ट्रांसजेंडर (परलैंगिक व्यक्ति)

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एक ट्रांसजेंडर महिला

ट्रांसजेंडर शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है जिनकी एक लैंगिक पहचान या अभिव्यक्ति उस लिंग से अलग होती है, जो उन्हें उनके जन्म के समय दी गई होती है।[1][2][3]

कुछ ट्रांसजेंडर लोग जो लिंग-परिवर्तन के लिए चिकित्सा सहायता लेने की इच्छा रखते हैं। इन्हें ट्रांससेक्सुअल कहा जाता है।[4]

ट्रांसजेंडर, को अक्सर संक्षिप्त में ट्रांस भी कहा जाता है। यह श्रेणी व्यक्तियों को काफ़ी मोटे तौर पर परिभाषित करती है। इस श्रेणी में न सिर्फ़ वे लोग आते हैं जिनकी लिंग पहचान उनके असाइन किए गए लिंग ( परलैंगिक पुरुष और परलैंगिक महिला ) के विपरीत है, बल्कि उनके अलावा वे लोग भी शामिल हो सकते हैं जो अपने-आप को किसी विशेष रूप से मर्दाना या स्त्री महसूस नहीं करते हैं। उदाहरण के तौर पर गैर-द्विआधारी लैंगिक लोग (non-binary or genderqueer), जिसमें बाईजेंडर (bigender), पैनजेंडर (pangender), लिंगतरल (genderfluid) या एजेंडर (agender) शामिल हैं।[5]

ट्रांसजेंडर की अन्य परिभाषाएँ उन लोगों को भी शामिल करती हैं जो तीसरे लिंग के हैं, अन्यथा ट्रांसजेंडर लोगों की तीसरे लिंग के रूप में अवधारणा करते हैं। ट्रांसजेंडर शब्द बहुत मोटे तौर पर क्रॉस-ड्रेसर को शामिल करने के लिए भी परिभाषित किया जा सकता है।[6]

कई ट्रांसजेंडर लोगों को कार्यस्थल[7] और सार्वजनिक होटलों या अन्य आवासीय स्थान ढूँढने[8] और स्वास्थ्य सेवाएँ ग्रहण करने[9] में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। कई स्थानों पर, उन्हें भेदभाव से बचाने के लिए कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है।[10]

भारतीय संस्कृति और न्यायपालिका तीसरे लिंग को मान्यता देती है। इन्हें हिजड़ा कहा जाता है। भारत में, 15 अप्रैल, 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने एक तीसरे लिंग को मान्यता दी, जो न तो पुरुष है और न ही महिला, यह कहते हुए कि "तीसरे लिंग के रूप में ट्रांसजेंडर्स की मान्यता एक सामाजिक या चिकित्सा मुद्दा नहीं है, बल्कि एक मानवाधिकार मुद्दा है।"[11]

1998 में मध्य प्रदेश की शबनम मौसी में भारत की पहली ट्रांसजेंडर विधायक चुनी गईं।[12]

शब्द का अर्थ[संपादित करें]

Transgender शब्द दो शब्दों मेल से बना है- Trans + Gender।

Trans का अर्थ - के (उस) पार; के परे, दूसरे स्‍थान पर, दूसरी अवस्‍था में (across; beyond), होता है।

Gender का अर्थ लिंग होता है।

अर्थात् ट्रांसजेंडर शब्द का अर्थ '' दूसरी अवस्‍था में लिंग'' है। एक ट्रांसजेंडर मनुष्य की पहचान ट्रांस महिला और ट्रांस पुरुष के तौर पर होती है।[13]

उदाहरण के तौर पर, यदि किसी व्यक्ति को जन्म के समय स्त्रीलिंग का माना गया हो, किंतु वह अपने आप को स्त्री के रूप में न देखकर पुरुष के रूप में देखे, तो ऐसे व्यक्ति को ट्रांसमैन (Transman) या परलैंगिक पुरुष कहा जाएगा। इसी प्रकार यदि कोई जन्म के समय पुरुष माना गया हो (उसके शरीर की जैविक बनावट को देखकर), किंतु वह अपने आप को स्त्री के रूप में देखे, तो उसे ट्रांसवूमन (Transwoman) या परलंगिक महिला कहा जाएगा।

