तुलनात्मक लोक-प्रशासन

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सामान्य शब्दों में तुलनात्मक लोक-प्रशासन (Comparative Public Administration) का अर्थ है, दो या दो से अधिक प्रशासनिक इकाइयों की संरचना एवं कार्यात्मकता की तुलना की जाए। इसमें दो या दो से अधिक देशों, प्रान्तों तथा स्थानों की प्रशासनिक व्यवस्थाओं के मध्य तुलना की जाती है। तुलनात्मक लोक-प्रशासन का दृष्टिकोण सर्वप्रथम वुडरो विल्सन के नवीन लेख 'द स्टडी ऑफ ऐडमिनिस्ट्रेशन' (१८८७) में आया। इस लेख में विल्सन ने लोक-प्रशासन के तुलनात्मक अध्ययन पर बल दिया।

तुलनात्मक लोक प्रशासन, लोक प्रशासन के अध्ययन के क्षेत्र में एक नवीन अवधारणा है। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात सामाजिक विज्ञानों ने अध्ययन के लिए तुलनात्मक आधार पर विशेष बल दिया। इसी दौरान सामाजिक शास्त्रों को विज्ञान की श्रेणी में रखने के लिए विद्वान प्रयत्न करने में लगे थे। लोक प्रशासन में सन् 1952 में प्रिन्सटन में आयोजित ‘तुलनात्मक प्रशासन सम्मेलन‘ द्वारा तुलनात्मक दृष्टिकोण का प्रथम प्रयास किया गया था। लेकिन राबर्ट ए. डहाल ने कहा कि जब तक लोक प्रशासन का अध्ययन तुलनात्मक नही होता तब तक विज्ञान होने का इसका दावा खोखला है।

तुलनात्मक लोक प्रशासन के विकास में फैरल हैडी, ड्वाइड वाल्डो, रिचर्ड गैबल, फ्रेड रिग्स, जॉन मॉन्टगुमरी आदि विद्वानों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। लोक प्रशासन के विद्वानों ने तुलनात्मक विश्लेषण पर बल देना प्रारम्भ किया। प्रशासन का तुलनात्मक अध्ययन उनके सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक तथा आर्थिक पर्यावरण के सन्दर्भ में किया जाना चाहिए। तुलनात्मक लोक प्रशासन एक नवीन अवधारणा है जिसमें विभिन्न प्रशासनिक व्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन करके प्रशासन को अधिकाधिक वैज्ञानिक बनाने का प्रयास किया जाता है।

तीसरी दुनिया के देशों के प्रशासनों का अध्ययन व्यापक पैमाने पर करने पर यह ज्ञात हुआ कि इन देशों की विकास प्रक्रिया स्वदेशी न होकर विदेशों की नकल-मात्र है यह देखा गया है कि विकासशील देशों की नौकरशाही औपचारिकताओं (Formalities) एवं लाल फीताशाही (Red Tapism) को अनावश्यक महत्व देती है। साथ ही इन देशों के प्रशासकों का जनता के प्रति व्यवहार सेवक जैसा नहीं वरन् मालिकों के समान है। इन देशों की नौकरशाही में विकास कार्यक्रमों को पूरा करने के लिये दक्ष एवं योग्य प्रशासकों का भी अभाव है। इन देशों में राजनीतिज्ञों का व्यवहार प्रशासकों के समान होता है, जबकि प्रशासक राजनीति के चक्र में फँसे रहते हैं। रिग्स (Riggs) ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि पारिस्थितिकी प्रशासन को प्रभावित करती है तथा इन देशों में विकास प्रशासन की स्थापना एक कारगर कदम सिद्ध हो सकता है। लोक प्रशासन के क्षेत्र में परम्परागत दृष्टिकोण की अपर्याप्तता, अनुसंधान के नए उपकरणों और नवीन सामाजिक संदर्भ, अन्तर्राष्ट्रीय निर्भरता आदि ने तुलनात्मक लोक-प्रशासन को जन्म दिया और उसे आगे बढ़ाया। लोक-प्रशासन के तुलनात्मक अध्ययन के परिणामों और प्रविधियों का समग्र लोक-प्रशासन के स्वरूप पर गंभीर प्रभाव पड़ा।

