त्रिफला

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एम्ब्लिका ओफिशिनालिस

त्रिफला एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक रासायनिक फ़ार्मुला है जिसमें अमलकी (आंवला (Emblica officinalis)), बिभीतक (बहेडा) (Terminalia bellirica) और हरितकी (हरड़ Terminalia chebula) के बीज निकाल कर (1 भाग हरड, 2 भाग बहेड़ा, 3 भाग आंवला) 1:2:3 मात्रा में लिया जाता है। त्रिफला शब्द का शाब्दिक अर्थ है "तीन फल"।

संयमित आहार-विहार के साथ त्रिफला का सेवन करने वाले व्यक्तियों को हृदयरोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, नेत्ररोग, पेट के विकार, मोटापा आदि होने की संभावना नहीं होती। यह कोई 20 प्रकार के प्रमेह, विविध कुष्ठरोग, विषमज्वर व सूजन को नष्ट करता है। अस्थि, केश, दाँत व पाचन-संस्थान को बलवान बनाता है। इसका नियमित सेवन शरीर को निरामय, सक्षम व फुर्तीला बनाता है। यदि गर्म पानी के साथ सोते समय एक चम्मच ले लिया जाए तो क़ब्ज़ नही रहता।

क्रिया-विधि[संपादित करें]

न तो सक्रिय कारकों और न ही क्रिया-विधि की खास तौर पर पहचान की गई है। हालांकि, यह सुझाव दिया गया है यह ट्यूमर की बढ़त को नियंत्रि‍त करने में ईआरके (ERK) और पी53 (p53), की भूमिका को प्रभावित कर सकता हैं।[1]

स्वास्थ्य-संबंधी लाभ[संपादित करें]

त्रिफला पाचन और भूख को बढ़ाने, लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने और शरीर में वसा की अवांछनीय मात्रा को हटाने में सहायता के लिए इस्तेमाल किया जाता है।मुँह में घुलने पर त्रि‍फला का उपयोग रक्त के जमाव और सिर दर्द को दूर करने के लिए किया जाता है। इसके अन्य फ़ायदों में रक्त शर्करा के स्तरों को बनाए रखने में मदद करना और त्वचा के रंग और टोन में सुधार लाना शामिल हैं।

त्रिफला शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकता है। त्रिफला की तीनों जड़ीबूटियाँ आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं, जमाव और अधिकता की स्थिति को कम करती हैं तथा पाचन एवं पोषक तत्वों के सम्मिलन को बेहतर बनाती हैं।

Puri (2003) में, आंवला के तहत रसायन में इस यौगिक मिश्रण के तीन महत्वपूर्ण घटकों (आमलाकी, हरिताकी और बिभिता‍की) से जुड़े विवादों, साथ ही आयुर्वेद में इसके उपयोग, इससे बनाई जाने वाली विभिन्न औषधियों और उनके औषधीय और चिकित्सीय गुणों की चर्चा की गई है।[2]

औषधि के रूप में त्रिफला[संपादित करें]