भारत में स्थिति[संपादित करें]

जोगप्पा दक्षिण भारत में एक ट्रांसजेंडर समुदाय है। वे पारंपरिक तौर पर लोक गायक और नर्तक होते हैं।

अप्रैल 2014 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय कानून में ट्रांसजेंडर को 'तीसरा लिंग' घोषित किया।[14][15][16] भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय (हिजड़ा सहित अन्य लोग) का भारत में और हिंदू पौराणिक कथाओं में एक लंबा इतिहास रहा है।[17][18] न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन ने अपने फैसले में कहा कि, "शायद ही कभी, हमारे समाज को उस आघात, पीड़ा और दर्द का एहसास होता है, जिससे ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्य गुजरते हैं, और न ही लोग ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों की जन्मजात भावनाओं की सराहना करते हैं, विशेष रूप से जिनके मन और शरीर ने उनके जैविक लिंग को अपनाने से इंकार कर दिया, ":

Non-recognition of the identity of Hijras/transgender persons denies them equal protection of law, thereby leaving them extremely vulnerable to harassment, violence and sexual assault in public spaces, at home and in jail, also by the police. Sexual assault, including molestation, rape, forced anal and oral sex, gang rape and stripping is being committed with impunity and there are reliable statistics and materials to support such activities. Further, non-recognition of identity of Hijras/transgender persons results in them facing extreme discrimination in all spheres of society, especially in the field of employment, education, healthcare etc.[19]

हिजड़ों को संरचनात्मक भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिसमें ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त न कर पाना और विभिन्न सामाजिक लाभों तक पहुँच से निषिद्ध होना शामिलहै। आम समाज से उन्हें भगा दिया जाना भी आम बात है।[20]

भोपाल, में ट्रांसजेंडर हेतु प्रदेश का पहला सार्वजनिक शौचालय

ट्रांसजेंडर अधिकार संरक्षण अधिनियम, २०१९[संपादित करें]

ट्रांसजेंडर वो इंसान होते हैं जिनका लिंग जन्म के समय तय किए गए लिंग से मेल नहीं खाता। इनमें ट्रांस मेन, ट्रांस वीमन, इंटरसेक्स और किन्नर भी आते हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक इन लोगों के पास अपना लिंग निर्धारित करने का भी अधिकार होता है। ट्रांसजेंडरों को समाज में भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ता है। इसको रोकने के लिए सरकार कानून बनाना चाहती है। इस बिल में ट्रांसजेंडरों की परिभाषा तय की गई है।[21]

पहले लाए गए बिल के मुताबिक ट्रांसजेंडर व्यक्ति ऐसा व्यक्ति है जो ना तो पूरी तरह से महिला है और ना ही पुरुष। वह महिला और पुरुष, दोनों का संयोजन भी हो सकता है या फिर दोनों में से कोई नहीं। इसके अतिरिक्त उस व्यक्ति का लिंग जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाता और जिसमें ट्रांस-मेन (परा-पुरुष), ट्रांस-वीमन (परा-स्त्री) और इंटरसेक्स भिन्नताओं और लिंग विलक्षणताओं वाले व्यक्ति भी आते हैं।[21]

इस बिल के मुताबिक ट्रांसजेंडर व्यक्ति वो है, जिसका जेंडर उसके जन्म के समय निर्धारित हुए जेंडर से मैच नहीं करता। इनमें ट्रांस-मेन, ट्रांस-विमन, इंटरसेक्स या जेंडर-क्वियर और सोशियो-कल्चर आइडेंटिटी जैसे हिजड़ा और किन्नर से संबंध रखने वाले लोग भी शामिल हैं। जबकि ट्रांसजेंडर समुदाय का कहना है कि हर व्यक्ति को लिंग पहचान करने का अंतिम अधिकार होना चाहिए।[22]