तुलनात्मक प्रशासन समूह[संपादित करें]

‘तुलनात्मक प्रशासन ग्रुप’ (Comparative Administrative Group-CAG) की स्थापना ‘लोक प्रशासन के लिये अमेरिकी समाज’ के द्वारा सन् 1963 में की गई थी। इसका वित्तीय भार ‘फोर्ड फाउण्डेशन’ ने वहन किया। प्रारम्भ में इस संस्था की स्थापना केवल तीन वर्ष के लिये की गई थी। फ्रेड डल्पपू रिग्स लम्बे समय तक इसके सभापति रहे। तत्पश्चात् इसकी बागडोर रिचर्ड गेबल ने सँभाली।

यह दल अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत था इस दल का प्रमुख कार्य एशिया, यूरोप व लैटिन अमेरिका में तुलनात्मक प्रशासन पर अनुसंधान करना तथा विकास प्रशासन को प्रोत्साहन देना था। दल ने अपने अध्ययनों के आधार पर लोक प्रशासन के अन्तर्गत ‘पारिस्थितिकीय अध्ययन अथवा दृष्टिकोण’ (Ecological Approach) का विकास किया। पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण की मान्यतानुसार लोक प्रशासन विभिन्न प्रकार की सामाजिक परिस्थितियों के मध्य कार्यरत रहता है तथा स्वयं को उन परिस्थितियों के अनुकूल ढालने की क्षमता रखता है।

तुलनात्मक लोक प्रशासन दल ने ‘विकास प्रशासन’ के सम्बन्ध में कई संस्तुतियाँ प्रस्तुत कीं। निमरोद रेफली ने मुख्य रूप से दो तथ्यों पर बल दिया- ‘सिद्धान्त निर्माण’ एवं ‘विकास प्रशासन’। तुलनात्मक लोक प्रशासन में ‘सिद्धान्त निर्माण’ का अधिकांश कार्य विकास से सम्बद्ध है। इसके विपरीत विकास प्रशासन का अधिकांश कार्य सिद्धान्त निर्माण से जुड़ा है।

अर्थ एवं परिभाषा[संपादित करें]

तुलनात्मक प्रशासन समूह (सी.ए.जी.) के अनुसार, तुलनात्मक लोक प्रशासन की व्यवस्था, लोक प्रशासन का वह सिद्धान्त जो कि विविध संस्कृतियों तथा राष्ट्रीय वातावरण पर लागू किया जाता है और तथ्यों के आधार पर आंकड़ों का संकलन करके उनका परीक्षण एवं परख करता है।

फैरल हैडी के अनुसार, “तुलनात्मक लोक प्रशासन सिद्धान्त निर्माण की प्रक्रिया के समान है।”

फ्रेड रिग्स के अनुसार, “वास्तविक तुलनात्मक अध्ययन वह है जो अनुभव सम्बन्धी, नोमोथेटिक तथा पारिस्थितिकीय हो।”

निमरोड रैफली के अनुसार, “तुलनात्मक लोक प्रशासन तुलनात्मक आधार पर लोक प्रशासन का अध्ययन है।”

हारून ए. खान के अनुसार, “तुलनात्मक लोक प्रशासन से अभिप्राय है कि इसमें विभिन्न देशों के लोक प्रशासन का अध्ययन किया जाता है।”

उद्देश्य[संपादित करें]

तुलनात्मक लोक प्रशासन प्रशासनिक व्यवस्थाओं का विश्लेषण करके हमारे ज्ञान को एकत्रित, व्यवस्थित व विस्तृत करता है। इसके प्रमुख उद्देश्य है-

