जुम्मा की नमाज़

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जुमा की नमाज़ (Friday prayer , Arabic: صَلَاة ٱلْجُمُعَة‎, Ṣalāt al-Jumuʿah, Urdu: نماز جمعہ)
इस्लाम में जुमे की नमाज[1] आस्थावान मुस्लिम हर जुमे (शुक्रवार) को पढ़ते हैं। मुस्लिम दिन में 5 बार नमाज पढ़ते हैं लेकिन जुमे के दिन दोपहर की नमाज के बजाय जुमे की नमाज पढ़ते हैं।[2]

अर्थ[संपादित करें]

यह सबसे उच्च इस्लामी अनुष्ठानों में से एक है और इसकी पुष्टि अनिवार्य कृत्यों में से एक है।[3]

दायित्व[संपादित करें]

मुसलमानों के बीच शुक्रवार की प्रार्थना (सलात अल-जुमा) के वाजिब होने के बारे में आम सहमति है - कुरान की आयत के अनुसार, साथ ही शिया और सुन्नी स्रोतों द्वारा सुनाई गई कई परंपराओं के अनुसार। अधिकांश सुन्नी स्कूलों और कुछ शिया न्यायविदों के अनुसार, शुक्रवार की प्रार्थना एक धार्मिक दायित्व है,[4] लेकिन उनके मतभेद इस पर आधारित थे कि क्या इसका दायित्व शासक या उसके डिप्टी की उपस्थिति के लिए सशर्त है या यदि यह बिना शर्त वाजिब है . हनफ़ी और इमाम मानते हैं कि शासक या उसके डिप्टी की उपस्थिति आवश्यक है; जुमे की नमाज़ वाजिब नहीं है अगर उनमें से कोई भी मौजूद न हो। इमामियों के लिए शासक को न्यायप्रिय होना आवश्यक है ('आदिल'); अन्यथा उसकी उपस्थिति उसकी अनुपस्थिति के बराबर है। हनफियों के लिए उनकी उपस्थिति पर्याप्त है, भले ही वह न्यायी न हों। शफी, मलिकिस और हनबली शासक की उपस्थिति को कोई महत्व नहीं देते।[5]

समूह में कितने पढ़ सकते हैं?[संपादित करें]

जुमे की नमाज केवल समूह में पढ़ी जा सकती है सुन्नी मुसलमानों में नमाज पढ़ाने वाले के अलावा तीन नमाज पढ़ने वाले और शिया मुसलमानों की जुमें की नमाज में सात नमाज पढ़ने वाले होने चाहिए। अगर मजबूरी न हो तो अधिक संख्या को बेहतर समझा जाता है।

क़ुरआन में[संपादित करें]

कुरआन में जुमें की नमाज के लिए खरीदना बेचना अर्थात सांसारिक व्यस्तता को छोड़ देने को कहा गया है।
बुखारी की हदीस के अनुसार जुमे की नमाज के लिए इस दिन अधिक स्वच्छता का ख्याल रखना और खुत्बा(भाषण) का सुनना भी अनिवार्य है।
सूरए जुमुअह मदीना में नाजि़ल हुआ और इसकी ग्यारह (11) आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

जो चीज़ आसमानों में है और जो चीज़ ज़मीन में है (सब) ख़ुदा की तस्बीह करती हैं जो (हक़ीक़ी) बादशाह पाक ज़ात ग़ालिब हिकमत वाला है (1)

वही तो जिसने जाहिलों में उन्हीं में का एक रसूल (मोहम्मद) भेजा जो उनके सामने उसकी आयतें पढ़ते और उनको पाक करते और उनको किताब और अक़्ल की बातें सिखाते हैं अगरचे इसके पहले तो ये लोग सरीही गुमराही में (पड़े हुए) थे (2)

और उनमें से उन लोगों की तरफ़ (भेजा) जो अभी तक उनसे मुलहिक़ नहीं हुए और वह तो ग़ालिब हिकमत वाला है (3)

ख़ुदा का फज़ल है जिसको चाहता है अता फ़रमाता है और ख़ुदा तो बड़े फज़ल (व करम) का मालिक है (4)