  1. .रात को सोते वक्त 5 ग्राम (एक चम्मच भर) त्रिफला चूर्ण हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होती है।
  2. .त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें इससे कब्ज दूर होती है।
  3. इसके सेवन से नेत्रज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है।
  4. सुबह पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण साफ़ मिट्टी के बर्तन में भिगो कर रख दें, शाम को छानकर पी लें। शाम को उसी त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, इसे सुबह पी लें। इस पानी से आँखें भी धो ले। मुँह के छाले व आँखों की जलन कुछ ही समय में ठीक हो जायेंगे।
  5. शाम को एक गिलास पानी में एक चम्मच त्रिफला भिगो दे सुबह मसल कर नितार कर इस जल से आँखों को धोने से नेत्रों की ज्योति बढती है।
  6. एक चम्मच बारीख त्रिफला चूर्ण, गाय का घी10 ग्राम व शहद 5 ग्राम एक साथ मिलाकर नियमित सेवन करने से आँखों का मोतियाबिंद, काँचबिंदु, दृष्टि दोष आदि नेत्ररोग दूर होते हैं। और बुढ़ापे तक आँखों की रोशनी अचल रहती है।
  7. त्रिफला के चूर्ण को गौमूत्र के साथ लेने से अफारा, उदर शूल, प्लीहा वृद्धि आदि अनेकों तरह के पेट के रोग दूर हो जाते हैं।
  8. त्रिफला शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकता है, त्रिफला की तीनों जड़ीबूटियां आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं।
  9. चर्मरोगों में (दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि) सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए।
  10. एक चम्मच त्रिफला को एक गिलास ताजे पानी में दो- तीन घंटे के लिए भिगो दे, इस पानी को घूंट भर मुंह में थोड़ी देर के लिए डाल कर अच्छे से कई बार घुमाये और इसे निकाल दे। कभी कभार त्रिफला चूर्ण से मंजन भी करें इससे मुँह आने की बीमारी, मुंह के छाले ठीक होंगे, अरूचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी।
  11. त्रिफला, हल्दी, चिरायता, नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिला कर मिश्रण को आधा किलो पानी में जब तक पकाएँ कि पानी आधा रह जाए और इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह शाम गुड या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द कि समस्या दूर हो जाती है।
  12. त्रिफला एंटिसेप्टिक की तरह से भी काम करता है। इस का काढ़ा बनाकर घाव धोने से घाव जल्दी भर जाते है।
  13. त्रिफला पाचन और भूख को बढ़ाने वाला और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने वाला है।
  14. मोटापा कम करने के लिए त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर ले। त्रिफला चूर्ण पानी में उबालकर, शहद मिलाकर पीने से चरबी कम होती है।
  15. त्रिफला का सेवन मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में बहुत लाभकारी है। प्रमेह आदि में शहद के साथ त्रिफला लेने से अत्यंत लाभ होता है।
  16. त्रिफला की राख शहद में मिलाकर गरमी से हुए त्वचा के चकतों पर लगाने से राहत मिलती है।
  17. 5 ग्राम त्रिफला पानी के साथ लेने से जीर्ण ज्वर के रोग ठीक होते है।
  18. 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गोमूत्र या शहद के साथ एक माह तक लेने से कामला रोग मिट जाता है।
  19. टॉन्सिल्स के रोगी को त्रिफला के पानी से बार-बार गरारे करवायें।
  20. त्रिफला दुर्बलता का नास करता है और स्मृति को बढाता है। दुर्बलता का नास करने के लिए हरड़, बहेडा, आँवला, घी और शक्कर मिला कर खाना चाहिए।
  21. त्रिफला, तिल का तेल और शहद समान मात्रा में मिलाकर इस मिश्रण कि 10 ग्राम मात्रा हर रोज गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट, मासिक धर्म और दमे की तकलीफे दूर होती है इसे महीने भर लेने से शरीर का सुद्धिकरन हो जाता है और यदि 3 महीने तक नियमित सेवन करने से चेहरे पर कांती आ जाती है।
  22. त्रिफला, शहद और घृतकुमारी तीनो को मिला कर जो रसायन बनता है वह सप्त धातु पोषक होता है। त्रिफला रसायन कल्प त्रिदोषनाशक, इंद्रिय बलवर्धक विशेषकर नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकने वाला व मेधाशक्ति बढ़ाने वाला है। दृष्टि दोष, रतौंधी (रात को दिखाई न देना), मोतियाबिंद, काँचबिंदु आदि नेत्ररोगों से रक्षा होती है और बाल काले, घने व मजबूत हो जाते हैं।
  23. डेढ़ माह तक इस रसायन का सेवन करने से स्मृति, बुद्धि, बल व वीर्य में वृद्धि होती है।

त्रिफला से कायाकल्प[संपादित करें]

  1. एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर चुस्त होता है।
  2. दो वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर निरोगी हो जाता हैं।
  3. तीन वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति बढ जाती है।
  4. चार वर्ष तक नियमित सेवन करने से त्वचा कोमल व सुंदर हो जाती है।
  5. पांच वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुद्धि का विकास होकर कुशाग्र हो जाती है।
  6. छः वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर शक्ति में पर्याप्त वृद्धि होती है।
  7. सात वर्ष तक नियमित सेवन करने से बाल फिर से सफ़ेद से काले हो जाते हैं।
  8. आठ वर्ष तक नियमित सेवन करने से वृद्धाव्स्था से पुन: योवन लोट आता है।
  9. नौ वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति कुशाग्र हो जाती है और सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु भी आसानी से दिखाई देने लगती हैं।
  10. दस वर्ष तक नियमित सेवन करने से वाणी मधुर हो जाती है यानी गले में सरस्वती का वास हो जाता है

त्रिफला पर समकालीन अनुसंधान[संपादित करें]

संभावित एंटीनियोप्लास्टिक (अर्बुद विरोधी) गुण[संपादित करें]

भारत के कई प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों, जैसे भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय द्वा रा हाल में की गई शोध से यह पता चला है कि एक महत्वपूर्ण विषनाशक और कैंसर विरोधी कारक के रूप में त्रिफला में अत्यंत उपयोगी औषधीय गुण हैं।[3]

कैंसर लेटर पत्रि‍का के जनवरी 2006 के अंक में प्रकाशित एक अध्ययन "एक कैंसर विरोधी औषधि के रूप में पारंपरिक आयुर्वेदिक मिश्रण त्रिफला की क्षमता" में, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के विकिरण जीवविज्ञान और स्वास्थ्य विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने पाया कि त्रिफला में ट्यूमर कोशिकाओं में साइटोटॉक्सिसिटी (कोशिका मृत्यु) प्रेरित करने की क्षमता है लेकिन सामान्य कोशिकाओं को वह इस रूप में प्रभावित नहीं करता.[3]

