झारखंड की जनजातियाँ
झारखंड भारत का एक जनजातीय बहुल राज्य है। झारखंड में कुल 32 जनजातियां पाई जाती हैं, जिनकी जनसंख्या लगभग 86,45,042 है, जो झारखंड की जनसंख्या में 26.2% है। इन 32 जनजातियों में से 8 आदिम जनजातियां हैं, जिनकी जनसंख्या 1,92,425 हे जो प्रतिसत मे 0.72%है। संथाल झारखंड की जनजातियों में सबसे बड़ी जनजाति है, जिनकी जनसंख्या अधिक है। झारखंड की अन्य प्रमुख जनजातियों में कोल, मुण्डा, हो, भूमिज, उरांव, बिरहोर आदि शामिल हैं।[1][2]
वर्गीकरण[संपादित करें]
झारखंड में जनजातियों को मूल रूप से भारतीय मानवविज्ञानी ललिता प्रसाद विद्यार्थी द्वारा उनके सांस्कृतिक प्रकारों के आधार पर वर्गीकृत किया गया था। उनका वर्गीकरण इस प्रकार था:
- शिकारी-संग्रहकर्ता प्रकार - बिरहोर, कोरवा, पहाड़ी खड़िया
- स्थानान्तरित कृषि - सौरिया पहाड़िया, माल पहाड़िया
- साधारण कारीगर — महली, लोहरा, करमाली, चिक बड़ाइक
- स्थिर कृषक - भूमिज, हो, उरांव, मुंडा, संथाल आदि।
झारखंड की प्रमुख जनजातियां[संपादित करें]
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) अधिनियम, 1976 के अनुसार और 2000 के अधिनियम 30 द्वारा सम्मिलित झारखंड की प्रमुख जनजातियाॅं -
- असुर
- बिरहोर
- खड़िया
- मुंडा
- हो
- भूमिज
- उरांव
- संथाल
- चेरो
- खरवार
- खोंड
- किसान
- कोरवा
- बैगा
- पहाड़िया
- सौरिया पहाड़िया
- माल पहाड़िया
- चिक बड़ाइक
- गोंड
- बंजारा
- कोल
- कंवर
- बेदिया
- बिंझिया
- लोहरा
- गोरयत
- बथुड़ी
- कोरा
- करमाली
- बिरजिया
- सवर
- महली
झारखण्ड के प्रमुख आदिम जनजातियाॅं[संपादित करें]
झारखंड में कुल 32 जनजातियाॅं पायी जाती है, और इनमे से 24 जनजातियाॅं प्रमुख श्रेणी में आते हैं और 8 आदिम जनजाति में आते हैं।
जनजातीय भाषाएं[संपादित करें]
झारखंड की प्रमुख जनजातीय भाषाएं -
जनजातीय आंदोलन[संपादित करें]
झारखण्ड राज्य में 1765 में ब्रिटिश आगमन से अब तक अनेक विद्रोह और आंदोलन हुए, जिनमें झारखंड के जनजातियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा -
- 1768-1784: धलभूम और बड़ाभूम में भूमिज सरदारों के नेतृत्व में चुआड़ विद्रोह; जगन्नाथ सिंह पातर, सुबल सिंह, श्याम गुंजम, आदि के नेतृत्व में।
- 1778: छोटानागपुर के पहाड़िया सरदारों का अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह।
- 1784-1785: तिलका मांझी का संथाल विद्रोह।
- 1787-1799: भूमिज सरदारों और किसानों का चुआड़ विद्रोह; लक्ष्मण सिंह, लाल सिंह, मोहन सिंह, आदि के नेतृत्व में।
- 1789: छोटानागपुर के तमाड़ में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह।
- 1794-1795: तमाड़ में फिर विद्रोह।
- 1798-99: छोटानागपुर में पंचेत एस्टेट की बिक्री के खिलाफ भूमिज विद्रोह।
- 1805-1830: भूमिज चुआड़ विद्रोह; बैद्यनाथ सिंह, रघुनाथ सिंह और अन्य सरदारों के नेतृत्व में।
- 1820-21: लड़का कोल (हो जनजाति) का विद्रोह।
- 1831-1832: छोटानागपुर में कोल जनजाति (हो, उरांव, भूमिज और मुंडा) का कोल विद्रोह; सिंगराय मानकी, बिंदराय मानकी, सुर्गा मुंडा, कार्तिक सरदार, बुधू भगत, जोआ भगत, आदि के नेतृत्व में।
- 1831-1833: गंगा नारायण सिंह का भूमिज विद्रोह।
- 1836-1837 : पोटो हो का विद्रोह।
- 1850-1860: छोटानागपुर में तेलंगा खड़िया का विद्रोह।
- 1855-1856: सिद्धू-कान्हू के नेतृत्व में संथाल विद्रोह।
- 1857: छोटानागपुर में चेरो और खरवार विद्रोह।
- 1858-94: भूमिज जनजाति का सरदारी आंदोलन।
- 1889: मुंडाओं द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ छोटानागपुर में जन आंदोलन।
- 1899-1900: बिरसा मुंडा का मुंडा विद्रोह (उलगुलान)।
- 1913-1914: टाना भगत आंदोलन।
- 1920-1921: दूसरा टाना भगत आंदोलन।
- 1928- झारखंड आंदोलन की शुरुआत।
चित्र दीर्घा[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ Minz, Diwakar; Hansda, Delo Mai (2010). Encyclopaedia of Scheduled Tribes in Jharkhand (अंग्रेज़ी में). Gyan Publishing House. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7835-121-6.
- ↑ Ghurye, Govind Sadashiv (1980-01-01). The Scheduled Tribes of India (अंग्रेज़ी में). Transaction Publishers. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-4128-3885-6.