इस अधिनियम से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसमें ट्रांसजेंडर आइडेंटिटी के लिए सर्टिफिकेट लेना होगा। इसके लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के पास आवेदन करना होगा। जिसके बाद मेडिकल जांच होगी और फिर सर्टिफिकेट जारी किया जाएगा। इसमें एक रिवाइज्ड सर्टिफिकेट का भी प्रावधान है। ये केवल तब होगा, जब एक व्यक्ति जेंडर कन्फर्म करने के लिए सर्जरी करवाता है। उसके बाद सर्टिफिकेट में संशोधन होगा। इसे समुदाय अपने निजता के अधिकार के हनन के रूप में देख रहा है।[22]

इस बिल का विरोध इसलिए भी हुआ, क्योंकि इसमें ट्रांसजेंडर्स को रिजर्वेशन के दायरे में नहीं रखा गया। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने नालसा जजमेंट में समुदाय को ओबीसी का दर्जा देकर आरक्षण की बात कही थी लेकिन इस बिल में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई।[22]

ग्रेस बानू, ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट का कहना है कि इस बिल में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए हमें हमारे अधिकारों से वंचित कर दिया है। हमें काफी निराशा हो रही है। इस बिल के साथ सरकार ने साबित कर दिया, कि वो अल्पसंख्यकों के खिलाफ है।

ट्रांस एक्टिविस्ट विक्रम ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, ‘ये बिल ट्रांस लोगों की हत्या करने जैसा है। ये बिल पूरी तरह से समुदाय के खिलाफ है। इस बिल को लेकर ट्रांस समुदाय ने तीन-चार राउंड में सुझाव दिए थे लेकिन सरकार ने सबको नज़रअंदाज कर दिया। हमारे समुदाय के बिल को सरकार हमारे सुझाव के बगैर कैसे बना सकती है। हमारे लिए ये बिल केवल एक कोरा कागज़ है। ये ट्रांस लोगों की जिंदगी बद्तर कर देगा। ये बिल सेल्फ-आइडेंटिफिकेशन राइट नहीं देता, जैसा कि 2014 के फैसले में कहा गया था। हमें आईडी कार्ड के लिए मजिस्ट्रेट के पास जाना होगा। अगर हमें आदमी या औरत का कार्ड चाहिए, तो मेडिकल ऑफिसर हमारे शरीर की जांच करेगा। ये अपने आप में अपमानजनक है।

इस बिल में ट्रांसजेंडर रिहैबिल्टेशन, सर्जरी, जनगणना २०११ का आधार को लेकर भी ट्रांसजेंडर समुदाय में खासा रोष है। समुदाय इसे अपने अधिकारों के खिलाफ मान रहा है। साथ ही सरकार का मंशा पर कई सवाल भी खड़े कर रहा है।[22]

ट्रांसजेंडर अधिकार संरक्षण अधिनियम बनने की प्रक्रिया[संपादित करें]

2017 में JLF Melbourne में "Gender and the Spaces Between" पैनल में भारतीय ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी

15 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा पास हुआ नालसा जजमेंट ट्रांसजेंडर समुदाय की दशा और दिशा सुधारने के लिए एक ऐतिहासिक फैसला माना जाता है। इस फैसले से ट्रांसजेंडर समुदायों को पहली बार ‘तीसरे जेंडर’ के तौर पर पहचान मिली। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ट्रांसजेंडर समुदायों को संविधान के मूल अधिकार देता है। इसके बाद डीएमके पार्टी के राज्यसभा सांसद तिरुची शिव ने सदन में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया। जिसका विरोध सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत ये कहकर किया कि सरकार कोर्ट के फैसले के बाद पहले से ही पॉलिसी बना रही है। इसलिए बिल को शिव वापस ले लें लेकिन शिव अपने बिल पर अड़े रहे। आखिरकार अप्रैल 2015 में शिव का बिल राज्यसभा में पास हो गया। उन्होंने तर्क दिया कि कागज में ट्रांसजेंडर्स की संख्या साढ़े चार लाख है, लेकिन असल में इनकी संख्या 20 लाख के आसपास हो सकती है। इन्हें वोट देने का अधिकार तो है, लेकिन भेदभाव से बचाने के लिए कोई भी कानून नहीं है।

