जोधपुर रियासत

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जोधपुर रियासत
ब्रिटिश भारत
1250 – 1949
Flag राज्य-चिह्न
Flag Coat of arms
स्थिति जोधपुर
स्थिति जोधपुर
इम्पीरियल गजेटियर आफ़ इण्डिया में जोधपुर रियासत
इतिहास
 - स्थापना 1250
 - भारत की स्वतंत्रता 1949
क्षेत्रफल
 - 1931 93,424 किमी² (36,071 वर्ग मील)
जनसंख्या
 - 1931 21,25,000 
     घनत्व 22.7 /किमी²  (58.9 /वर्ग मील)
वर्तमान भाग राजस्थान, भारत
सरदार सिंह, जोधपुर के महाराजा (लगभग 1900)
दौलत खाना में महाराजा की सेवा में एक पुराना सैनिक
नौबत खान कलवन्त (जोधपुर के राजकुमार) का भित्तिचित्र चित्र, ब्रिटिश संग्रहालय लंदन
महाराजा अजीत सिंह के मारवाड़ का मरणोपरांत चित्र, 1762, ब्रुकलीन संग्रहालय से।
मारवाड़ के महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय,  1880, ब्रुकलीन संग्रहालय से।
आम्बेर के महाराजा जय सिंह और मारवाड़ के महाराजा गज सिंह - आम्बेर अल्बम से फोलियो, लगभग 1630 पेंटिंग

जोधपुर रियासत  मारवाड़ क्षेत्र में १२५० से १९४९ तक चली रियासत थी। इसकी राजधानी वर्ष १९५० से  जोधपुर नगर में रही।

लगभग 90,554 कि॰मी2 (34,963 वर्ग मील) क्षेत्रफल के साथ, जोधपुर रियासत राजपूताना की सबसे बड़ी रियासत थी। इसके अन्तिम शासक ने इसके भारत में विलय पर १ नवम्बर १९५६ को हस्ताक्षर किये।[1]

इतिहास[संपादित करें]

शासकों की भारतीय सामंती राज्य के जोधपुर के थे, एक प्राचीन राजवंश की स्थापना 8 वीं सदी में. हालांकि, इस राजवंश की किस्मत द्वारा किए गए थे , राव जोधा, पहले के शासकों के राठौड़ राजवंश में जोधपुर में 1459.

राज्य ने चन्द्रसेन राठौड़ की मृत्यु के पश्चात्, अकबर के राज्य के दौरान मुगल साम्राज्य की सहायता की। १७वीं सदी के उत्तरार्द्ध में औरंगजेब के साम्राज्य में सख्त नियंत्ररण के बावजूद, राठौड़ परिवार की इस क्षेत्र में अर्ध-स्वायत्तता जारी रही। १८३० के दशक तक राज्य पर कोई ब्रितानी प्रभाव नहीं था लेकिन इसके पश्चात् मान सिंह  के समय राज्य सहायक गठबंधन का हिस्सा बना और मारवाड़ (जोधपुर) के राजा देशी रियासत के रूप में शासन करते रहे। 12 सितम्बर सन् 1730 इस्वी को, जोधपुर के राजा अभय सिंह के आदेश पर भवन बनाने के लिए लकड़ी कटवाने के लिए कारीगरों को लेकर जंगल में गए राजपूत सैनिकों के द्वारा पेड़ों को बचाने के लिए आगे आए सभी 363 निर्दोष बिश्नोई पुरुष -महिलाओं और बच्चों को मौत के घाट उतार दिया गया था। उस दिन अमृता देवी बिश्नोई सहित चौरासी गांव के 363 बिश्नोई खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए इकट्ठा हुए थे। [69 महिलाएं और 294 पुरुष]खेजड़ी हरे वृक्षों को बचाने के लिए खेजड़ली में शहीद हुए थे।[2][3][4] 12 सितम्बर 1978 से खेजड़ली दिवस मनाया जा रहा हैं। खेजड़ली में विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला लगता है।