जिन लोगों (के सरों) पर तौरेत लदवायी गयी है उन्होने उस (के बार) को न उठाया उनकी मिसाल गधे की सी है जिस पर बड़ी बड़ी किताबें लदी हों जिन लोगों ने ख़ुदा की आयतों को झुठलाया उनकी भी क्या बुरी मिसाल है और ख़ुदा ज़ालिम लोगों को मंजि़ल मकसूद तक नहीं पहुँचाया करता (5)

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ यहूदियों अगर तुम ये ख़्याल करते हो कि तुम ही ख़ुदा के दोस्त हो और लोग नहीं तो अगर तुम (अपने दावे में) सच्चे हो तो मौत की तमन्ना करो (6)

और ये लोग उन आमाल के सबब जो ये पहले कर चुके हैं कभी उसकी आरज़ू न करेंगे और ख़ुदा तो ज़ालिमों को जानता है (7)

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मौत जिससे तुम लोग भागते हो वह तो ज़रूर तुम्हारे सामने आएगी फिर तुम पोशीदा और ज़ाहिर के जानने वाले (ख़ुदा) की तरफ़ लौटा दिए जाओगे फिर जो कुछ भी तुम करते थे वह तुम्हें बता देगा (8)

ऐ ईमानदारों जब जुमा का दिन नमाज़ (जुमा) के लिए अज़ान दी जाए तो ख़ुदा की याद (नमाज़) की तरफ़ दौड़ पड़ो और (ख़रीद) व फरोख़्त छोड़ दो अगर तुम समझते हो तो यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है (9)

फिर जब नमाज़ हो चुके तो ज़मीन में (जहाँ चाहो) जाओ और ख़ुदा के फज़ल (अपनी रोज़ी) की तलाश करो और ख़ुदा को बहुत याद करते रहो ताकि तुम दिली मुरादें पाओ (10)

और (उनकी हालत तो ये है कि) जब ये लोग सौदा बिकता या तमाशा होता देखें तो उसकी तरफ़ टूट पड़े और तुमको खड़ा हुआ छोड़ दें (ऐ रसूल) तुम कह दो कि जो चीज़ ख़ुदा के यहाँ है वह तमाशे और सौदे से कहीं बेहतर है और ख़ुदा सबसे बेहतर रिज़्क़ देने वाला है (11)

सूरए जुमुअह ख़त्म

खुत्बा जुमा[संपादित करें]

इस भाषण में अल्लाह के गुणगान और मुहम्मद की बातों के साथ साथ अपने वर्तमान देश के संचालक के अच्छे कार्यों के जिक्र के साथ मुसलमानों को अच्छी बातों के उपदेश दिए जाते थे, अब पुराने छपे हुए पढ़े जाते हैं।
हदीस बुखारी के अनुसार जुमे की नमाज और ख़ुत्बे(भाषण) के दौरान एक समय दुआओं (प्रार्थना) के कबूल होने का भी होता है।

जुमा की नमाज़ की मशहूर बातें[संपादित करें]

मुस्लिम्स मैं मशहूर है की जुमे की नमाज से पिछले सप्ताह के गुनाह (पाप) माफ हो जाते हैं और एक जुमे की नमाज से 40 नमाज़ों के बराबर सवाब (पुनः) मिलता है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. नसीम, ग़ाज़ी. जुमा की नमाज़. पृ॰ 24. अभिगमन तिथि 2 नवंबर 2017.
  2. "हर शुक्रवार दोपहर 12 बजे मिलते हैं इंशाअल्लाह". मूल से पुरालेखित 27 सितंबर 2013. अभिगमन तिथि 20 मई 2022.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link)
  3. फहद सलेम, बहम्मम. The Muslim’s Prayer. आधुनिक गाइड.
  4. कामरान, हाशमी (2008). Religious Legal Traditions, International Human Rights Law and Muslim States. मार्टिनस निजॉफ पब्लिशर्स.
  5. मुहम्मद जवाद, मग्नियाही (1995). The Five Schools of Islamic Law Al-Hanafi, Al-Hanbali, Al-Ja'fari, Al-Maliki, Al-Shafi'i. अंसारियान.