ताजिक नीलकंठ से दृष्टि योग

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।ताजिकानुसार षोडशयोग।

प्रागगक्कवालोऽपर इंदवुारस्तयेत्थशालोऽपर ईसराफ:।

नक्तं तत: स्याधमया मणाऊ

कबूलतो गैररकबूलमुक्तम़।।१।।

खल्लासरं रद्दमथो दफु ाललकुत्थं च दत्ुथोत्थदवीरनामा।

तंबीरकुत्थौ दरुफश्च योगा: स्यु: षोडशैषां कथयालम लक्ष्मं।।२।।

ताजिक निलकं ठी में ये मुख्य१६ योग क्रमश: १)इक्कबाल,२)इन्दवुार,३)इत्थशाल ४)ईसराफ,५)िक्त

६)यमया,७)मणाऊ,

८)कंबुल,९)गैररकंबुल,१०)खल्लासर,११)

रद्द,१२)दफु ाललकुत्थ १३)दत्ुथोत्थवीर

१४)तंबीर,१५)कुत्थ,१६)दरुफ है।

पररभाषा

१)इक्कबाल:यदद सभी ग्रह के न्र और पणफर में ही हो तो इक्कबाल योग कहलाता है।यह शुभ योग होता

है। २)इन्दवुार:यदद सभी ग्रह आपोजक्लम

(३,६,९,१२) में हो तो इन्दवुार योग होता है।यह अशुभ योग है।

३)यदद शीध्रगालम ग्रह का भुक्तांश थोडा हो और अपिे संमुख जथथत अधिक अंश वाले, मंद गनत ग्रह को

अपिा तेि देता हो तो इत्थशाल योग होता है।यह योग ३ प्रकार का होता है पुणणयोग, सामान्य योग

भववष्य मे होिे वाला योग।

४)ईसराफ:ग्रहों के परथपर दरू िािे से (ददपतांश से )ईसराफ योग होता है।

५)नक्त योग:लग्िेश, कायेश में परथपर दृजष्ि ि हो और दोिों के अंश से कम ,मध्य में जथथत लशघ्रगती

ग्रह यदद पीछे जथथत ग्रह से तेि लेकर आगे जथथत मंदगनत ग्रह को देता हो तो िक्त योग होता

6)यमया योग:यदद लग्िेश कायेष में परथपर दृजष्ि ि हो और अंशापेक्ष्या उि दोिों के बीच में, दोिो की

अपेक्षा मंदगनत ग्रह यदद शीघ्रगनत से तेि लेकर मंदगनत ग्रह को देता हो तो कायण लसद्धिदायक िामक

यमया योग होता है।

७)मणऊयोग:यदद लग्िेश और कायेश के बीच इत्थशाल योग हो तथा वक्रक्र मंगल या शनि बीच में आकर

अपिी दृजष्ि से कायेश के साथ इत्थशाल करते हुवे तेि हरण करता हो तो मणऊ योग होता है।

८)कंबुलयोग:यदद लग्िेश और कायेश में इत्थशाल हो,उिमें दोिो या क्रकसी एक के साथ चंरमा का

इत्थशाल हो तो उत्तम,मध्यम,निम्ि आदद भेदों से १६ ववलभन्ि कंबुल योग होते हैं।

९)गैररकंबुलयोग:लग्िेश कायेश में इत्थशाल हो और चंन्रमा शुन्यमागणगत हो और इिसे इतथशाल योग ि

हो तो गैररकंबुल योग होता है।

१०)खल्लासर योग:यदद चंन्रमा शुन्यमागण में हो और लग्िेश कायेश के साथ इत्थशाल योग ि हो तो

खल्लासर योग होता हैं।

११)रद्दयोग: वक्रक्र ग्रह का इत्थशाल योग पुणण फलप्रद िहीं होता इसललए उसी का िाम रद्दयोग है।

१२)दफु ाललकुत्थयोग:लग्िेश और कायेश में िो मंदगनत ग्रह हो वह अपिे उच्चादद शुभ फल में हो और

उच्चादद पद से हीि शीध्रगनत ग्रह से इंतिार योग करता हो तो दफु ाललकुत्थ योग होता है।

१३)तंबीरयोग:यदद लग्िेश कायेश में कोई एक बलल रालश के अंनतम अंश में होकर आगे रालश में िािेवाला

हो और उस आगे की रालश में दीपतांश अविी में जथथत अंन्य ग्रह भी अपिा तेि देिेवाला हो तो

काा्यणलसध्दीकारक तंबीर योग होता है

१४)कुत्थयोग:सब ग्रह ,लग्िेश कायेश बलल हो तो कुत्थयोग होता है

१५)दत्ुथोत्थवीरयोग:कायेश लग्िेश अथत निचादद थथाि में होकर निबणल हो,इि दोिों में से यदद एक

थवक्षाणदद थथािथथ क्रकसी अन्य ग्रह के साथ इत्थशाल करता हो और दो अन्य ग्रह बली हो तो

दत्ुथोत्थदवीर िामक योग होता है।

१६)दरुफयोग:लग्ि से ६-८-१२ में जथथत ग्रह, वक्री, शत्रुगदह,णनिचगत वक्री होिेवाला पापग्रह से युक्त,

अथतंगत पाप,निच और शत्रुरालशथथ ग्रह से इत्थशाल करिेवाला १२-६-८ थथाि जथथत ग्रह से इत्थशाल

करिे की इच्छा रखिेवाला और थवरालश से सपतम में जथथत ग्रह तथा राहुके पुच्छ या मुख मे रहिेवाला

ग्रह निबणल (दरुफकारक) होता है।

ये सभी योग ताजिक की दृजष्ि, ददपतांश , शत्रु, लमत्र के अिुसार फलीभुत होते