तू फू

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तू फू
दाढ़ी, मूंछ, और काले हेड्गीर के साथ बाद के दिनों का तू फू का चित्र।
तू फू का कोई समकालीन चित्र नहीं है; यह एक बाद में कलाकार की छाप है।
जन्म७१२
चांगआन
मौत770 (आयु 57–58)
चांगशा
पेशाकवि

तू फू, चीन के तंग राजवंश के महान कवियों में से एक थे। चीन के अन्य लोगों की तरह अं लुशान का उनके जीवन पर अधिक प्रभाव पड़ा था। दू फू के जीवन के आखिरी पंद्रह साल अत्याधिक अशांति से घिरे रहे।

प्रारंभिक जीवन[संपादित करें]

उनका जन्म सन् ७१२ में हुआ था। हालाँकि उनके जन्म स्थान के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है पर वे अपने परिवार के पारम्परिक स्थान चांगआन को अपना घर मानते थे।अपनी माता की मृत्यु के बाद वे अपने रिश्तेदार के घर पले बड़े। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा एक सरकारी नौकरी पाने के उद्देश्य से हुई थी। किशोर अवस्था में उन्होंने ऐसी नौकरी की परीक्षा भी ली पर उत्तीर्ण नहीं हो पाए। उन्हें आश्चर्य था इस परिणाम पर और उन्होंने ऐसा मन की उनकी प्रस्तुति संभवतः उत्तर जाँचने वाले शिक्षकों के समझ के परे था। इस असफलता के पश्चात् वे शानदोंग और हेबेई की और निकल पड़े। उन्हें सरकारी नौकरी का एक और अवसर मिला। पिता की मृत्यु के पश्चात् वे सरकारी नौकर बन सकते थे पर उन्होंने इस अवसर को अपने भाई के लिए छोड़ दिया। सन ७४४ में तू फू पहली बार प्रसिद्ध कवि ली बै के संपर्क में आए। उनसे मिलने के बाद तू फू को उस एकांतप्रिय विद्वान कवि के जीवन के दर्शन हुए जिसकी उन्हें सरकारी नौकरी नहीं पाने के पश्चात् तलाश थी। डेविड यंग के अनुसार यह तू फू के आने वाले कलात्मक जीवन का सर्वाधिक रचनात्मक प्रभाव था। तू फू ने ली बाई से सम्बंधित दस कविताएँ लिखीं।

तू फू का अध्ययन क्षेत्र्

काव्य जीवन[संपादित करें]

जहाँ तक तू फू के काव्य जीवन का प्रश्न है, यह कहा जा सकता है की प्रारम्भिक समय में उनकी लोकप्रियता नगण्य थी। पर जैसे -जैसे उनकी लगभग पंद्रह सौ कृतियों के बारे में जानकारी बढ़ी, उनकी लोकप्रियता भी बढ़ती गई। पाश्चात्य देशों में उन्हें चीन के शेक्सपियर, मिल्टन और विलियम वर्द्स्वर्थ की उपाधि से विभूषित किया जाने लगा। दूसरे शब्दों में उनकी तुलना पश्चिम देशों के सभी प्रकार के कवियों से की जाने लगी। उनकी कृत्यों के संग्रह के आधार पर उन्हें ऋषि तथा इतिहासकार कवि के नाम से जाना गया। तू फू की कविताओं में उनके समय में होने वाले चीन की समकालिक घटनाओं का विवरण दिखता है। सन् ७५५ में आरम्भ हुए अं लुशान विद्रोह में हुए नरसंहार ने तू फू के आतंरिक कवि को निखारा था। उन्होंने लोगों की पीड़ा को अपनी कृतियों में बांधा। अपनी व्यथा भी उन्होंने अपनी इन पंक्तियों में बयान की - जब और कागज़ मेरी टेबल पर रखे जाते हैं तो मुझे पागल की तरह जोर से चिल्लाने का मन करता है। जब वह ७५९ में गांसू गए तो संभवतः अपनी तथा समाज की निराशा को अपनी उन साठ रचनाओं में उजागर किया जो उन्होंने मात्र छे सप्ताह में लिखे थे। आर्थिक विषमताओं से जूझते तू फू सन् ७२६ में वे अपने जन्म स्थान की और चल पड़े। हालाँकि उनकी सेहत काफी खराब हो गयी थी, फिर भी वो अपने परिवार के साथ बैडिचेंग में दो वर्षों तक रहे। विपरीत परिस्तिथयों में संभवतः फू सर्वाधिक कविताओं की रचना की। उनकी अंतिम कृत्यों में से एक था 'मेरे सेवानिवृत मित्र वेई के लिए।' इस रचना में उन्होंने सरकारी नौकरी में होने वाले स्थानांतरण से उत्पन्न होने वाली मित्रों के बीच बिछड़ने के दर्द को प्रस्तुत किया था। तू फू को इतिहासिकार कवि इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपनी कविताओं में सैन्य बल की युक्ति पर, अपने आस पास हो रही घटनाओं तथा आम लोगों के जीवन पर इन घटनाओं के प्रभाव की सुश्पष्ट विवरणी दी है। इस कवि के राजनैतिक व्याख्यान कभी भी उनके किसी गणित से प्रेरित नहीं होते थे। उनकी एक मात्र प्रेरणा राजनैतिक घटनाओं से उत्पन्न भावना होती थी। समकालिक घटनाओं की ऐसी विवरणी सरकारी अभिलेख में नहीं पायी जाती है। तू फू को ऋषि कवि के नाम से जाना जाता है। इस उपाधि के स्रोत उनकी उस क्षमता में है जिसके बल पर वे अपनी निजी व्यथा को आम लोगों की कहानी बना कर पेश करते थे। फलस्वरूप, उनकी कविताओं में भाषा और तथ्य दोनों ही दैनिक जीवन से सम्बन्ध होते थे।