लोकसभा में इस बिल को अगस्त 2016 में बीजेडी सांसद बैजयंत पांडा ने प्राइवेट मेंबर बिल के तौर पर पेश किया। लेकिन बाद में बैजयंत बीजेपी में शामिल हो गए जिसके बाद इस बिल को सरकार ने टेकओवर कर लिया और अपना एक ड्राफ्ट पेश किया। इसे स्टैंडिंग कमेटी को भेज दिया गया। कमेटी ने इस बिल पर सरकार को लगभग 27 सुझाव दिए। जिसके बाद इस बिल ट्रांसजेंडर अधिकार संरक्षण बिल 2016 में कुछ बदलावों के साथ जैसे ट्रांसजेंडर की परिभाषा, भीख मांगने को अपराध के दायरे से बाहर करना और स्क्रीनिंग कमेटी को हटाना शामिल हैं, इस बिल को दिसंबर 2018 में लोकसभा में पास कर दिया गया। लेकिन 16वीं लोकसभा के खत्म होने के बाद, इसे फिर से नई लोकसभा में ट्रांसजेंडर अधिकार संरक्षण बिल- 2019 के नाम से पेश किया गया और अब ये राज्यसभा से पास हो गया। इसके बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ये कानून बन गया।

अधिनियम के मुख्य बिंदु[संपादित करें]

इस बिल के मुताबिक ट्रांसजेंडर व्यक्ति की परिभाषा है, जिसका जेंडर उसके जन्म के समय निर्धारित हुए जेंडर से मैच नहीं करता। इनमें ट्रांस-मेन, ट्रांस-विमन, इंटरसेक्स या जेंडर-क्वियर और सोशियो-कल्चर आइडेंटिटी जैसे हिजड़ा और किन्नर से संबंध रखने वाले लोग भी शामिल हैं।इस बिल में ट्रांसजेंडर्स के साथ होने वाले भेदभाव पर रोक लगाने के प्रावधान हैं।

बिल के मुताबिक कई क्षेत्रों में अक्सर ट्रांसजेंडर्स के साथ भेदभाव होता है, जैसे-

  • शिक्षा- सरकारी शैक्षणिक संस्थाओं में, या फिर सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थाओं में ट्रांसजेंडर्स के साथ किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। ट्रांसजेंडर्स को भी उन संस्थाओं में पढ़ने का, खेलों में हिस्सा लेने का पूरा अधिकार है।
  • नौकरी- कोई भी सरकारी या प्राइवेट संस्था नौकरी देने में, प्रमोशन देने में ट्रांसजेंडर्स के साथ कोई भेदभाव नहीं कर सकती। हर संस्था में एक शिकायत अधिकारी होगा, जो इस एक्ट से जुड़ी हुई शिकायतों पर कार्रवाई करेगा। ये अधिकारी ट्रांसजेंडर्स के अधिकारों की रक्षा करने के लिए होगा।
  • स्वास्थ्य देखभाल - ट्रांसजेंडर्स को हेल्थ से जुड़ी हुई सुविधाएं देने के लिए सरकार कदम उठाएगी। इसके तहत अलग से एचआईवी टेस्ट सेंटर्स खोलने, सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी की सुविधा और ट्रांसजेंडर्स को मेडिकल इंश्योरेंस स्कीम का भी प्रावधान है।
  • निवास का अधिकार- हर ट्रांसजेंडर को अपने परिवार के साथ, अपने घर में रहने का अधिकार है। अगर उसका परिवार उसकी केयर करने में नाकाम होता है, तो वो रीहैबिलटैशन सेंटर में रह सकता है। इसके अलावा वो किराये का घर लेकर भी रह सकता है, उसे कोई भी मकान मालिक इस आधार पर घर देने से मना नहीं कर सकता, कि वो ट्रांसजेंडर है। वो खुद के नाम प्रॉपर्टी भी खरीद सकता है।
  • पब्लिक और प्राइवेट ऑफिस खोलने का अधिकार
  • पब्लिक को दी जा रही सुविधाओं का लाभ उठाने का अधिकार
  • आंदोलन करने का अधिकार