वर्ष १९४७ में भारत की आजादी के समय जोधपुर राज्य के अन्तिम शासक महाराजा हनवंत सिंह ने भारत में विलय के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने में देरी कर दी। यहाँ तक की वो अल्परूप से पाकिस्तान में विलय का संकेत दे चुके थे, चूँकि जोधपुर की सीमा पाकिस्तान से लगती है और मुहम्मद अली जिन्ना ने व्यक्तिगत रूप से उन्हें पाकिस्तान के बंदरगाह काम में लेने के लिए विश्वास दिलाया था। अन्ततः वो अपने राज्य का भारत अधिराज्य में विलय के लिए सहमत हो गये लेकिन अन्तिम समय के नाटकीय घटनाक्रम से पहले नहीं।[5][6]

जोधपुर के शासक[संपादित करें]

वर्ष 1459 से 1947 तक के शासक[संपादित करें]

नाम राज्य आरम्भ समाप्त
1 राव सिंहा (1237-1273) राव जोधा - जोधपुर के संस्थापक और राठौड़ गौत्र के १५वें मुखिया। 12 मई 1459 6 अप्रैल 1489
2 राव सातल - अफ़्ग़ान हमलावरों से १४० महिलाओं को बचाया 6 अप्रैल 1489 मार्च 1492
3 राव सुजा मार्च 1492 2 अक्टूबर 1515
4 राव बिरम सिंह – बघा के पुत्र 2 अक्टूबर 1515 8 नवम्बर 1515
5 राव गंगा - राणा सांगा के भारत के सुल्तान में सहयोग। 8 नवम्बर 1515 9 मई 1532
6 राव मालदेव – शेरशाह सूरी के आक्रमण को सफलतापूर्वक पीछे धकेला। फेरिश्ता ने हिन्दुस्तान का सबसे प्रभावशाली शासक कहा है। 9 मई 1532 7 नवम्बर 1562
7 राव चन्द्र सेन – मुग़लों को हराया 7 नवम्बर 1562 1565
8 राजा उदय सिंह मोटा राजा – मुगलों को हराया एक जागीरदार 'राजा' पुनः स्थापित किया। 4 अगस्त 1583 11 जुलाई 1595
9 सवाई राजा सुरजमल 11 जुलाई 1595 7 सितम्बर 1619
10 महाराजा गज सिंह प्रथम – अपने आप से 'महाराजा' उपनाम लेने वाले प्रथम 7 सितम्बर 1619 6 मई 1638
11 महाराजा जसवंत सिंह - धर्मातपुर के युद्ध में औरंगजेब से लड़े। औरंगजेब को हराया 6 मई 1638 28 नवम्बर 1678?
12 राजा राय सिंह – राजा अमर सिंह के पुत्र। 1659 1659
13 महाराजा अजीत सिंह - औरंगजेब के साथ २५ वर्षों के युद्ध के बाद मारवाड़ के महाराजा बने। दुर्गादास राठौड़ ने इस युद्ध में मुख्य भूमिका निभाई। 19 फ़रवरी 1679 24 जून 1724
14 राजा इन्द्र सिंह – औरंगजेब द्वारा महाराजा अजीत सिंह के विरुद्ध घोषित किया गया लेकिन मारवाड़ में लोकप्रिय नहीं हुआ। 9 जून 1679 4 अगस्त 1679
15 महाराजा अभय सिंह- सरबुलंद खान को हराकर छोटे समय के लिए पूरे गुजरात पर कब्जा किया। 24 जून 1724 18 जून 1749
16 महाराज राम सिंह – प्रथम राज्यकाल 18 जून 1749 जुलाई 1751
17 महाराजा बख्त सिंह- एक महान योद्धा और जनरल, उन्होंने सारबुलंद खान के सामने मारवाड़ी सेना का नेतृत्व किया और उसे हराया। गंगवाना के युद्ध में उन्होंने मुग़लों और कच्छवाहों की संयुक्त सेना को हराया। जुलाई 1751 21 सितम्बर 1752
18 महाराजा विजय सिंह – प्रथम राज्यकाल 21 सितम्बर 1752 31 जनवरी 1753
19 महाराजा राम सिंह – दूसरा राज्यकाल 31 जनवरी 1753 सितम्बर 1772
20 महाराजा विजय सिंह – दूसरा राज्यकाल - महादजी सिंधिया से हारकर अजमेर नगर और दुर्ग को अभ्यर्पण करने को मजबूर हुये। सितम्बर 1772 17 जुलाई 1793
21 महाराजा भीम सिंह 17 जुलाई 1793 19 अक्टूबर 1803
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महाराजा मान सिंह - ६ जनवरी १८१८ को ब्रिटेन के साथ संधि की। 19 अक्टूबर 1803 4 सितम्बर 1843
23 महाराजा सर तख्त सिंह – अहमदनगर के पूर्व शासक, अजीत सिंह का वंशज। 4 सितम्बर 1843 13 फ़रवरी 1873
24 महाराजा सर जसवंत सिंह द्वितीय  13 फ़रवरी 1873 11 अक्टूबर 1895
25 महाराजा सर सरदार सिंह – ब्रितानी भारतीय सेना में कर्नल 11 अक्टूबर 1895 20 मार्च 1911
26 महाराजा सर सुमैर सिंह – ब्रितानी भारतीय सेना में कर्नल 20 मार्च 1911 3 अक्टूबर 1918
27 महाराजा सर उमैद सिंह – ब्रितानी भारतीय सेना में लेफ्टिनेन्ट-जनरल 3 अक्टूबर 1918 9 जून 1947
28 महाराजा हनवंत सिंह – मारवाड़ के शासक (जोधपुर) 9 जून 1947 15 अगस्त 1947
29 महाराज गज सिंह द्वितीय - वर्तमान