अं लुशान विद्रोह[संपादित करें]

अं लुशान विद्रोह चीन के तांग राजवंश के खिलाफ एक विनाशकारी विद्रोह था। विद्रोह की शुरुआत तब हुई जब जनरल लुशान ने १६ दिसंबर ७५५ को अपने आप को उत्तरी चीन में सम्राट घोषित कर दिया। इस प्रकार एक प्रतिद्वंद्वी यान राजवंश की स्थापना हुई। इस युद्ध का अंत १७ फ़रवरी ७६३ में यान के गिरने से हुआ हाँलाकि इसका प्रभाव अधिक सालों तक रहा। इस घटना को एक-शी विद्रोह या एक-शि गड़बड़ी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि अं लुशान की मौत के बाद इस युद्ध को उनके बेटे एवं सहयोगी और उत्तराधिकारी ने जारी रखा था। उस युग के चौदहवें वर्ष में शुरू होने के कारण यह तियानबाओ विद्रोह के रूप में भी जाना जाता है। तीन तंग सम्राटों के शासन के बाद विद्रोह का अंत तो हो गया। क्षेत्रीय शक्तियों की एक विस्तृत श्रृंखला तथा तंग राजवंश के वफादार ने हिस्सा लिया था। साथ ही साथ एंटी-तांग परिवार भी थे जो अरब, उईघुर जैसी जगाहों में शमिल थे। इसके पश्चात् तंग राजवंश न केवल कमजोर हो गया परंतु पश्चिमी क्षेत्रों कॉ भी नुक्सान हुआ।

तंग राजवंश्
Map of eastern interior Chinese cities of Luoyang, Chang'an, Qinzhou, Chengdu, Kuizhou, and Tanzhou
तू फू के समय का चीन

लेखन शैली[संपादित करें]

तू फू लिखनी घरेलू जीवन, सुलेख, चित्रकला तथा जानवर जैसे असामान्य विषयों पर हुए करते थे। संभवतः इन विषयों पर कविता लिखना उनके ही बस की बात थी। हालाकिं आरंभिक समय में उनकी कवितायेँ ग्रामीण परिपेक्ष तथा सामान्य जनजीवन से प्रेरित होती थी, बाद में लिखी गयी कविताओं में दर्शन और शक्ति की गहनता होती थी। तू फू की कवितायों में एक शैली और तत्त्व की बाध्यता होती थी जिसके कारण उनकी कविताओं को लुषि पद्धति की रचनाएँ मानी गई। तू फू की कविताओं में शब्दों तथा सन्दर्भ का सटीक प्रयोग तथा उनके प्रभाव का उपयोग कुछ ऐसा था की उनकी कृत्यों का प्रभाव जापान की कवियों की कृतियों में भी देखा जा सकता है। यह प्रभाव मुरोमची काल से एदो काल तक दिखता है। आधुनिक काल में कवि के ऋषि का प्रयोग तू फू के सन्दर्भ में ही किया जाता है। जीवन काल में तो संभवतः उनका मूल्यांकन उनकी रचनाओं के आधार पर सह नहीं हुआ था पर उनके मृत्यु के पश्चात् उनकी प्रशंसा समस्त विश्व में होने लगी। तू फू को वांग वे वांग वे ली बाई के समकक्ष रखा जाने लगा और इन तीन कवियों को कन्फूशिअन, बौद्ध तथा दाओइस्ट संस्कृति का ध्योतक के रूप में देखा जाता है।

तू फू

अंत के कुछ वर्ष[संपादित करें]

लुओयांग, उनके जन्मस्थान के क्षेत्र को, ७६२ की सर्दियों में सरकारी बलों द्वारा बरामद किया गया था, और ७६५ तू फू अपने परिवार के साथ यांग्त्सीक्यांग के माध्यम से बसने के इरादे से चल पड़े। इस समय तक वह अपने पिछली बीमारियों के अलावा गरीब दृष्टि, बहरेपन और सामान्य वृद्धावस्था से पीड़ित हो चुका था। दो साल तक चोंग्किंग में रहे। इसी दौरान उन्होंने अपने जीवन की अंतिम रचनाएँ की। लगभग ४०० कविताएँ लिखि थीं। यांग्त्सीक्यांग में दो साल व्यतीत करने के बाद मार्च ७६८ में उन्होंने फिर से अपनी यात्रा शुरू की। हुनान प्रांत में चांगशा नामक जगह में नवंबर या दिसंबर ७७० में उनका निधन हो गया। तू फू की पत्नी एवं दो बेटे कुछ वर्षों तक चांगशा में ही रहें।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  • हंग, विलियम; (1952). तू फू: चीन की सबसे बड़ी कवि. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस.
  • यंग, डेविड (अनुवादक); (२००८). तू फू: अ लाइफ इन पोइट्री. रैन्डम हाउस.
  • याओ, डैन ऐन्ड ली, ज़िलिआंग (२००६). चाइनीज़ लिटरचर
  • कै, ग्योयिंग; (१९७५). चाइनीज़ पोअम विद इंगलिश ट्रैन्स्लेशन.
  • Lee, Joseph J; (1970). "Tu Fu's Art Criticism and Han Kan's Horse Painting". Journal of the American Oriental Society. Vol. 90, No. 3. 449–461
  • Chou, Eva Shan; (1995). Reconsidering Tu Fu: Literary Greatness and Cultural Context. Cambridge University Press. ISBN 0-521-44039-4.

बहारी कड़ियाँ[संपादित करें]