डिजिटल हस्ताक्षर और क़ानून

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सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 एसिमेट्रिक क्रिप्टोसिस्टम्स पर आधारित डिजिटल हस्ताक्षरों को अपेक्षित वैधानिक शक्ति प्रदान करता है। अब डिजिटल हस्ताक्षर हस्तलिखित हस्ताक्षरों के समान स्वीकार किए जाते हैं और जिन इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों पर डिजिटल हस्ताक्षर किए गए हों, उन्हें कागज़ी दस्तावेज के समान समझा जाता है।


सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम प्रमाणन प्राधिकरण नियंत्रक (सीसीए) के लिए लाइसेंस की व्यवस्था करता है और प्रमाणन प्राधिकरण. की कार्यप्रणाली को संचालित करता है। प्रमाणन प्राधिकरण (सी.ए.) उपयोगकर्ताओं के इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रमाणन के लिए डिजिटल हस्ताक्षर संबंधी प्रमाण-पत्र जारी करता है।


सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अधिनियम की धारा 17 के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा प्रमाणन प्राधिकरण नियंत्रक (सीसीए) की नियुक्ति की गई है। सीसीए के कार्यालय ने 1 नवम्बर 2000 को कार्य करना आरंभ किया था। इसका उद्देश्य डिजिटल हस्ताक्षरों के उपयोग के माध्यम से ई-कॉमर्स और ई-गवर्नेंस का विकास करना था।


सीसीए ने सू.प्रौ.अधिनियम की धारा 18 (बी) के तहत आरसीएआई की स्थापना की है ताकि देश में प्रमाणन प्राधिकरणों की सार्वजनिक कुंजियों पर डिजिटल रूप में हस्ताक्षर किए जा सकें। अधिनियम के तहत निर्धारित मानकों के अनुसार आरसीएआई का संचालन किया जाता है।


सीसीए अपनी प्राइवेट कुंजियों के उपयोग के द्वारा सी.ए. की सार्वजनिक कुंजियों को प्रमाणित करता है, जिससे साइबर स्पेस में उपयोगकर्ताओं के लिए यह सत्यापित हो सके उक्त जारी प्रमाण-पत्र एक लाइसेंसी सी.ए. द्वारा जारी किया गया है। इस उद्देश्य के लिए, यह रूट सर्टिफाइंग अथॉरिटी ऑफ इंडिया (आरसीएआई) के कार्यों को संचालित करता है। सीसीए नेशनल रिपॉजिटरी ऑफ डिजिटल सर्टिफिकेट्स (एनआीडीसी), का रखरखाव भी करता है, जिसमें देश में समस्त प्रमाणन प्राधिकरणों द्वारा जारी समस्त प्रमाण-पत्र रखे जाते हैं।


सन्दर्भ[संपादित करें]