इस कानून के मुताबिक जबरन किसी ट्रांसजेंडर को बंधुआ मजदूर बनाना, (हालांकि अगर किसी सरकारी स्कीम के तहत कोई ट्रांसजेंडर मजदूरी करता है, तो वो अपराध नहीं होगा), सार्वजनिक स्थानों का इस्तेमाल करने से रोकना, घर से या गांव से निकालना, शारीरिक हिंसा, यौन हिंसा या यौन शोषण, मौखिक तौर पर, मानसिक तौर पर या आर्थिक तौर पर परेशान करना, अपशब्द कहना अपराध की श्रेणी में रखा गया है।

दंड का प्रावधान[संपादित करें]

इस बिल के मुताबिक ट्रांसजेंडर्स के खिलाफ ये सारे अपराध करने वाले को 6 महीने से दो साल तक की सजा हो सकती है। साथ ही जुर्माना भी लग सकता है। हर अपराध के मुताबिक दंड तय होगा। इस बिल में ट्रांसजेंडर्स के लिए एक काउंसिल नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन बनाने की बात भी कही गई है, जो केंद्र सरकार को सलाह देगा। केंद्रीय समाजिक न्याय मंत्री इसके अध्यक्ष होंगे साथ ही सोशल जस्टिस राज्य मंत्री इसके वाइस-चेयरपर्सन होंगे। इसके अलावा सोशल जस्टिस मंत्रालय के सचिव, हेल्थ, होम अफेयर्स, ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट मंत्रालयों से एक-एक प्रतिनिधि शामिल होंगे। नीति आयोग और नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन के भी मेंबर्स इस काउंसिल में होंगे। राज्य सरकारों का भी प्रतिनिधित्व इसमें होगा। साथ ही ट्रांसजेंडर्स कम्युनिटी से पांच मेंबर्स और अलग-अलग एनजीओ से पांच एक्सपर्ट्स होंगे।

चिन्ह[संपादित करें]

ट्रांसजेंडर[मृत कड़ियाँ] प्राइड फ्लैग

ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक सामान्य प्रतीक ट्रांसजेंडर प्राइड फ्लैग है, जिसे 1999 में अमेरिकी ट्रांसजेंडर महिला मोनिका हेल्स द्वारा डिजाइन किया गया था, और इसे पहली बार 2000 में फीनिक्स, एरिजोना में एक प्राइड परेड में दिखाया गया था। ध्वज में पाँच क्षैतिज पट्टियाँ होती हैं: हल्का नीला, गुलाबी, सफेद, गुलाबी और हल्का नीला। हेल्स ने ध्वज का अर्थ निम्नानुसार बताया हैं:

The light blue is the traditional color for baby boys, pink is for girls, and the white in the middle is for "those who are transitioning, those who feel they have a neutral gender or no gender", and those who are intersex. The pattern is such that "no matter which way you fly it, it will always be correct. This symbolizes us trying to find correctness in our own lives."[23]

अन्य ट्रांसजेंडर प्रतीकों में तितली (परिवर्तन या कायान्तरण का प्रतीक),[24] और एक गुलाबी / हल्का नीला यिन और यांग प्रतीक शामिल हैं। [25] ट्रांसजेंडर लोगों का प्रतिनिधित्व करने के लिए और सहित कई लिंग प्रतीकों का उपयोग किया जाता है।[26][27]

ये सभी देखें[संपादित करें]

टिप्पणियाँ[संपादित करें]