(1) विशिष्ट प्रशासनिक संरचनाओं तथा प्रणालियों का अध्ययन करके सामान्य नियमों तथा सिद्धान्तों का निर्माण करना।

(2) विभिन्न संस्कृतियों, राष्टोंं, व्यवस्थाओं का विश्लेषण और व्याख्या करना।

(3) विभिन्न प्रशासनिक प्रणालियों व पद्धतियों का तुलनात्मक अध्ययन कर उनकी सफलताओं एवं असफलताओं के कारणों का पता लगाना।

(4) तुलनात्मक अध्ययनों से प्राप्त विश्व की प्रशासनिक व्यवस्थाओं से परिचित होना।

(5) विकासशील देशों में नयी-नयी प्राविधियों के प्रयोग को बढावा देना।

(6) लोक प्रशासन के अध्ययन के क्षितिज को व्यापक, व्यावहारिक और वैज्ञानिक बनाना।

तुलनात्मक लोक प्रशासन की प्रकृति[संपादित करें]

तुलनात्मक लोक प्रशासन में विभिन्न राज्यों की सार्वजनिक प्रशासनिक संस्थाओं का विभिन्न संस्कृतियों के संदर्भ में तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।

फैरल हैडी ने तुलनात्मक लोक प्रशासन की प्रकृति को चार रूपों में विभक्त किया है -

(1) सुधरी हुई पारस्परिक प्रकृति- इसमें विभिन्न प्रशासनिक संस्थाओं तथा संगठनों के मध्य तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है तथा विश्लेषण कर निष्कर्ष प्राप्त किए जाते है।

(2) विकासमान प्रकृति- इस प्रारूप में सामाजिक आर्थिक विकास के कारण उत्पन्न हुई समस्याओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।

(3) सामान्य प्रणाली का प्रारूप- सामान्य प्रणाली के प्रारूप से तात्पर्य यह है कि सामाजिक वातावरण के अनुरूप प्रशासन तंत्र संचालित होता है। अतः सामाजिक वातावरण के अनुरूप ही ऐसा प्रारूप निर्मित किया जाए जो प्रशासन पर लागू किया जा सके।

(4) मध्यवर्ती सिद्धान्तों का प्रारूप- मध्यवर्ती सिद्धान्तों के प्रारूप से तात्पर्य उन सिद्धान्तों से हैं जिन्हें सभी पक्षों पर व्यावहारिक रूप से लागू किए जा सकते है तथा जिनका विश्लेषणात्मक परीक्षण किया जा सकता है।

राबर्ट टी० गोलम ब्यूस्की ने तुलनात्मक लोक प्रशासन की तीन विषय वस्तुओं को बताया है -

  • (1) ध्यान केन्द्रित करने योग्य विषय को महत्त्व देता है।
  • (2) परिणाम दे सकने वाले प्रयासों को अधिक महत्त्व देता है।
  • (3) अध्ययन पद्धतियों या दृष्टिकोण को अपनाने के लिए अभिप्रेरणा प्रदान करता है।

रिग्स ने 1962 में प्रकाशित अपने एक लेख “लोक प्रशासन के तुलनात्मक अध्ययन की प्रवृतियाँ ” में कहा है कि लोक प्रशासन के तुलनात्मक अध्ययन में तीन प्रवृतियाँ देखी जा सकती है -

  • (1) आदर्शात्मक से अनुभव सम्बन्धी उन्मुखता
  • (2) “इडियोग्राफिक” से “नोमोथेटिक” अभिगम की ओर उन्मुखता
  • (3) गैर पारिस्थितिकीय से पारिस्थितिकीय उन्मुखता

आदर्शात्मक से अनुभव सम्बन्धी उन्मुखता[संपादित करें]

