संत तारण तरण स्वामी

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निसईजी मल्हारगढ़ : आचार्य तारण स्वामी की समाधि स्थली

भारत के मध्यप्रदेश में बुंदेलखंड की भू धरा पर जन्मे तारण पंथ (मोक्षमार्ग) के प्रचारक आचार्य तारण तरण देव थे।जो भगवान महावीर स्वामी की वीतराग परंपरा में मंडलाचार्य थे।

जीवनी[संपादित करें]

श्रीमद् आचार्य तारण तरण देव का जन्म पुष्पावति नगरी, जो कि वर्तमान मध्य प्रदेश के कटनी शहर से लगभग 18 किमी की दूर है, में वि.सं.१५०५ अगहन सुदी सप्तमी दिन गुरुवार को हुआ। इनकी माता वीरश्री देवी व पिता गढाशाह थे। प्रचलित मान्यतानुसार इन्हें ११ वर्ष की आयु में सम्यकदर्शन, २१वर्ष की आयु में ब्रम्हचर्य व्रत,३०वर्ष की आयु में सप्तम प्रतिमा और साठ वर्ष की आयु में नग्न वीतरागी दिगम्बर जैनेश्वरी दीक्षा ली। लगभग 66 वर्ष की आयु में वर्तमान मप्र के अशोकनगर जिले के मल्हारगढ नामक स्थान पर इन्होंने ज्येष्ठ वदी छट् की रात्रि के अंतिम प्रहर में जेठ वदी सप्तमी को वि.सं.१५७२ को सल्लेखना पूर्वक समाधि मरण किया। किवदंतियों के अनुसार इनके जीवन में दो महा उपसर्ग हुए पहला नदी में डुबाया गया परंतु उस जगह टापू बन गया। दूसरा उन्हें जहर पिलाया गया परंतु उनको उसका असर नहीं हुआ।

श्रीसंघ[संपादित करें]

श्रीसंघ अर्थात चतुर्विध संघ। इसमें मुनि आर्यिका श्रावक और श्राविका आते हैं। आचार्य गुरूदेव के संघ में सात दिगंबर मुनिराज, छत्तीस आर्यिका माता जी, साठ ब्रम्हचारी व दो सौ इकतीस ब्रम्हचारिणी बहिनें थीं।इनके अनुयायियों की संख्या लाखों में थी।आचार्य तारण स्वामी 151 मंडलों के आचार्य होने के कारण मंडलाचार्य कहाए।

रचना[संपादित करें]

इन्होने पांच मतों में चौदह ग्रंथों की रचना करी।

विचार मत[संपादित करें]

विचार मत में आचार्य तारण तरण देव जी ने श्री मालारोहण,पंडितपूजा,कमलबत्तीसी जी ग्रंथाधिराज की रचना की जिसमें मुख्य रूप से सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान व सम्यक चारित्र का वर्णन किया है।

आचार मत[संपादित करें]

इसमें पूज्य गुरुदेव ने श्रावकाचार जी ग्रंथाधिराज की रचना की जिसमें मुख्य रूप से श्रावक के आचरण का वर्णन किया है।

सार मत[संपादित करें]

इसमें पूज्य स्वामी जी ने उपदेश शुद्ध सार,त्रिभंगीसार जी और न्यानसमुच्चय ग्रंथाधिराज की रचना की।

ममल मत[संपादित करें]

इसमें पूज्य श्री गुरु महाराज ने चौबीसठाणा जी एवं श्री भयखिपनिक ममलपाहुड जी ग्रंथाधिराज की रचना की। ममलपाहुड जी में श्री तारण तरण मंडलाचार्य महाराज ने 3200 गाथा प्रमाण 164 से अधिक फूलनाओं अर्थात भजनों की रचना की।

केवलमत[संपादित करें]

इसमें आचार्य तारण तरण देव जी ने छद्मस्थवाणी,नाममाला,षातिकाविशेष,सुन्नस्वभाव,सिद्धिस्वभाव जी ग्रंथाधिराज की रचना की।

प्रमुख स्थान[संपादित करें]

१.पुष्पावती (बिलहरी) जन्म स्थली

२.निसईजी (सूखा) विहार भूमि

३.निसईजी (सेमलखेडी़) मुनि दीक्षा एवं तपो भूमि

४.निसईजी (मल्हारगढ़) समाधि भूमि

साथ ही आपने ग्यारसपुर,मनौरा,सिरोंज,चंदेरी,फुटेरा कलां,गढौला,बड़गांव,खानदेश महाराष्ट्र, गंजबासौदा,सिलवानी,सागर,औलिंजा, गाडरवारा,आगासौद,खिमलाशा,बांदा,ललितपुर, महोबा आदि ग्राम नगरों से विहार किया व विश्राम किया‌।

संदर्भ[संपादित करें]

https://web.archive.org/web/20190719111949/http://taranpanth.com/>