ज्ञानप्रकाश शास्त्री

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प्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री (जन्म- ९ मार्च १९५१) संस्कृत भाषा एवं साहित्य के प्राध्यापक तथा मुख्यतः वैदिक साहित्य से सम्बन्धित लेखक हैं। उन्होंने वेद, उपनिषदों, अष्टाध्यायी एवं महाभारत आदि से सम्बन्धित अनेक विश्वकोशात्मक (encyclopaedic) कार्य किये हैं।

परिचय[संपादित करें]

प्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री का जन्म ९ मार्च १९५१ में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गुरुकुल पद्धति के अनुसार उत्तर प्रदेश के एटा गुरुकुल में हुई। व्याकरणशास्त्र के अध्ययन के पश्चात् उन्होंने अपने शोध-कार्य का क्षेत्र वैदिक साहित्य को अपनाया और इस पर उन्होंने अनेक प्रकार से शोध-कार्य किया।[1]

प्रो॰ शास्त्री गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के 'श्रद्धानन्द वैदिक शोध-संस्थान' में निदेशक पद से अवकाश प्राप्त हुए।

लेखन-कार्य एवं सम्पादन[संपादित करें]

प्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री का लेखन-कार्य उनके शोधप्रबन्ध-लेखन से आरम्भ हुआ। उन्होंने आचार्य यास्क और आचार्य दुर्ग की निरुक्तवृत्ति पर एक बृहदाकार शोध प्रबन्ध लिखा था जो विश्वविद्यालय स्तर का प्रशंसनीय कार्य माना गया।[1] लेखन की प्रवृत्ति और अभ्यास के नैरन्तर्य के कारण उन्होंने विद्वत् समाज और शोधार्थियों को लाभान्वित करने योग्य अनेक उच्चस्तरीय ग्रन्थों की रचना की तथा अनेक ग्रन्थों का सम्पादन किया, जिनका सम्पादन भी काफी हद तक रचनात्मक है। उनके लेखन तथा सम्पादन कार्य को मुख्यतः चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-- वेद-भाष्य से सम्बन्धित, निरुक्त एवं निघण्टु से सम्बन्धित, पाणिनि के अष्टाध्यायी से सम्बन्धित तथा विभिन्न पदानुक्रम कोष।

आचार्य यास्क पर केन्द्रित उनकी दो पुस्तकें हैं-- 'आचार्य यास्क की वेदव्याख्या पद्धति' तथा 'आचार्य यास्क का पदचतुष्टय सिद्धान्त'। आचार्य दुर्ग पर केन्द्रित उनकी पुस्तक है 'आचार्य दुर्ग की निरुक्तवृत्ति का समीक्षात्मक अध्ययन'। इसके अतिरिक्त 'वैदिकनिर्वचनकोषः' में उन्होंने वेद, ब्राह्मणग्रन्थ निरुक्त एवं वैदिक निघण्टुकोष के समस्त नामपदों[2] को अक्षरानुक्रम से संयोजित कर उनके प्रयोग-स्थलों के निर्देशपूर्वक मुख्यतः वैदिक संहिताओं, विभिन्न ब्राह्मणग्रन्थों, निरुक्त एवं निघण्टु के अनुसार उनकी व्युत्पत्ति दी है। बाद में उन्होंने आचार्य दुर्ग की निरुक्तवृत्ति का संपादन भी किया।

'यजुर्वेद-पदार्थ-कोषः' में उन्होंने यजुर्वेद के पदों को अक्षरानुक्रम से संयोजित करते हुए उसके प्रयोग-स्थल का पता देकर संस्कृत एवं हिन्दी में उसका विश्लेषणपरक अर्थ दिया है। इस क्रम में अनेकानेक पदों के अर्थ-विश्लेषण में निघण्टु एवं अष्टाध्यायी आदि के सन्दर्भ भी दिये गये हैं। उनके सर्वाधिक महत्त्वाकांक्षी कार्यों में से एक था 'ऋग्भाष्य-पदार्थ-कोषः' का संपादन। इसमें उन्होंने ऋग्वेद के पदों का अक्षरानुक्रम से संयोजन कर आचार्य यास्क से लेकर स्वामी दयानन्द सरस्वती तक प्रमुख ग्यारह भाष्यकारों द्वारा किये गये अर्थों को समायोजित किया है।[3] हालाँकि इस बृहद् ग्रन्थ के समुचित उपयोग के लिए संस्कृत भाषा की सामान्य जानकारी अपेक्षित है, परन्तु इसकी विस्तृत भूमिका के रूप में उन्होंने हिन्दी भाषा में एक बृहद् पुस्तक की ही रचना कर डाली-- 'ऋग्वेद के भाष्यकार एवं उनकी मन्त्रार्थ दृष्टि' जिसमें उन्होंने ऋग्वेद के बारह भाष्यकारों के जीवन एवं सृजन पर काफी विस्तार से विचार किया है।[4] [5] बाद में उन्होंने इस ग्रन्थ के परिशिष्ट में पं॰ रामनाथ वेदालंकार का विवेचन भी जोड़ दिया।[6]