आदर्शात्मक अध्ययन से तात्पर्य उन अध्ययनों से है जिनमें सिद्धान्तों या नियमों के स्थान पर उन परिस्थितियों को अधिक महत्त्व दिया जाता है जो वास्तव में हमारे सामने हैं तथा प्रशासन को अधिक प्रभावित करती है। यह ‘क्या होना चाहिए‘ पर अधिक जोर देता है तथा समस्त विश्लेषण इसी पर केन्द्रित होता है।

अनुभवमूलक अध्ययन - व्यवहारवादी आन्दोलन ने लोक प्रशासन सहित सभी सामाजिक विज्ञानों में वास्तविकता पर बल दिया जो मानव व्यवहार को महत्त्वपूर्ण मानता है। यह प्रशासनिक अनुसंधान में अनुभव पर विशेष बल देता है। अनुभव सम्बन्ध अध्ययन में प्रशासनिक वास्तविकता को समझने का प्रयास किया जाता है तथा यह “क्या होना चाहिए” के स्थान पर “क्या है” पर अधिक ध्यान देता है।

रिग्स का मत है कि, “शनैः शनैः तुलनात्मक लोक प्रशासन के अध्ययन अपने पारस्परिक आदर्शात्मक स्वरूप को त्याग कर अनुभव सम्बन्धी विशेषताएं ग्रहण कर रहे है।”

इडियोग्राफिक से नोमोथेटिक अभिगम की ओर उन्मुखता[संपादित करें]

इडियोग्राफिक अध्ययन (विशिष्टता से अध्ययन) - इस अध्ययन में किसी एक संगठन, एक प्रशासनिक समस्या, एक विशेष ऐतिहासिक घटना, एक संस्था, एक राष्टं, एक सांस्कृतिक क्षेत्र या एक विशेष जीवनी का अध्ययन किया जाता है। वास्तव में यह अध्ययन विशिष्टता एवं संकीर्णता लिए हुए होते है।

नोमोथेटिक अध्ययन - इसमें सामान्यीकरणों तथा परिकल्पनाओं के निर्माण का प्रयत्न किया जाता है जिसमें व्यवहार की नियमितताओं एवं घटकों के सहसम्बन्धों को प्रतिपादित करते है। नोमोथेटिक अध्ययन में गहन तुलनात्मक विश्लेषण के आधार पर सिद्धान्त निर्माण पर जोर दिया जाता है।

“इडियोग्राफिक” तथा “नोमोथेटिक” दोनो शब्द रिग्स द्वारा रचित है तथा रिग्स के अनुसार तुलनात्मक लोक प्रशासन “इडियोग्राफिक” स्वरूप छोड़कर “नोमोथेटिक” रूप ग्रहण कर रहे है।

गैर पारिस्थितिकीय से पारिस्थितिकीय उन्मुखता[संपादित करें]

गैर पारिस्थितिकीय अध्ययन - इसमें लोक प्रशासन को प्रभावित करने वाले सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा भौगोलिक पर्यावरण के संदर्भ में प्रशासनिक संस्थाओं का विश्लेषण कम किया जाता है। अतः इस अध्ययन में प्रशासन का पर्यावरण पर प्रभाव तथा पर्यावरण का प्रशासन पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण बहुत कम किया जाता है।

पारिस्थितिकीय अध्ययन - लोक प्रशासन अपने आसपास की सामाजिक प्रकृति, सामाजिक मूल्यों, राजनीतिक दशाओं, ऐतिहासिक संदर्भो, आर्थिक स्थिति व परम्पराओं से न केवल प्रभावित होता है वरन् प्रशासन इन सभी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक कारकों को प्रभावित भी करता है। अतः प्रशासनिक संस्थाओं का अध्ययन बिना पारिस्थितिकीय संदर्भ के नहीं किया जा सकता है। रिग्स ने तुलनात्मक लोक प्रशासन के अध्ययनों में पारिस्थितिकीय संदर्भ को समझने पर विशेष बल दिया है।

तुलनात्मक लोक-प्रशासन का अध्ययन क्षेत्र[संपादित करें]

