थनैला रोग

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स्थनशोथ से ग्रसित एक गाय
इस गाय को थनैला रोग होने के बाद गेंग्रीन हो गया है।

थनेला रोग या स्तनशोथ (Mastitis) दुधारू पशुओं को लगने वाला एक रोग है। थनैला रोग से प्रभावित पशुओं को रोग के प्रारंभ में थन गर्म हो जाता हैं तथा उसमें दर्द एवं सूजन हो जाती है। शारीरिक तापमान भी बढ़ जाता हैं। लक्षण प्रकट होते ही दूध की गुणवत्ता प्रभावित होती है। दूध में छटका, खून एवं पीभ (पस) की अधिकता हो जाती हैं। पशु खाना-पीना छोड़ देता है एवं अरूचि से ग्रसित हो जाता हैं।[1]

यह बीमारी समान्यतः गाय, भैंस, बकरी एवं सूअर समेत लगभग सभी वैसे पशुओं में पायी जाती है, जो अपने बच्चों को दूध पिलातीं हैं। थनैला बीमारी पशुओं में कई प्रकार के जीवाणु, विषाणु, फफूँद एवं यीस्ट तथा मोल्ड के संक्रमण से होता हैं। इसके अलावा चोट तथा मौसमी प्रतिकूलताओं के कारण भी थनैला हो जाता हैं।

प्राचीन काल से यह बीमारी दूध देने वाले पशुओं एवं उनके पशुपालको के लिए चिंता का विषय बना हुआ हैं। पशु धन विकास के साथ श्वेत क्रांति की पूर्ण सफलता में अकेले यह बीमारी सबसे बड़ी बाधक हैं। इस बीमारी से पूरे भारत में प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये का नुकसान होता हैं, जो अतंतः पशुपालकों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता हैं।[2]

कारण[संपादित करें]

थनैला एक जीवाणुजनित रोग है जो मुख्य रूप से गाय, भैंस और बकरियों में पाया जाता है। इस रोग का मुख्य कारण स्ट्रेप्टोकॉकस बैक्टीरिया होता है। गाय में थनैला रोग का मुख्य कारण हो सकता है पेस्चुरेला मल्टोसिडा, स्ट्रेप्टोकॉकस ज़ूएपिडेमिकस, स्ट्रेप्टोकॉकस अगालैकटिय, स्ट्रेप्टोकॉकस प्योजेनिस, माइकोबैक्टीरियम बोविस, क्लेब्सिएला एसपीपी, ब्रूसेला एबॉर्टस, एशेरिकिया कोलाइ (ई. कोलाइ) और लेप्टोस्पिरा पोमोना। [3]

लक्षण[संपादित करें]

थनैला रोग से ग्रसित पशु का दूध (बाएँ) तथा सामान्य (रोगरहित) पशु का दूध (दाएँ)

अलाक्षणिक या उपलाक्षणिक प्रकार के रोग में थन व दूध बिल्कुल सामान्य प्रतीत होते हैं लेकिन प्रयोगशाला में दूध की जाँच द्वारा रोग का निदान किया जा सकता है। लाक्षणिक रोग में जहाँ कुछ पशुओं में केवल दूध में मवाद/छिछड़े या खून आदि आता है तथा थन लगभग सामान्य प्रतीत होता है वहीं कुछ पशुओं में थन में सूजन या कडापन/गर्मी के साथ-साथ दूध असामान्य पाया जाता है। कुछ असामान्य प्रकार के रोग में थन सड़ कर गिर जाता है। ज़्यादातर पशुओं में बुखार आदि नहीं होता। रोग का उपचार समय पर न कराने से थन की सामान्य सूजन बढ़ कर अपरिवर्तनीय हो जाती है और थन लकडी की तरह कडा हो जाता है। इस अवस्था के बाद थन से दूध आना स्थाई रूप से बंद हो जाता है। सामान्यतः प्रारम्भ में मेंएक या दो थन प्रभावित होते हैं जो कि बाद में अन्य थनों में भी रोग फैल सकता है। कुछ पशुओं में दूध का स्वाद बदल कर नमकीन हो जाता है।[4]

