तारणपंथ

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तारण पंथ
तारन स्वामी की समाधि बीना के पास निसाई जी में स्थित है।
तारन स्वामी की समाधि बीना के पास निसाई जी में स्थित है।
स्थापक
तारण स्वामी
महत्वपूर्ण आबादी वाले क्षेत्र
मध्य भारत
20,000-100,000
धर्म
दिगंबर जैन धर्म
धर्मग्रंथ
see Texts
जालस्थल
www.taranpanth.com

तारण पंथ, का अर्थ है तारने वाला पंथ या मोक्षमार्ग।तारण पंथ अनादि काल से है और अनंत काल तक रहेगा जिसका कोई संस्थापक नहीं। तारण पंथ की प्रवर्तना तीर्थंकर परमात्मा करते हैं। तारण पंथ में कई ऐसे आचार्य हुए जिन्होंने अपनी साधना के अनुभव पर अध्यात्म का सार जगत को समझाया।इन आचार्यों की सूची में अग्रणी हैं-सोलहवीं सदी के महान भावलिंगी वीतरागी दिगंबर श्रमण आचार्य श्रीमद् जिन संत तारण तरण स्वामी

तारणस्वामी का जीवन परिचय[संपादित करें]

  • ===वन्दे श्री गुरु तारणम्===
  • विश्वरत्न परम पूज्य आचार्य भगवन्त श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य महाराज जी का
  • ===संक्षिप्त परिचय===
  • जन्म = शुभमिति अगहन सुदी सप्तमी विक्रम *संवत 1505 (ईसवी सन्1448)
  • स्थान = पुष्पावती बिलहरी जिला कटनी (म• प्र•)
  • पिता = श्री गढ़ाशाह जी
  • माता =श्रीमती वीरश्री देवी जी
  • बाल्यावस्था = श्रीपुष्पावती बिलहरी, सेमरखेडी, सिरोंज,चंदेरी
  • आप बचपन से ही अत्यंत प्रज्ञावान और वैराग्यवान थे ।
  • शिक्षा = शिक्षा चंदेरी में भट्टारक देवेन्द्र कीर्ति द्वारा।
  • 11 वर्ष की अवस्था में सम्यक् दर्शन
  • 21 वर्ष की आयु में अखण्ड बाल बह्मचार्य व्रत
  • 30 वर्ष की युवावस्था में सप्तम ब्रह्मचार्य प्रतिमा का संकल्प।
  • आत्म चिंतन-सेमरखेडी के निकट वन स्थली में अध्यन चिंतन मनन एवं आत्म आराधना (गुफाओं में) आत्मा का ध्यान
  • मुनि दीक्षा =60वर्ष की आयु में( मिति अगहन सुदी सप्तमी विक्रम संवत् 1565)
  • शुभ संदेश= तू स्वयं भगवान है।
  • विशेष=108 आचार्य तारण स्वामी मुनि पद पर 6 वर्ष 5माह 15 दिन रहे।
  • आप दूसरे अवधिज्ञानी एवं क्षायिक सम्यक्त्व के धारी व सर्वाथ सिद्धी गये।
  • विश्वरत्न परमपूज्य आचार्य भगवन्त तारण तरण देव के विशाल श्रीसंघ में 7 मुनिराज, 36आर्यिकाऐं,60व्रती श्रावक,231 ब्रह्मचारिणी बहिनें,एवं 43,45,331 शिष्य थे।
  • आप 151 मंडलों के आचार्य थे ।

*शास्त्र रचना[संपादित करें]

  • विचार मत

१.श्री मालारोहण जी (32 गाथा) २.श्री पंडित पूजा जी(32 गाथा) ३.श्री कमल बत्तीसी जी(32 गाथा)

  • आचार मत

४.श्री तारण तरण श्रावकाचार जी(462 गाथा)

  • सार मत

५.श्री न्यानसमुच्चयसार जी (908 गाथा) ६.श्री उपदेशशुद्ध सार जी(589 गाथा) ७.श्री त्रिभंगीसार जी(71 गाथा)

  • ममल मत

८.श्री चौबीसठाणा जी (5 अध्याय) ९.श्री ममलपाहुङ जी (164 फूलना 3200 गाथा)