इसी प्रकार, जवाहर लाल विश्वविद्यालय में विकिरण एवं कैंसर जीवविज्ञान प्रयोगशाला के जरनल ऑफ़ एक्सपेरिमेंट एंड क्लिनिकल कैंसर रिसर्च में प्रकाशित दिसंबर 2005 की एक रिपोर्ट के अनुसार त्रिफला पशुओं में ट्यूमर के मामलों को कम करने और एंटीऑक्सीडेंट स्थिति बढ़ाने में प्रभावी है। घटक. "[3]

गैलिक एसिड

गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर के वनस्पति विज्ञान विभाग की एक अन्य रिपोर्ट ने पाया कि कैंसर कोशिका-रेखाओं पर "त्रिफला" का साइटोटॉक्सिक प्रभाव बहुत अच्छा था और यह प्रभाव इस शोध में उपयोग की गई सभी कैंसर कोशिका रेखाओं पर एक समान था।" फ़रवरी 2005 में जरनल ऑफ़ एथ्नोफ़ार्मेकोलॉजी में प्रकाशित परिणामों में यह कहा गया कि संभवतः "त्रिफला" में मौजूद एक प्रमुख पॉलीफ़ि‍नॉल, गैलिक अम्ल इन परिणामों का कारण हो सकता है। इन्हीं लेखकों ने पूर्व में यह बताया था त्रिफला में "अत्यधिक एंटीम्यूटेजेनिक/ एंटीकार्सिनोजेनिक क्षमता थी।"

संभावित एंटीऑक्सीडेंट गुण[संपादित करें]

फरवरी 2006 में, डॉ॰ ए. एल. मुदलियार पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ़ बेसिक मेडिकल साइंसेस, मद्रास विश्वविद्यालय, तारामणि कैंपस, के वैज्ञानिकों ने बताया कि त्रिफला की पूरक खुराक देने से एंटीऑक्सीडेंट में शोर-जनित-तनाव से होने वाले परिवर्तनों और साथ ही चूहों में कोशिका-प्रेरित प्रतिरोधक प्रतिक्रिया की रोकथाम होती है। इसका अर्थ यह है कि त्रिफला एक तनाव-विरोधी कारक है। इस अध्ययन का निष्कर्ष यह था कि अपने एंटीऑक्सिडेंट गुणों के कारण त्रिफला शोर-जनित-तनाव से होने वाले परिवर्तनों को वापस ज्यों का त्यों कर देता है।[3]

ट्रॉम्बे स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के विकिरण रसायन विज्ञान और रासायनिक डायनेमिक्स प्रभाग में संचालित अध्ययनों में यह पता चला कि त्रिफला के तीनों घटक सक्रिय हैं और वे अलग-अलग परिस्थितियों में कुछ भिन्न गतिविधियों का प्रदर्शन करते हैं और इन अलग-अलग घटकों की संयोजित गतिविधि के कारण त्रिफला मिश्रण के और अधिक कार्यकुशल होने की अपेक्षा की जाती है। इस अध्ययन के परिणाम फ़ाइटोथेरेपी रिसर्च के जुलाई 2005 के अंक में प्रकाशित किए गए थे। दो महीने बाद, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने त्रिफला के एक घटक की रेडियो रक्षात्मक क्षमता की जानकारी दी.

इसी तरह के परिणाम कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज, मणिपाल की ओर से जरनल ऑफ़ ऑल्टरनेटिव एंड काँप्लिमेंटरी मेडिसिन में प्रकाशित किए गए थे जहां वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि "आयुर्वेदिक रसायन औषधि त्रिफला की मदद से विकिरण टॉलरेंस में 1.4 ग्रे गामा-किरणन की वृद्धि हुई". उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि जहां त्रिफला से गैस्ट्रोइंटेस्टिनल और हीमोपोयटिक मृत्यु से सुरक्षा प्रदान की जा सकी, वहीं पशु 11 GY से अधिक किरणन के संपर्क में आने के बाद 30 दिनों से अधिक नहीं जी पाए.[4]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Shi Y, Sahu RP, Srivastava SK (2008). "Triphala inhibits both in vitro and in vivo xenograft growth of pancreatic tumor cells by inducing apoptosis". BMC Cancer. 8: 294. PMID 18847491. डीओआइ:10.1186/1471-2407-8-294. पी॰एम॰सी॰ 2576337. मूल से 24 फ़रवरी 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 अगस्त 2010.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  2. Harbans Singh Puri (2003). Rasayana: ayurvedic herbs for longevity and rejuvenation. CRC Press. पपृ॰ 30–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780415284899. मूल से 31 दिसंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 जुलाई 2010.
  3. Jagetia G.C.; एवं अन्य (2004). "Triphala, an ayurvedic rasayana drug, protects mice against radiation-induced lethality by free-radical scavenging (online)". J Altern Complement Med. 10 (6): 971–978. PMID 15673991. डीओआइ:10.1089/acm.2004.10.971. Explicit use of et al. in: |author= (मदद); |title= में बाहरी कड़ी (मदद)