निदान[संपादित करें]

  1. लक्षणों द्वारा और इतिहास द्वारा: रोग के लक्षणों और पशु के इतिहास के आधार पर रोग का निदान किया जा सकता है।
  2. कैलिफोर्निया मास्टाइटिस टेस्ट: यह टेस्ट गायों की स्तनों के संक्रमण की जांच के लिए किया जाता है।[5]
  3. स्ट्रिप कप टेस्ट: यह टेस्ट दूध के संक्रमण की जाँच के लिए किया जाता है, जिसमें दूध को एक कप में इकट्ठा किया जाता है और फिर इसे देखा जाता है कि क्या कोई परिवर्तन है।[6]
  4. क्लोराइड टेस्ट, कैटलेस टेस्ट: ये टेस्ट जीवाणु संक्रमण की जांच के लिए किए जाते हैं।
  5. ब्रोमो क्रेसेल पर्पल टेस्ट: यह टेस्ट दूध में बैक्टीरियल संक्रमण की जांच के लिए किया जाता है।
  6. ब्रोमोथाइमोल ब्लू टेस्ट: यह टेस्ट भोजन में उत्पन्न बैक्टीरियल संक्रमण की जांच के लिए किया जाता है।[7]

उपचार[संपादित करें]

रोग का सफल उपचार प्रारम्भिक अवस्थाओं में ही संभव है अन्यथा रोग के बढ़ जाने पर थन बचा पाना कठिन हो जाता है। इससे बचने के लिए दुधारु पशु के दूध की जाँच समय पर करवा कर जीवाणुनाशक औषधियों द्वारा उपचार पशु चिकित्सक द्वारा करवाना चाहिए। प्रायः यह औषधियां थन में ट्‌यूब चढा कर तथा साथ ही मांसपेशी में इंजेक्शन द्वारा दी जाती है।

थन में ट्‌यूब चढा कर उपचार के दौरान पशु का दूध पीने योग्य नहीं होता। अतः अंतिम ट्‌यूब चढने के 48 घंटे बाद तक का दूध प्रयोग में नहीं लाना चाहिए। यह अत्यन्त आवश्यक है कि उपचार पूर्णरूपेण किया जाये, बीच में न छोडें। इसके अतिरिक्त यह आशा नहीं रखनी चाहिए कि (कम से कम) वर्तमान ब्यांत में पशु उपचार के बाद पुनः सामान्य पूरा दूध देने लग जाएगा।

थनैला बीमारी की रोकथाम प्रभावी ढ़ंग से करने के लिए निम्नलिखित विन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक हैं।

  • 1. दूधारू पशुओं के रहने के स्थान की नियमित सफाई जरूरी हैं। फिनाईल के घोल तथा अमोनिया कम्पाउन्ड का छिड़काव करना चाहिए।
  • 2. दूध दुहने के पश्चात् थन की यथोचित सफाई लिए लाल पोटाश या सेवलोन का प्रयोग किया जा सकता है।
  • 3. दूधारू पशुओं में दूध बन्द होने की स्थिति में ड्राई थेरेपी द्वारा उचित ईलाज करायी जानी चाहिए।
  • 4. थनैला होने पर तुरंत पशु चिकित्सक की सलाह से उचित ईलाज करायी जाय।
  • 5. दूध की दुहाई निश्चित अंतराल पर की जाय। थनैला बीमारी से अर्थिक क्षति का मूल्याकंन करने के क्रम में एक आश्चर्यजनक तथ्य सामने आता है जिसमें यह देखा गया हैं कि प्रत्यक्ष रूप मे यह बीमारी जितना नुकसान करती हैं, उससे कहीं ज्यादा अप्रत्यक्ष रूप में पशुपालकों को आर्थिक नुकसान पहुँचाता हैं। कभी-कभी थनैला रोग के लक्षण प्रकट नहीं होते हैं परन्तु दूध की कमी, दूध की गुणवत्ता में ह्रास एवं बिसुखने के पश्चात (ड्राई काउ) थन का आंशिक या पूर्णरूपेण क्षति हो जाता है, जो अगले बियान के प्रारंभ में प्रकट होती है।