  • केवल मत

१०.श्री खातिका विशेष जी (104 सूत्र ) ११.श्री सिद्ध स्वभाव जी (20 सूत्र ) १२.श्री शून्य स्वभाव जी (32 सूत्र ) १३.श्री छद्मस्थवाणी जी(12अधिकार में 565 सूत्र) १४.श्रीनाममालाजी(43,45,331शिष्यों की संख्या)

  • इस प्रकार पाँच मतों में 14 ग्रंथो की रचना की।
  • आचार्य तारण तरण देव के तीर्थ स्थल-

(१)जन्म स्थल-श्री निसईजी पुष्पावती बिलहरी जिला कटनी (म•प्र•) (२)दीक्षा स्थल-श्री निसईजी सेमरखेडी सिरोंज जिला विदिशा (म•प्र•) (३)बिहार स्थल-श्री निसईजी सूखा पथारिया जिला दमोह(म•प्र•) (४)समाधि स्थल-श्री निसईजी मल्हारगढ मुंगावली जिला अशोकनगर (म•प्र•)

  • समाधि = ज्येष्ठ वदी छठ विक्रम संवत 1572 (ईसवी सन् 1515 ) में सम्यक् समाधि पूर्वक देह त्याग श्री निसई जी मल्हारगढ़ (मुंगावली)जिला - अशोकनगर म•प्र• में किया ।
  • सर्वार्थ सिद्धि उत्पन्न
  • आयु = 66 वर्ष, 5 माह,15 दिन रही।

विवरण[संपादित करें]

तारण पंथ अर्थात मोक्ष मार्ग। तारणपंथ की स्थापना आचार्य तारण तरण देव ने की थी आचार्य तारण तरण देव के द्वारा प्रतिरूप होने के कारण यहां पंथ 'तारणपंथ' के नाम से विख्यात हुआ। आचार्य तारण तरण देव जी ने १४ ग्रंथों की रचना की थी। इनमें सर्वप्रथम 9 ग्रंथो की प्रचलित ज़िनागम सम्मत व्याख्या धर्म दिवाकर-ब्र.शीतल प्रसाद जी और शेष 5 ग्रंथो की उल्था समाज रत्न ब्र.जय सागर जी के द्वारा हुई। विद्वत जनों की परंपरा में ब्र.ज्ञानानंद जी के द्वारा कतिपय ग्रंथो की पुनः व्याख्या हुई । तारण पंथी १८ क्रियाओं का पालन करने वालों को कहते हैं। तारण पंथ का अर्थ है-मोक्ष मार्ग। तारणपंथी मूर्ति पूजा नहीं करते। जितने भी तीर्थंकर परमात्मा हुए हैं उन्होंने अपनी निज आत्मा का ध्यान करते हुए ही मुक्ति श्री को प्राप्त किया है इसलिए इस पंथ में शुद्धात्मा को ही परम देव माना जाता है जैसा कि तीर्थंकर भगवन्तों ने दर्शाया है एवं वह अपने चैत्यालयों में विराजमान शास्त्रों की आराधना करते हैं। इनके यहां आचार्य तारण तरण देव जी द्वारा रचित ग्रंथों के अतिरिक्त [1] अन्य दिंगबर जैनाचायों के ग्रंथों की भी मान्यता है। आचार्य तारण तरण देव का अध्यात्म का मार्ग विश्व मे विख्यात हैं।

अर्हताएं[संपादित करें]

जो सप्त व्यसन के त्याग कर अठारह क्रियाओं का पालन करता है वह तारण पंथी कहलाता है। ये अपनी पूजा को 'मंदिर विधि' कहते हैं। ये मंदिर को 'चैत्यालय' कहते हैं। ये अभिवादन के रूप में जय जिनेंद्र एवं जय तारण तरण कहते हैं।

विवरण

तारण समाज के तीर्थक्षेत्र[संपादित करें]

निसईजी मल्हारगढ़[संपादित करें]

