तुच्छता का नियम

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सी नॉर्थकोट पार्किंस्न द्वारा १९५७ में प्रतिपादित तुच्छता के नियम (law of triviality) का कथन है कि किसी संगठन के लोग तुच्छ मुद्दों (trivial issues) पर चर्चा करके बहुत अधिक समय बर्बाद करते हैं जबकि उन मामलों का आर्थिक एवं वैज्ञानिक महत्व बहुत ही कम होता है। इसके उदाहरणस्वरूप पार्किंसन एक काल्पनिक समिति के बारे में बताते हैं जिसका काम एक परमाणु रिएक्टर से सम्बन्धित योजनाओं को स्वीकृत करना है। यह समिति अपेक्षाकृत अत्यन्त छोटे-छोटे मुद्दों पर चर्चा करने में ही अपना अधिकांश समय नष्ट कर देती है। ये मुद्दे आसानी से समझने लायक मुद्दे होते हैं जिन पर अधिकांश समय चला जाता है, उदाहरण के लिए, कर्मचारियों की सायकिलों को रखने के लिए किस पदार्थ का छज्जा (शेड) बनाया जाय। छोटे मुद्दों पर समय नष्ट कर देने से महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहुत कम चर्चा हो पाती है, जैसे प्लान्ट की डिजाइन - जो कि सायकिल शेड की तुलना में बहुत अधिक महत्वपूर्ण है और बहुत अधिक कठिन जटिल कार्य है।


सन्दर्भ[संपादित करें]