प्रो॰ शास्त्री का दूसरा सबसे महत्वाकांक्षी एवं वृहद् परियोजनात्मक कार्य 'महाभारत-पदानुक्रम-कोष' का सम्पादन एवं प्रकाशन था। इस विशाल ग्रन्थ में गीताप्रेस से प्रकाशित महाभारत के संस्करण को आधार रूप में लेते हुए महाभारत के समस्त पदों को अक्षरानुक्रम (alphabetical) रूप में संयोजित करते हुए उनके समस्त प्रयोग-स्थलों को अंकित किया गया है।

'योगसूत्र' नामक ग्रन्थ में प्रो॰ शास्त्री ने महर्षि पतञ्जलि रचित सूत्रों की हिन्दी व्याख्या तथा महर्षि व्यासकृत भाष्य की पदच्छेद पूर्वक हिन्दी व्याख्या प्रस्तुत करने के उपरान्त आचार्य रजनीश के विचारों के आलोक में स्वतन्त्र रूप से 'नीलाभधारा' नामक हिन्दी व्याख्या भी प्रस्तुत की है।

प्रकाशित पुस्तकें[संपादित करें]

  1. आचार्य यास्क की वेद व्याख्या पद्धति -१९८५ ई॰ (श्री पब्लिशिंग हाउस, अजमेरी गेट, दिल्ली)
  2. वैदिकनिर्वचनकोषः -२००० ई॰ (परिमल पब्लिकेशन्स, शक्तिनगर, दिल्ली)
  3. आचार्य यास्क का पदचतुष्टय सिद्धान्त -२००२ (संस्कृत ग्रन्थागार, रोहिणी, दिल्ली)
  4. आचार्य दुर्ग की निरुक्तवृत्ति का समीक्षात्मक अध्ययन -२००३ (परिमल पब्लिकेशन्स, शक्तिनगर, दिल्ली)
  5. वैदिक साहित्य में जलतत्त्व और उसके प्रकार -२००४ (परिमल पब्लिकेशन्स, दिल्ली)
  6. पाणिनि-प्रत्ययार्थ-कोषः (तद्धित प्रकरणम्) -२००४ (परिमल पब्लिकेशन्स, दिल्ली)
  7. वैदिक साहित्य के परिप्रेक्ष्य में निघण्टुकोश के पर्यायवाची नामपदों में अर्थभिन्नता -२००५ (परिमल पब्लिकेशन्स, दिल्ली)
  8. यजुर्वेद-पदार्थ-कोषः -२००९ (परिमल पब्लिकेशन्स, दिल्ली)
  9. दयानन्द-सन्दर्भ-कोषः (तीन भागों में) -२०११ (परिमल पब्लिकेशन्स, दिल्ली)
  10. निरुक्तभाष्यटीका (श्रीस्कन्दस्वामिमहेश्वर विरचिता) -२०१२ (परिमल पब्लिकेशन्स, दिल्ली)
  11. ऋग्वेद के भाष्यकार और उनकी मन्त्रार्थदृष्टि -२०१२ (महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन)
  12. ऋग्भाष्य-पदार्थ-कोषः (आठ भागों में) -२०१३ (परिमल पब्लिकेशन्स, दिल्ली)
  13. प्रस्थानत्रयी-पदानुक्रम-कोषः -२०१४ (परिमल पब्लिकेशन्स, दिल्ली)
  14. निरुक्तवृत्ति -२०१५ (परिमल पब्लिकेशन्स, दिल्ली)
  15. यजुर्वेद-भाव-विषय-देवता-ऋषि-कोषः -२०१५ (महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन)
  16. औपनिषदिक-पदानुक्रम-कोषः (तीन भागों में) -२०१५ (परिमल पब्लिकेशन्स, दिल्ली)
  17. पाणिनि-कृदन्त-प्रत्ययार्थ-कोषः -२०१६ (परिमल पब्लिकेशन्स, दिल्ली)
  18. योगसूत्र (व्यासभाष्य हिन्दी व्याख्या सहित) -२०१६ (परिमल पब्लिकेशन्स, दिल्ली)
  19. महाभारत-पदानुक्रम-कोषः -२०१७ (परिमल पब्लिकेशन्स, दिल्ली)

फेलोशिप[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. यजुर्वेद-पदार्थ-कोषः, प्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री, परिमल पब्लिकेशंस, दिल्ली, संस्करण-२००९, अंतिम आवरण पृष्ठ पर उल्लिखित।
  2. वैदिकनिर्वचनकोषः, प्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री, परिमल पब्लिकेशंस, दिल्ली, संस्करण-२००७, पृष्ठ-v (पुरोवाक्)।
  3. ऋग्भाष्य-पदार्थ-कोषः, प्रथम भाग, प्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री, परिमल पब्लिकेशन्स, शक्तिनगर, दिल्ली, प्रथम संस्करण-२०१३ ई॰, पृष्ठ-V,VI एवं ५२-५६ ('अग्निम्' पद)।
  4. ऋग्भाष्य-पदार्थ-कोषः, प्रथम भाग, पूर्ववत्, पृष्ठ-v.
  5. ऋग्वेद के भाष्यकार एवं उनकी मन्त्रार्थ दृष्टि, प्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री, महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन, द्वितीय संस्करण-२०१५, पृष्ठ-iv (प्राथम्यङ्किञ्चित्).
  6. ऋग्वेद के भाष्यकार एवं उनकी मन्त्रार्थ दृष्टि, प्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री, महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन, द्वितीय संस्करण-२०१५, पृष्ठ-७६२.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]