अशोकनगर की मुंगावली तहसील से १४ व कुरवाई से २० किलोमीटर दूर निसईजी या बडी निसईजी पिपरिया मल्हारगढ़ स्थित तारण समाज का सबसे बडा तीर्थक्षेत्र है।यहाँ अति विशाल मंदिर-धर्मशाला है। यहां भव्य शिखर से सुशोभित प्राचीन नक्काशी दार चैत्यालय स्मारक तारण स्वामी का समाधि स्थल है। यहां पर प्राचीन शिल्पकला देखने को मिलती है‌। मध्यकालीन राजपूत शैली में निर्मित यह क्षेत्र के मंदिर में स्वर्णमंडित चार वेदियां स्थापित हैं।जिन पर जिनेंद्र भगवान की वाणी जिनवाणी विराजमान है। यहां एक मूल वेदी है जिसके पीछे पाषाण निर्मित सर्वप्राचीन राजमंदिर वेदीजी एवं दोनों तरफ वेदिका है। यहां समाजभूषण श्रीमंत सेठ स्व. भगवान दास शोभालाल जी जैन सागर द्वारा निर्मित विशाल स्वाध्याय भवन है एवं निसईजी अस्पताल भी संचालित है। यहां पर आचार्य श्रीजिन तारण स्वामी ने जेठ वदी छट् की रात्रि के अंतिम पहर दिन शुक्रवार तिथि सप्तमी को सल्लेखना पूर्वक साधु समाधि धारण की। प्रतिवर्ष रंगपंचमी के तीन दिन बाद अष्टमी से फाग फूलना मेला महोत्सव आयोजित किया जाता है। यहां पर डेढ़ किमी दूर बेतवा नदी बहती है जिसके मध्य तीन टापू स्थित हैं जो स्वामीजी के डुबाने के परिणाम हैं‌।घाट पर आचार्य श्री का सामायिक स्थल भी है।

निसई जी सेमरखेड़ी[संपादित करें]

यह तारण स्वामी का दूसरा प्रमुख क्षेत्र है।यहां संत तारण ने अपनी साधना की।यह तारण स्वामी की दीक्षा भूमि है।यहाँ गुरुकुल संचालित है। यहाँ विशाल मंदिर व १८० कमरों की धर्मशाला है।यहाँ तारण स्वामी को जहर पिलाया तो अमृत बन गया।यहाँ बसंत पंचमी पर मेलोत्सव होता है।


निसई जी सूखा[संपादित करें]

यह तारण पंथ का तीसरा प्रमुख धाम है।यहाँ संत तारण ने अपना प्रचार प्रसार केंद्र बनाया।यह तारण स्वामी की विहार स्थली है।यहाँ स्वर्ण जड़ित वेदी है।यहाँ कांच जड़ित मंदिर व सर्व सुविधा युक्त १०५ कमरों की धर्मशाला है।यहाँ पानी की कमी थी वह संत तारण के प्रभाव से कम हो गई।यहाँ देवोठनी ग्यारस पर मेलोत्सव होता है।

पुष्पावति बिल्हेरी[संपादित करें]

यह तारण पंथ का चौथा प्रमुख धाम है।यहाँ तारण स्वामी ने जन्म लिया व बाल्य काल बिताया।यहाँ विशाल मंदिर व १२० कमरों की धर्मशाला है।यहाँ जब पिता के कागज़ ज़ल गए तो तारण ने नए तैयार करके दिए।यहां तारण जयंती पर मेलोत्सव होता है।


अतिरिक्त तीर्थ क्षेत्र[संपादित करें]

  • ग्यारसपुर - पहला चातुर्मास किया।
  • गढ़ौला - दर्शन मात्र से मंत्र सिध्द हुआ।
  • सम्मेद शिखर(मधुबन) - २० तीर्थंकर मोक्ष गए।
  • चांद - प्रमुख शिष्य हिमांशु पांडे की साधना भूमि है।यहाँ गुरु पर्वी पर मेलोत्सव होता है।

जनसंख्या[संपादित करें]

तारण पंथ की आबादी बीस हजार से एक लाख के मध्य है। तारण समाज ४५० से अधिक नगरों में बसती है। तारण समाज गंजबासौदाभोपाल में सर्वाधिक बसती है। तारण समाज भारत के अलावा अमेरिका,यू.के. आदि देशों में भारत से जा बसे हैं।यह हिंदी,बुंदेली,नागपुरी,मराठी व अन्य क्षेत्रीय बोलियां बोलते हैं।

धर्मस्थल (चैत्यालय)[संपादित करें]

