी भारत में किए गए तुलनात्मक उत्खनन से महापाषाण संस्कृति के दक्षिण की ओर जाने का प्रमाण मिला है।[2] कृष्णा तुंगभद्रा घाटी[3] दक्षिण भारत की महापाषाण संस्कृति की पहचान थी।

संदर्भ[संपादित करें]

  1. ऐसा ही एक स्थल तमिलनाडु में कृष्णगिरी में पाया गया था— "स्टैप्स टू प्रिज़र्व मेगालिथिक ब्यूरियल साइट". द हिंदू. चेन्नई, भारत. 6 अक्तूबर 2006. मूल से 18 सितंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 जून 2023.
  2. के. ए. एन. शास्त्री, अ हिस्ट्री ऑफ़ साउथ इंडिया, पृष्ठ. 49–51
  3. मूर्ति, एम. एल. के. (2003). प्री- एंड प्रोटोहिस्टॉरिक आंध्र प्रदेश अप टू 500 बी.सी. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788125024750.