जुंगर साम्राज्य
ज़़ुंगर ख़ानत Зүүнгарын хаант улс | |
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1634–1755 | |
राजधानी | इली |
प्रचलित भाषा(एँ) | ओइरात, मंगोलियाई, तुर्की भाषाएँ |
सरकार | ख़ानत (मंगोल-ओइरात राजतंत्र) |
• ख़ान | एरडेनी बातुर खूं-ताइजी (प्रथम शासक) |
इतिहास | |
• स्थापना | 1634 |
• चिंग वंश द्वारा विजय | 1755 |
अब जिस देश का हिस्सा है | ![]() ![]() ![]() ![]() |
ज़़ुंगर ख़ानत मध्य एशिया में 17वीं से 18वीं शताब्दी तक एक शक्तिशाली मंगोल-ओइरात साम्राज्य था। इसकी जड़ें ओइरात जनजातियों में थीं, जो 14वीं शताब्दी के बाद युआन वंश के पतन के दौरान पश्चिम की ओर बढ़ीं। 15वीं शताब्दी में, ओइरात नेता एसेन ख़ान ने खुद को मंगोलों का ख़ान घोषित किया, लेकिन डेयान ख़ान के नेतृत्व में खलखा मंगोलों ने उन्हें खदेड़ दिया।
16वीं और 17वीं शताब्दी में ओइरातों ने खुद को फिर से संगठित किया, और 1634 में एरडेनी बातुर खूं-ताइजी के नेतृत्व में ज़़ुंगर ख़ानत का गठन हुआ। इस ख़ानत का मुख्य केंद्र जंगारिया क्षेत्र था, जो आज के पश्चिमी मंगोलिया और उत्तर-पश्चिमी चीन (शिनजियांग) में स्थित था।
राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था
[संपादित करें]ज़़ुंगर ख़ानत में ओइरात और अन्य मंगोल जातियों के अलावा तुर्की और साइबेरियाई जातियाँ भी शामिल थीं। शासन प्रणाली खानाबदोश थी, लेकिन एक संगठित प्रशासनिक व्यवस्था थी। ख़ानत को 24 प्रशासनिक इकाइयों (ओतोग) में विभाजित किया गया था, जिनमें 54 अधिकारी कर वसूलते थे।[1]
धर्म और राजनीति का घनिष्ठ संबंध था। 17वीं शताब्दी तक, ज़़ुंगर ख़ानत ने गेलुगपा बौद्ध धर्म (तिब्बती बौद्ध धर्म) को अपनाया। ज़़ुंगर शासकों ने दलाई लामा का समर्थन किया और 1717 में ल्हासा पर कब्जा कर लिया, जिससे तिब्बती राजनीति में उनका प्रभाव बढ़ा।[2]
युद्ध और विस्तार
[संपादित करें]ज़़ुंगर ख़ानत ने अपने चरम पर मध्य एशिया के बड़े हिस्से को नियंत्रित किया। 1688 से 1696 के बीच गाल्दन बशुगतु ख़ान ने खलखा मंगोलों पर आक्रमण किया, जिससे वे चिंग साम्राज्य की शरण में चले गए। 1696 में कंग्शी सम्राट ने ज़़ुंगर सेना को हराया, और गाल्दन की मृत्यु हो गई।[2]
1723 में ज़़ुंगरों ने कज़ाखों को इतनी बुरी तरह पराजित किया कि यह घटना कज़ाख इतिहास में "अलाकोल आपदा" (नंगे पांव पलायन) के नाम से जानी जाती है।[3]
1688 से 1755 के बीच ज़़ुंगरों और चिंग साम्राज्य के बीच कई युद्ध हुए। 1755 में चिंग सम्राट कियानलोंग ने ज़़ुंगर ख़ानत पर हमला किया और इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया।[3]
अंतिम पतन और विनाश
[संपादित करें]1755 में चिंग सम्राट कियानलोंग ने एक सैन्य अभियान के माध्यम से ज़़ुंगर ख़ानत का अंत कर दिया। अमुर्साना और अन्य ज़़ुंगर नेताओं ने विद्रोह किया, लेकिन चिंग सेना ने इस विद्रोह को कुचल दिया। इसके बाद, चिंग साम्राज्य ने ज़़ुंगर लोगों के खिलाफ एक भयंकर दमन अभियान चलाया, जिसे इतिहास में "ज़़ुंगर नरसंहार" कहा जाता है। इस अभियान में 30% ज़़ुंगर मारे गए, 40% बीमारियों से मरे, 20% रूस भाग गए और 10% को चिंग सेना ने पकड़ लिया।[3]
निष्कर्ष
[संपादित करें]ज़़ुंगर ख़ानत मध्य एशिया का अंतिम खानाबदोश साम्राज्य था। यह अपनी सैन्य शक्ति, व्यापारिक नीतियों और बौद्ध धर्म के प्रति समर्पण के लिए जाना जाता है। लेकिन चिंग साम्राज्य के साथ निरंतर संघर्ष और आंतरिक कलह के कारण इसका पतन हो गया। आज ज़़ुंगर लोगों के वंशज चीन (शिनजियांग) और मंगोलिया में छोटे समूहों के रूप में बसे हुए हैं।[1]
संदर्भ
[संपादित करें]- ↑ अ आ "Dzungar | Mongolian Empire, Central Asia, Kalmyks | Britannica". www.britannica.com (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2025-01-25.
- ↑ अ आ Elverskog, Johan (2016), "Zünghar (Dzungar) Khanate", The Encyclopedia of Empire (अंग्रेज़ी में), John Wiley & Sons, Ltd, पपृ॰ 1–6, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-118-45507-4, डीओआइ:10.1002/9781118455074.wbeoe065, अभिगमन तिथि 2025-01-25
- ↑ अ आ इ "The Dzungars and the Torguts (Kalmuks) and the peoples of southern Siberia". unesdoc.unesco.org. अभिगमन तिथि 2025-01-25.