तारण तरण दिगंबर जैन समाज के धर्म स्थलों को चैत्यालय कहते हैं,यहां पर पत्थर अथवा संगमरमर से निर्मित वेदीजी (छह अथवा चार खंभों पर आधारित मढिया जैसी आकृति) पर सदगुरु श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज के द्वारा रचित चौदह ग्रन्थों के संकलित रूप श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (जिनवाणी) का अस्थाप (विराजित) किया जाता है।वेदी के ऊपर कलश चढ़े होते हैं,ग्रंथों को ऊपर से कलाकृति पूर्ण मखमली कपड़ा जिसे अछावर कहा जाता है से डंका जाता है,तथा चांदी के तीन छत्र लगे होते हैं जो इस बात का सूचक है कि यह त्रिलोकीनाथ जिनेंद्र भगवान की वाणी है।तथा दोनों ओर चंवर शोभायमान होते हैं।चैत्यालय में वेदी के ऊपर शिखर बनाते जाते हैं जो विभिन्न आकृति के होते हैं, जिसमें तारण समाज के तीर्थ क्षेत्र निसईजी में निर्मित गुम्बदाकार शिखर प्रमुख है जो देखते ही बनता है।सम्पूर्ण देश में लगभग पौने दो सौ चैत्यालय हैं।इनमें चार चैत्यालय प्रमुख हैं। १.) तीर्थक्षेत्र निसईजी सेमरखेडी २.) तीर्थक्षेत्र निसईजी मल्हारगढ ३.) तीर्थक्षेत्र निसईजी सूखा ४.) तीर्थक्षेत्र पुष्पावति बिलहेरी

साथ ही प्राचीन स्थानीय चैत्यालयों में सागर, मोरक्षली चैत्यालय,बीच का चैत्यालय गंजबा सौदा,निसईजी,सिलवानी,खुरई ,प्राचीन धूसरपुरा चैत्यालय प्रमुख हैं।

इन मंदिरों की प्रतिष्ठा का आयोजन तीन दिन तक किया जाता है,जिसमें प्रथम दिन चैत्यालयों पर चौदह ध्वज फहराना,मुख्य ध्वजारोहण,वेदी जी पर चौदह जिनवाणी का अस्थाप करना,कार्यक्रम के प्रारंभ होने पूजा होती है तथा जिनवाणी के अस्थाप के मंगल पांच कलशों की स्थापना एवं जिनवाणी पर छत्र चंवर लगाए जाते हैं,दूसरे दिन जिनवाणी को पालकी विमान में रखकर नगर भ्रमण पर निकालना तथा वेदी पर,शिखरों पर पंचद्वारी पर कलशारोहण एवं पीतध्वज चढ़ाया जाता है,तृतीय दिवस सबसे मुख्य अनुष्ठान वेदी सूतन होता है,इसमें वेदी के खंभों पर तथा आस पास चारों ओर सूत का कच्चा धागा बांधा जाता है,जिस पर हल्दी लगा कर मंत्रोच्चारण पूर्व परिक्रमाएं लगाई जाती हैं,इस अनुष्ठान से ही प्रतिष्ठा की शुद्धता एवं पूर्णता मानी जाती है,मान्यता अनुसार इससे आस पास के वातावरण की शुद्धि होती है।तथा दोपहर में तिलक अर्थात् समापन की महापूजा बड़ी मंदिर विधि होती है,तथा बाद में तिलक की चौदह मंगल आरतो (आटे से निर्मित पांच ज्योति की बड़ी बड़ी आरती) विशेष लय में पढ़ी जाने वाली आरती को पढ़ के किए जाते हैं,तथा चंदन व अंत में प्रभावना स्वरूप प्रसाद वितरण किया जाता है।तारण समाज में प्रसाद किसी को समर्पित (भोग) नहीं किया जाता है।कार्यक्रम में पधारे श्रध्दालुओं को बांटा जाता है। कार्यक्रम के एक दिन पूर्व वेदी का शुद्धिकरण,घटयात्रा आदि कार्यक्रम किए जाते हैं।यह सभी कार्यक्रम प्रशिक्षित विद्वत प्रतिष्ठाचार्यों के सानिध्य में होते हैं। तारण समाज में जो इष्ट देव चौबीस तीर्थंकर,धर्मग्रंथों तथा गुरु की पूजा की जाती है उसे मंदिर विधि कहा जाता है। मंदिर विधि दो प्रकार की होती हैं एक लघु अथवा साधारण मंदिर विधि तथा विशेष अनुष्ठानिक पूजा को वृहद् या बड़ी मंदिर विधि कहा जाता है। तारण समाज में मूर्ति की पूजा नहीं की जाती,अपितु तीर्थंकरों के उपदेशों को ग्रंथों में संकलित कर उनकी साक्षी में तीर्थंकरों की पूजा होती है।तारण पंथ में क्रियाकांड का महत्त्व नहीं है भावों की प्रधानता मुख्य है।