ठिकाने[7][संपादित करें]

जोधपुर राज्य के रियासती ठिकाने रिया, बगडी, बडू, बोरावड़ , कुचामन जिलिया या अभयपुरा,पोकरण, रास,खेजङला थे। इन ठिकानों में राजस्व वसूली के लिए शासक यानी राजा अक्सर अपने भाई (राठोङ) शाखा के राजपूतों, गनायतो(चौहन , भाटी,तंवर, सांखला) को ठिकाने इनायत करता था। इसके अलावा राजपरिवार की महिलाओं को भी हाथ खरची के लिए ठिकाने इनायत किये जाते थे। प्रमुख पदाधिकारी जैसे मुसाहिब, किलेदार को भी ठिकाने इनायत किये जाते थे। मुसाहिब जगुजी सांखला को एवं उसके पुत्र शींभूदान को बिरामी गांव पट्टे दिया गया था। किलेदार श्री अनाङसिह पंवार को मेङता के पास मोकलपुर गांव जागीर में मिला था। ऐसे ही शोभावतो को डोढीदार के रूप में सेवा देने के लिए सांगरिया, कुङी गांव पट्टे दिया गया था। मुकुन्दास जी खीची को अजीत सिंह के पासवान बनकर तलवार संभालने की चाकरी के लिए गांगाणी गांव दिया गया था। उनके भाई को श्री हजूर के दफ्तर के दरोगा पद पर काम करने के कारण भादवा गांव की जागीर बखशीश हुई थी। इसी भांति पङदायत/पासवान/दासी/उपपत्नियो एवं उनकी संतानो को भी ठिकाने इनायत किये जाते थे। शासक की विजातीय पत्नी को पासवान/पङदायत कहा जाता था। इनसे उत्पन्न शासक की संतान को खवास पुत्र/चेला/गोटाबरदार/ढीकङिया/वाभा कहा जाता था । महाराजा श्री तख्त सिंह जी के शासनकाल में इनको राव राजा कहा जाता था। मानसिंह की पङदायत चंपराय को राणी गांव पट्टे दिया गया था। वाभा मोतीसिघ को खंडप,बीजवाङियो,चेराई,मोरनावङो गांव पट्टे दिया गया था। इसी तरह डूंगरजी, गुलाबजी,मोतीजी और नानक जी गोहिल की स्वामिभक्ति और सेवाओं से प्रसन्न होकर महाराजा श्री मानसिंह जी ने भाखरासणी और बम्भोर गाँव के पट्टे दिए। इस तरह सैकड़ों की संख्या में वाभाऔ/रावराजाऔ को गांव के पट्टे देकर उनको ठाकुर/जागीरदार बना दिया जाता था। इसी भांति नाई को भी आजीविका के लिए छोटे बङे गांव पट्टे दिये जाते थे। डांगियावास गांव नाईयो के पट्टे दिया गया था। एक ओर भी ठिकाना हैं उसका नाम वर्तमान मे गुढा जोधा कहते है इसका पुराना नाम किशोरपुरा था यह नाम ठिकानेदार किशोर सिहं के पर रखा गया था किशोर सिहं के पिता का नाम शक्ति सिहं था जो खरवा ठिकाने मे छोटे होने के वह ठिकाना अपने बड़े भाई के लिए छोड़ दिया ओर भैरुंदा के पास के इलाक अपना छोटासा ठिकाना बसाया था