तुलनात्मक लोक प्रशासन तुलनात्मक आधार पर लोक प्रशासन का अध्ययन है। लोक प्रशासन और प्रशासकीय व्यवस्थाओं के अध्ययन के लिए इसमें तुलनात्मक दृष्टिकोण अपनाया गया है।

सामान्यतः तुलनात्मक लोक प्रशासन के अध्ययन क्षेत्र को तीन स्तरों में विभक्त किया जा सकता है -

वृहदस्तरीय अध्ययन[संपादित करें]

इसमें किसी देश की सम्पूर्ण प्रशासकीय व्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन दूसरे देश की सम्पूर्ण प्रशासकीय व्यवस्था के साथ किया जाता है। यह अध्ययन दोनो देशों के पर्यावरण के उचित संदर्भ में किया जाता है, जैसे - अमेरिका की प्रशासनिक व्यवस्था का फ्रांस की प्रषासनिक व्यवस्था के साथ या भारत की प्रशासनिक व्यवस्था का ब्रिटेन के साथ तुलनात्मक विश्लेषण किया जाता है। यह अध्ययन आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक पर्यावरण के संदर्भ में किया जाता है। तुलनात्मक लोक प्रशासन का यह विस्तृत एवं व्यापक क्षेत्र है।

मध्यस्तरीय अध्ययन[संपादित करें]

प्रशासन के मध्यवर्ती क्षेत्र के अन्तर्गत किसी एक महत्त्वपूर्ण भाग या अंग की तुलना की जाती है जो आकार और क्षेत्र में न तो बहुत वृहद हो और न ही अत्यन्त सूक्ष्म हो। इन अध्ययनों में दो देशों के प्रशासन के किसी एक भाग या अंग की तुलना की जाती है, जैसे - भारत की नौकरशाही की तुलना ब्रिट ने की नौकरशाही से करना या अमेरिका के स्थानीय प्रशासन की तुलना भारत के स्थानीय प्रशासन से करना। इसमें प्रशासन के एक बहुत बड़े भाग की तुलना दूसरे देश की उसी स्तर की प्रशासनिक व्यवस्था के साथ की जाती है।

लघुस्तरीय अध्ययन[संपादित करें]

वर्तमान में तुलनात्मक लोक प्रशासन में लघुस्तरीय अध्ययन ज्यादा प्रचलित है। इसमें प्रशासन की किसी एक इकाई, एक गंभीर समस्या, एक विशिष्ट समस्या, किसी प्रक्रिया की तुलना दूसरी प्रशासनिक व्यवस्था के साथ की जाती है, जैसे - भ्रष्टाचार, उच्च सेवाओं में भर्ती हड़ताल इत्यादि किसी एक बिन्दु को लेकर उसका सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार के अध्ययन का क्षेत्र अति लघु होता है।

तुलनात्मक लोक प्रशासन में कार्य प्रकृति की दृष्टि से तुलना इस प्रकार भी हो सकती है -

(1) अन्तर्राष्ट्रीय - इसमें दो देशों के मध्य प्रशासनिक व्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है, जैसे - भारत और ब्रिटेन के लोक प्रशासन की तुलना।

(2) अन्तर्देशीय - इसमें एक ही देश की दो संस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। यह क्षेत्र देश के अन्दर ही हो सकता है, जैसे- राजस्थान और मध्यप्रदेश में नगरीय स्थानीय प्रशासन की तुलना।

(3) अन्तर सांस्कृतिक - इसमें दो भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के देशों के मध्य प्रशासनिक व्यवहार की तुलना की जाती है जैसे - भारत और फ्रांस में लोक सेवाओं के मध्य तुलना।

(4) सम सामयिक - इसमें वर्तमान समय में दो देशों के मध्य प्रशासन की तुलना की जाती है। जैसे वर्तमान के भारत की अमेरिका की प्रशासनिक व्यवस्था से तुलना समसामयिक है।