समुदाय[संपादित करें]

तारण पंथ के ६ समुदाय हैं-

  1. समैया
  2. असाटी
  3. चरणागर
  4. अयोध्या वासी
  5. दो सके
  6. गोलालार

तारण तरण श्री संघ[संपादित करें]

श्री संघ शब्द वास्तव में आदिनाथ भगवान के द्वारा प्रतिपादित है। श्री संघ का अर्थ चतुर्विद्य संघ। इसमें मुनि आर्यिका श्रावक श्राविका आते हैं।आचार्य तारण स्वामी ने जिन धर्म की वीतराग परम्परा में श्री संघ चलाया जिसमें सात मुनि,छत्तीस आर्यिका 60 ब्रम्हचारी और दो सौ इकतीस ब्रम्हचारिणी बहिनें शामिल थीं। वर्तमान में मुनि आर्यिका तो नहीं हैं पर ब्रम्हचारी और ब्रम्हचारिणी बहिनें अवश्य हैं। वर्तमान में संघ के प्रमुख आत्मज्ञानी साधक परम श्रद्धेय युवा रत्न बा▪ब्र▪आत्मानंदजी, श्रद्धेय बाल ब्रह्मचारी ब्रम्हानंद जी(बसंत जी) हैं। देश मे समस्त श्री संघ के साधक अध्यात्म धारा बहा रहे हैं संघ में लगभग १०० साधक साधिकाएं हैं।।

  • साधक
  • आत्मज्ञानी साधक दशम प्रतिमा धारी युवारत्न बाल ब्र. परम श्रद्धेय श्री आत्मानंद जी
  • ब्र.परमानंद जी
  • ब्र.मुक्तानंद जी
  • परम श्रद्धेय अध्यात्म रत्न बाल ब्र. ब्रम्हानंद जी(बसंत जी)
  • ब्र.चिदानंद जी
  • बाल ब्र.शांतानंद जी
  • ब्र.प्रज्ञानंद जी
  • ब्र.सदानंद जी
  • बाल ब्रहमचारी विज्ञानंद जी
  • ब्रह्मचारी. दिव्यानंद जी
  • ब्र.राजेंद्र कुमार जी
  • ब्र.शिखरचंद्र जी
  • बाल ब्रहमचारी.अरबिंद जी
  • ब्र.आलोक जी
  • बाल ब्रहमचारी धर्मेंद्र भैया
  • ब्र.बाबूलाल जी बाबा
  • बाल ब्रहमचारी.वैराग्य जी
  • ब्र.विमलचंद्र जी
  • ब्र.घनश्याम जी
  • ब्र.अभिनय जी
  • बाल ब्र.राजेश जी
  • बाल ब्रहमचारी अमित जी तारण
  • बाल ब्रह्मचारी रजत जी तारण
  • ब्र.संजय जी
  • चतुर्भुज जी तारण
  • दिनेश जी तारण
  • बाल ब्रम्हचारी मनीष भैया
  • उदय चंद्र जी तारण
  • साध्वी
  • ब्र.अभयश्री बहिन जी
  • ब्र.जिनयश्री बहिन जी
  • ब्र.पुष्पा बहिन जी
  • बाल ब्र.समयश्री बहिन जी
  • ब्र.ममलश्री बहिन जी
  • ब्र.सहजश्री बहिन जी
  • बाल ब्र. बिंद श्री बहिन जी
  • ब्र.गुड्डी बहिन जी
  • बाल ब्र.सुषमा बहिन जी
  • ब्र.जलशाबाई बहिन जी
  • ब्र.मुन्नी बहिन जी
  • ब्र.किरण बहिन जी
  • बाल ब्र.सरला बहिन जी
  • ब्र.चंदाबाई बहिन जी
  • ब्र.कांतिबाई बहिन जी
  • ब्र.कमलश्री बहिन जी
  • ब्र.मालतिबाई बहिन जी
  • ब्र.विद्याबाई बहिन जी
  • बाल ब्रह्मचारी प्रियंका दीदी
  • बाल ब्र.रचना बहिन जी
  • ब्र.वंदना बहिन जी
  • बाल ब्र.अर्चना बहिन जी
  • बाल ब्र.अंजना बहिन जी
  • बाल ब्र.विभूति(वंदना)बहिन जी
  • बाल ब्र.सरिता बहिन जी
  • बाल ब्र.किरण बहिन जी
  • ब्र.अनीता बहिन जी
  • ब्र.विजयाबाई बहिन जी
  • ब्र.अभिलाषा बहिन जी
  • ब्र.गौमतीबाई बहिन जी
  • ब्र.शीलाबाई बहिन जी
  • ब्र.रेखा बहिन जी
  • ब्र.जागृति बहिन जी
  • ब्र.सुलोचना बहिन जी
  • ब्र.जयंती बहिन जी
  • ब्र.बहिन जी
  • ब्र. सरोज बुआ जी
  • ब्र.प्रभारानी बहिन जी
  • ब्र.संख्या बहिन जी
  • ब्र.शशिबाई बहिन जी

