तारा प्रणाली


तारा प्रणाली या तारकीय प्रणाली कुछ तारों का समूह होती है, जो एक-दूसरे के गुरुत्वाकर्षण आकर्षण से बंधे रहते हैं और आपसी परिक्रमा करते हैं।[2] यदि इनमें दो तारे हों तो उन्हें द्वितारा प्रणाली, अगर तीन या उससे अधिक हों तो बहुतारा प्रणाली कहा जाता है।[3] कभी-कभी यह शब्द किसी एक तारे के लिए भी प्रयुक्त होता है। जब असंख्य तारे गुरुत्वाकर्षण के बल से एक विशाल समूह के रूप में जुड़े होते हैं, तो उसे तारा मंडल या आकाशगंगा कहा जाता है। यद्यपि व्यापक दृष्टि से इन्हें भी तारा प्रणालियाँ कही जा सकती हैं, परंतु इन्हें ग्रहीय प्रणालियों से भ्रमीत नहीं चाहिए, क्योंकि वहाँ ग्रह, उपग्रह और धूमकेतु जैसे तारा पिंडों की परिक्रमा करते हैं।
शब्दावली
[संपादित करें]द्वितारा प्रणाली वह तारा प्रणाली होती है जिसमें दो तारे आपसी गुरुत्वाकर्षण बल से बंधे रहते हैं और एक-दूसरे की परिक्रमा करते हैं। इसे "द्वितारा प्रणाली" या "भौतिक द्वितारा" कहा जाता है। यदि किसी प्रणाली में तीन तारे हों तो उसे "त्रितारा प्रणाली" कहा जाता है। चार तारों के होने पर यह "चतुर्तारा प्रणाली", पाँच तारों के साथ "पंचतारा प्रणाली", छह के साथ "षट्तारा प्रणाली", सात के साथ "सप्ततारा प्रणाली", और आठ तारों के साथ "अष्टतारा प्रणाली" कहलाती है। चार या अधिक तारों वाली प्रणालियाँ अपेक्षाकृत दुर्लभ होती हैं और द्वितारा या त्रितारा प्रणालियों की तुलना में बहुत कम मिलती हैं। ये प्रणालियाँ खुले तारा समूहों से आकार में छोटी होती हैं, जबकि खुले तारा समूहों में सामान्यतः 100 से 1,000 तारे पाए जाते हैं।[4]
इन्हें भी देखें
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ज्योतिष विज्ञान में तारा का महत्व
भारतीय ज्योतिष विज्ञान में तारा का विस्तृत वर्णन मिलता है। ज्योतिषीय गणना के अंतर्गत किसी जातक (बालक-बालिका) के जन्म समय, जन्म स्थान और जन्म तारीख के आधार पर कुंडली बनाई जाती है। कुंडली बनने के बाद जब फलादेश यानि की उसके भविष्य को देखने की प्रक्रिया शुरु होती है उसमें तारा की बेहद सूक्ष्म गणना की जाती है। फलादेश में सबसे बड़ी गणना ग्रह की होती है। ग्रह के बाद राशि, राशि से सूक्ष्म गणना नक्षत्रों की और सूक्ष्मतम गणना होती है तारा की। जिस तारा में जातक का जन्म हो वैसा ही उसका पूरा जीवन माना जाता है।
ज्योतिष में तारा की संख्या 9 मानी गई है। इसे नवतारा भी कहा जाता है। जिस तारा का जैसा नाम है वैसा ही फल व्यक्ति को मिलता है। ज्योतिषीय तारा
के नाम निम्नलिखित रूप से हैं।
1- जन्म तारा
2- संपत तारा
3- विपत तारा
4- क्षेम तारा
5- प्रत्यक्ष तारा
6- साधन तारा
7- नैधन तारा
8- मित्र तारा
9- परम मित्र तारा
ज्योतिषीय गणना में फलकथन के दौरान किसी बालक या बालिका का जीवन कैसा होगा, यह जन्म के समय की तारा पर बहुत ज्यादा निर्भर करता है। यहां पर
गौर करने वाली बात यह भी है कि तारा का स्वामी कौन है और वह कुंडली के किस भाव में बैठा है। मतलब यह हुआ कि आसमान में चमकने वाले तारों का असर ग्रह नक्षत्रों की भांति ही हम सब पर पड़ता है। ज्योतिष के अधय्यन में इसीलिए इसका बड़ा महत्व बताया गया है।
- ↑ "तारामंडल के लिए धुएँ का छल्ला". अभिगमन तिथि: 26 अक्टूबर 2015.
- ↑ ए॰एस॰ भाटिया, ed. (2005). खगोल विज्ञान और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का आधुनिक शब्दकोश. नई दिल्ली: डीप एंड डीप प्रकाशन. ISBN 81-7629-741-0.
- ↑ "100 निकटतम तारा प्रणालियाँ।". मूल से से 29 अप्रैल 2025 को पुरालेखित।.
- ↑ बिन्नी, जेम्स; ट्रमाईन, स्कोट (1987). आकाशगंगाओं की गति और संरचना का अध्ययन।. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस. p. 247. ISBN 0-691-08445-9.