रोग से बचाव/रोकथाम[संपादित करें]

1. पशुओं के बांधे जाने वाले स्थान/बैठने के स्थान व दूध दुहने के स्थान की सफाई का विशेष ध्यान रखें।

2. दूध दुहने की तकनीक सही होनी चाहिए जिससे थन को किसी प्रकार की चोट न पहुंचे।

3. थन में किसी प्रकार की चोट (मामूली खरोंच भी) का समुचित उपचार तुरंत करायें।

4. थन का उपचार दुहने से पहले व बाद में दवा के घोल में (पोटेशियम परमैगनेट 1:1000 या क्लोरहेक्सिडीन 0.5 प्रतिशत) डुबो कर करें।

5. दूध की धार कभी भी फर्श पर न मारें।

6. समय-समय पर दूध की जाँच (काले बर्तन पर धार देकर) या प्रयोगशाला में करवाते रहें।

7. शुष्क पशु उपचार भी ब्यांने के बाद थनैला रोग होने की संभावना लगभग समाप्त कर देता है। इसके लिए पशु चिकित्सक से संपर्क करें।

8. रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें तथा उन्हें दुहने वाले भी अलग हों। अगर ऐसा संभव न हो तो रोगी पशु सबसे अंत में दुहें।[8]

इन्हें भी पढ़े[संपादित करें]

  1. जानवरों में रेबीज के लक्षण
  2. एंथ्रेक्स रोग
  3. बरुसेलोसिस रोग
  4. लम्पी स्कीन डिजीज
  5. जानवरों में जीवाणु जनित रोग
  6. जानवरों में टीकाकरण

संदर्भ सूची[संपादित करें]

  1. Cheng, Wei Nee; Han, Sung Gu (2020-11). "Bovine mastitis: risk factors, therapeutic strategies, and alternative treatments — A review". Asian-Australasian Journal of Animal Sciences. 33 (11): 1699–1713. PMID 32777908. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 1011-2367. डीओआइ:10.5713/ajas.20.0156. पी॰एम॰सी॰ 7649072 |pmc= के मान की जाँच करें (मदद). |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  2. "Mastitis in dairy cattle", Wikipedia (अंग्रेज़ी में), 2024-03-28, अभिगमन तिथि 2024-03-30
  3. ""Mastitis in Cattle: Causes, Symptoms, and Effective Management"". The Rajasthan Express (अंग्रेज़ी में). 2024-03-28. अभिगमन तिथि 2024-03-30.
  4. "Mastitis in Cattle - Reproductive System". MSD Veterinary Manual (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-03-30.
  5. "California mastitis test", Wikipedia (अंग्रेज़ी में), 2022-08-20, अभिगमन तिथि 2024-03-30
  6. "NADIS Animal Health Skills - Mastitis Part 4 - Detecting and Treating Clinical Mastitis". www.nadis.org.uk. अभिगमन तिथि 2024-03-30.
  7. Marschke, R. J.; Kitchen, B. J. (1985-05). "Detection of bovine mastitis by bromothymol blue pH indicator test". Journal of Dairy Science. 68 (5): 1263–1269. PMID 3842865. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0022-0302. डीओआइ:10.3168/jds.S0022-0302(85)80955-3. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  8. "Prevention of Mastitis in Fresh Cows | Animal & Food Sciences". afs.ca.uky.edu. अभिगमन तिथि 2024-03-30.

Let down of milk in cow or buffalo | गाय भैंस में दूध का उतरना== बाहरी कड़ियाँ ==

गाय भैंस में थनैला रोग की पहचान | Identification of mastitis disease in cow buffalo