  1. Altilio, Terry; Otis-Green, Shirley (2011). Oxford Textbook of Palliative Social Work. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस. पृ॰ 380. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0199838271. मूल से December 1, 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि April 12, 2016. Transgender is an umbrella term for people whose gender identity and/or gender expression differs from the sex they were assigned at birth (Gay and Lesbian Alliance Against Defamation [GLAAD], 2007).
  2. Forsyth, Craig J.; Copes, Heith (2014). Encyclopedia of Social Deviance. Sage Publications. पृ॰ 740. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1483364698. मूल से December 1, 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि April 12, 2016. Transgender is an umbrella term for people whose gender identities, gender expressions, and/or behaviors are different from those culturally associated with the sex to which they were assigned at birth.
  3. Berg-Weger, Marla (2016). Social Work and Social Welfare: An Invitation. Routledge. पृ॰ 229. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1317592020. मूल से December 1, 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि April 12, 2016. Transgender: An umbrella term that describes people whose gender identity or gender expression differs from expectations associated with the sex assigned to them at birth.
  4. R Polly, J Nicole, Understanding the transsexual patient: culturally sensitive care in emergency nursing practice, in the Advanced Emergency Nursing Journal (2011): "The use of terminology by transsexual individuals to self-identify varies. As aforementioned, many transsexual individuals prefer the term transgender, or simply trans, as it is more inclusive and carries fewer stigmas. There are some transsexual individuals [,] however, who reject the term transgender; these individuals view transsexualism as a treatable congenital condition. Following medical and/or surgical transition, they live within the binary as either a man or a woman and may not disclose their transition history."
  5. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर "Yet Jordan and Nick represent a segment of transgender communities that have largely been overlooked in transgender and student development research – individuals who express a non-binary construction of gender[.]"
  6. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  7. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  8. Gay and Lesbian Alliance Against Defamation. "Groundbreaking Report Reflects Persistent Discrimination Against Transgender Community" Archived 2011-08-03 at the वेबैक मशीन, GLAAD, USA, February 4, 2011. Retrieved 2011-02-24.
  9. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  10. Whittle, Stephen. "Respect and Equality: Transsexual and Transgender Rights." Routledge-Cavendish, 2002.
  11. "Transgenders are the 'third gender', rules Supreme Court". NDTV. April 15, 2014. मूल से April 15, 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि April 15, 2014.
  12. "First transgender mayor elected in central India". January 5, 2015. मूल से January 25, 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि January 7, 2015.
  13. "ट्रांसजेंडर क्या होता है". Kulhaiya. 26 नवम्बर 2019. मूल से 26 जून 2019 को पुरालेखित.
  14. "India recognises transgender people as third gender". The Guardian. 15 April 2014. मूल से 15 April 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 April 2014.
  15. McCoy, Terrence (15 April 2014). "India now recognizes transgender citizens as 'third gender'". The Washington Post. मूल से 15 April 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 April 2014.
  16. "Supreme Court recognizes transgenders as 'third gender'". The Times of India. 15 April 2014. मूल से 15 April 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 April 2014.
  17. "Why transgender not an option in civil service exam form: HC". मूल से 2015-12-03 को पुरालेखित.
  18. "Why transgender not an option in civil service exam form: HC". The Economic Times. 2015-06-15. मूल से 2016-01-25 को पुरालेखित.
  19. "IN THE SUPREME COURT OF INDIA CIVIL ORIGINAL JURISDICTION WRIT PETITION (CIVIL) NO.400 OF 2012" (PDF). मूल से 25 जून 2017 को पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि 2019-06-19.
  20. "Hijras: The Battle for Equality". 29 January 2014. मूल से 23 जून 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 June 2019.
  21. "क्या है ट्रांसजेंडर अधिकार संरक्षण बिल जिस पर ट्रांसजेंडर समुदाय सरकार से नाराज है". DW. 22 नवम्बर 2019. मूल से 27 नवंबर 2019 को पुरालेखित.
  22. "ट्रांसजेंडर बिल को ट्रांस समुदाय ने बताया 'जेंडर जस्टिस मर्डर' बिल". न्यूज़क्लिक. 27 नवम्बर 2019.
  23. Ford, Zack (August 27, 2014). "Transgender Pride Flag Designer Applauds Smithsonian LGBT Artifacts Collection". ThinkProgress. United States of America. मूल से 17 नवंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि December 4, 2015.
  24. "I'm Scared to Be a Woman". Human Rights Watch. 24 September 2014. मूल से 6 September 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 September 2015. a 22-year-old transgender woman sports a tattoo of a butterfly—a transgender symbol signifying transformation
  25. Mental health and mental disorders : an encyclopedia of conditions, treatments, and well-being. Sperry, Len. Santa Barbara, California. पृ॰ 1150. OCLC 915943054. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-4408-0382-6.सीएस1 रखरखाव: अन्य (link)
  26. "Symbols". glbtq.com. मूल से August 4, 2008 को पुरालेखित.
  27. Petronzio, Matt (June 13, 2014). "A Storied Glossary of Iconic LGBT Flags and Symbols". Mashable. मूल से April 3, 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि April 3, 2019.

संदर्भ[संपादित करें]

आगे की पढ़ाई[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]