(5) संकर सामयिक- इसमें समय के अन्तराल से दो प्रशासनिक व्यवहारों की तुलना की जाती है , जैसे- वर्तमान भारतीय प्रशासन की कौटिल्य के प्रशासन से तुलना।

सारांश में यह कहा जा सकता है कि तुलनात्मक लोक प्रशासन का क्षेत्र भी उतना विस्तृत है जितना कि स्वयं लोक प्रशासन का कार्य क्षेत्र है।

तुलनात्मक लोक-प्रशासन का महत्त्व[संपादित करें]

तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर ही लोक प्रशासन विज्ञान की श्रेणी में आ सकता है। लोक प्रशासन को अधिकाधिक वैज्ञानिक तथा प्रभावशाली व उद्देश्यपूर्ण बनाने में तुलनात्मक लोक प्रशासन की भूमिका प्रभावशाली रूप से महत्त्वपूर्ण रही है। तुलनात्मक लोक प्रशासन के अध्ययनों में संकीर्णताओं को समाप्त कर लोक प्रशासन को विशाल, गहन तथा उपयोगी व लोकप्रिय बनाया है।

भिन्न-भिन्न देशों की सामाजिक, आर्थिक, भो गैलिक, सांस्कृतिक स्थितियों में अन्तर होने से उनकी प्रशासकीय व्यवस्था में भी अन्तर होता है। तुलना के माध्यम से ही विभिन्न संस्कृतियों एवं पर्यावरणों के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है तथा यह पता लगाया जाता है कि किसी खास प्रकार के कारकों का किसी प्रशासनिक व्यवस्था के किस अंग पर कैसा प्रभाव पड़ सकता है।

तुलनात्मक लोक प्रशासन के अग्रलिखित लाभ या गुण बताये जा सकते हैं -

(1) तुलनात्मक अध्ययन के कारण सामाजिक अनुसंधान का क्षेत्र विस्तृत, व्यापक तथा गहन हुआ है जो पहले सीमित संकीर्ण तथा स्थूल था।

(2) तुलनात्मक लोक प्रशासन ने सिद्धान्तों के निर्माण तथा सामान्यीकरण पर अधिक जोर दिया है।

(3) तुलनात्मक लोक प्रशासन ने प्रशासन व राजनीतिशास्त्र के मध्य अन्तर को समाप्त कर दिया है जिससे इनमें घनिष्ठ सम्बन्ध बने हैं तथा प्रशासन अन्य सामाजिक विज्ञानों के व्यापक क्षेत्र से जुड़ गया है।

(4) तुलनात्मक लोक प्रशासन ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया है अतः आत्म केन्द्रित रहने के स्थान पर व्यापक दृष्टिकोण को अपनाया है।

(5) तुलनात्मक लोक प्रशासन में विश्लेषण के कारण लोक प्रशासन का क्षेत्र विस्तृत हुआ है।

(6) तुलनात्मक लोक प्रशासन से प्रान्तीयता व क्षेत्रीयता जैसी संकीर्णताओं को समाप्त करने में पूर्ण योगदान मिला है।

(7) तुलनात्मक लोक प्रशासन ने पर्यावरण (सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, व्यवस्था) के अध्ययन पर जोर दिया है जिससे अन्य सामाजिक विज्ञानों के बारे में तथा अन्य कारक कौन-कौन से प्रशासन को प्रभावित करते है उनकी जानकारी प्राप्त होती है।

(8) लोक प्रशासन में तुलनात्मक पद्धति अपनाई जाने के कारण विद्यार्थियों, वैज्ञानिकों तथा प्रशासकों को दूसरे देशों की प्रशासनिक व्यवस्थाओं को समझने में मदद मिली है तथा इसका क्षेत्र व्यापक हुआ है।

तुलनात्मक लोक प्रशासन ने विषय को व्यापक, उपयोगी तथा वैज्ञानिक बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। प्रशासन को पर्यावरण के सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए जिसमें वे विकसित हुए है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]