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. William Barton, The princes of India.
  2. "बिश्नोई समाज". bbc.com. अभिगमन तिथि 5 अप्रैल 2018.
  3. "गांव-खेजड़ली जिला जोधपुर राजस्थान इंडिया में हरे खैजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए अमृता देवी बिश्नोई सहित 363 बिश्नोई लोगों ने अपने शीश कटवाकर खेजड़ी को काटने से बचाया आज भी बिश्नोई बाहुल्य क्षेत्रों में राज्य वृक्ष खेजड़ी नहीं काटी जाती हैं". Dainik Bhaskar. 2019-06-05. मूल से 13 सितंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-05-14.
  4. "चिपको आन्दोलन: गुमनाम नायकों की कहानियां". Amarujala. अभिगमन तिथि २६ दिसम्बर २०२१.
  5. How did Maharaja of Jodhpur get convinced to be part of Independent India instead of Pakistan?
  6. Ramachandra Guha, India after Gandhi: The History of the World's Largest Democracy.
  7. भाटी, नारायणसिंह (1993). महाराजा तख्त सिंह री ख्यात. जोधपुर: राजस्थान राज्य प्राच्य विधा प्रतिष्ठान जोधपुर.
  • जोधपुर, द्वारा प्रकाशित [एस.एल।], 1933.
  • महाराजा मानसिंह जोधपुर की और अपने समय (1803-1843 A. D.), द्वारा Padmaja शर्मा. द्वारा प्रकाशित शिव लाल Agarwala, 1972.
  • प्रशासन जोधपुर के राज्य, 1800-1947 A. D.द्वारा, निर्मला एम. उपाध्याय. अंतरराष्ट्रीय प्रकाशकों, 1973.
  • मारवाड़ के तहत जसवंत सिंह, (1658-1678): जोधपुर hukumat री bahiद्वारा, सतीश चन्द्र, रघुबीर सिंह, घनश्याम दत्त शर्मा. द्वारा प्रकाशित मीनाक्षी प्रकाशन, 1976.
  • जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर: रेगिस्तान राज्यों, द्वारा Kishore Singh, Karoki लुईस. चमक प्रेस लिमिटेड. 1992.
  • घर के मारवाड़ की कहानी: जोधपुरद्वारा, Dhananajaya सिंह. कमल का संग्रह, रोली बुक्स, 1994. ISBN 81-7436-002-681-7436-002-6.
  • आधुनिक भारतीय शासन: परंपरा, वैधता और शक्ति में जोधपुरद्वारा, Marzia Balzani. द्वारा प्रकाशित जेम्स कर्री लिमिटेड, 2003. ISBN 0-85255-931-30-85255-931-3.
  • जोधपुर और बाद में मुगलों, विज्ञापन 1707-1752, द्वारा आर एस सांगवान. द्वारा प्रकाशित प्रगति प्रकाशन, 2006.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]