समाज के समाधिस्थ साधक,और विद्वत जन[संपादित करें]

  • धर्म दिवाकर पूज्य ब्र.गुलाबचंद्रजी महाराज
  • समाज रत्न पूज्य ब्र.जयसागरजी महाराज
  • अध्यात्म भूषण ब्र.ज्ञानानंद जी महाराज
  • ब्र.विमलादेवीजी
  • ब्र.नेमि निजानंद जी महाराज
  • ब्र.सुशीला बहिन जी
  • ब्र.सुखानंद जी
  • ब्र.दयानंद जी
  • ब्र.जिनमति बहिन थी
  • ब्र.चंपा चमेली बहिन जी
  • पं चंपालाल जी सोहागपुर
  • पं.अमृतलाल चंचल जी
  • पण्डित रोशनलाल जी गोयल
  • पंडित कपूरचंद समैया 'भायजी'
  • पण्डित देवेंद्र कुमार जी सिंगौड़ी
  • विद्याभूषण अमृतलाल जी बासौदा
  • डा पंडित विद्यानंद जी विदिशा
  • पं सुखलाल सहयोगी सागर
  • पं रतनचंद जी बीना

अन्य जानकारियां[संपादित करें]

वार्षिकोत्सव[संपादित करें]

  • निसईजी सूखा मेलोत्सव-:देवोठनी ग्यारस
  • पुष्पावति बिल्हेरी मेलोत्सव-:तारण जयंती
  • निसईजी सेमरखेडी़-:बसंत पंचमी
  • निसईजी मल्हारगढ़-:होली के आठ दिन पश्चात

समाज गौरव[संपादित करें]

  • श्रीमंत समाज भूषण सेठ अशोक कुमार जैन(काका जी सागर)
  • श्रीमंत समाज रत्न सेठ विकास कुमार समैया (खुरई)
  • श्रीमंत सेठ कंछेदी लाल जी (गंजबासोदा)
  • श्री सेठ निशंक जैन पूर्व विधायक (गंजबासोदा)
  • श्री दानभूषण सवाई सेठ हीरालाल जी (गंजबासोदा)
  • सिंघई ज्ञानचंद जैन बीना (महामंत्री महासभा न्यास)
  • श्रीमंत सवाई सेठ सुर्यकांत जी जैन (सिरौंज)
  • सवाई सेठ आनंद प्रकाश तारण भोपाल
  • खेमचंद सराफ दमोह
  • नवीन समैया बापू बीना
  • नितिन दिगंबर होशंगाबाद
  • संतोष जैन (लोधीखेडा)
  • सेठ पंकज जैन (गंजबासोदा)
  • मंत्री रतनचंद जैन (गंजबासोदा)
  • राजेश पटेल उदयपुरा
  • प्रहलाद किशोर जी उदयपुरा

तारणपंथ से संबंधित विकिपीडिया पर पृष्ठ[संपादित करें]

इन्हें भी देखिए[संपादित करें]

सन्दर्भ सूची[संपादित करें]

  1. "Books I have Loved". Osho.nl. मूल से 17 मई 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १३ दिसम्बर २०१५.

सन्दर्भ ग्रन्थ[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]