जीवाणु कोशिका संरचना

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जीवाणु की संरचना

जीवाणु, निज सारल्य के बावजूद, एक अच्छी तरह से विकसित कोशिका संरचना रखता है जो इसकी कुछ अनन्य जैविक संरचनाओं और रोगजनकता हेतु दायी है। कई संरचनात्मक विशेषताएँ जीवाणु हेतु अद्वितीय हैं और प्राच्य या सुकेन्द्रक में नहीं पाई जाती हैं। और बहत्तर जीवों के सापेक्ष जीवाण्वों की सारल्य से उन्हें प्रयोगात्मक रूप से हेरफेर करने के कारण, जीवाण्वों की कोशिका संरचना का अच्छी तरह से अध्ययन किया गया है, जिससे कई जैव रासायनिक सिद्धान्तों का ज्ञान होता है जो बाद में अन्य जीवों पर लागू होते हैं।

कोशिकावरण[संपादित करें]

आपको ध्यान से पढ़ना है भूपेंद्र सिंह अधिकांश जीवाणु कोशिकाओं में एक जटिल रासायनिक कोशिकावरण मिलता है। यह आवरण दार्ढ्यपूर्वक बंधकर तीन स्तरीय संरचना बनाते हैं जैसे बाह्यतम कोशिकाच्छद, जिसके पश्चात् क्रमश: कोशिका भित्ति एवं कोशिका झिल्ली होती है। यद्यपि आवरण के प्रत्येक स्तर का कार्य भिन्न हैं, किन्तु यह तीनों मिलकर एक सुरक्षा एकक बनाते हैं।

जीवाण्वों को उनकी कोशिकावरण में विभिन्नता व ग्राम अभिरंजन विधि के प्रति विभिन्न व्यवहार के कारण दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया हैं। जैसे जो ग्राम अधिरंजित होते हैं, उसे ग्राम धनात्मक एवं अन्य जो अभिरंजित नहीं हो पाते, उन्हें ग्राम ऋणात्मक कहते हैं।

कोशिकाच्छद विभिन्न जीवाण्वों में रचना एवं मोटाई में भिन्न होती हैं। कुछ में यह ढीली आच्छद होती है जिसे अवपंक स्तर कहते हैं व दूसरों में यह मोटी व कठोर आवरण के रूप में हो सकती है जो सम्पुटिका कहलाती है। कोशिका भित्ति कोशिकाकार को निर्धारित करती हैं। वह सशक्त संरचनात्मक भूमिका प्रदान करती हैं, जो जीवाणु को फटने तथा निपातित होने से बचाती है।

कोशिका झिल्ली प्रकृति में अर्धपारगम्य या वरणात्मक होती हैं और इसके द्वारा कोशिका बाह्य वातावरण से संपर्क बनाए रखने में सक्षम होती है। संरचनानुसार यह झिल्ली सुकेन्द्रकीय झिल्ली जैसी होती है। एक विशेष झिल्लीमय संरचना, जो कोशिका झिल्ली के कोशिका में विस्तार से बनती है, को मध्यकाय कहते हैं। यह विस्तार पुटिका, नलिका एवं पटलिका के रूप में होता है। यह कोशिका भित्ति निर्माण, डीएनए प्रतिकृति व इसके सन्तति कोशिका में वितरण को सहायता देता है या श्वसन, स्रावी प्रक्रिया, कोशिका झिल्ली के पृष्ठ क्षेत्र, प्रकिण्व मात्रा को बढ़ाने में भी सहायता करता है। कुछ प्राक्केन्द्रकी जैसे नील-हरित जीवाणु के कोशिका द्रव्य में झिल्लीमय विस्तार होता है जिसे वर्णकीय लवक कहते हैं। इसमें वर्णक पाए जाते हैं।

जीवाणु कोशिकाएँ चलायमान अथवा अचलायमान होती हैं। यदि वह चलायमान हैं तो उनमें कोशिका भित्ति जैसी पतली संरचना मिलती हैं। जिसे कशाभिका कहते हैं जीवाण्वों में कशाभिका की संख्या व विन्यास का क्रम भिन्न होता है। जीवाणु कशाभिका तीन भागों में बँटा होता है- तन्तु, अंकुश व आधारीय शरीर। तन्तु, कशाभिका का बृहत्तम भाग होता है और यह कोशिका सतह से बाहर की ओर विस्तृत होता है।

जीवाण्वों के सतह पर पाई जाने वाली संरचना रोम व झालर इनकी गति में सहायक नहीं होती हैं। रोम दीर्घ नलिकाकार संरचना होती है, जो विशेष प्रोटीन की बनी होती हैं। झालर लघुशूक जैसे तन्तु है जो कोशिका के बाहर प्रवर्धित होते हैं। कुछ जीवाण्वों में यह उनको जल धारा में पाई जाने वालो चट्टानों व पोषक ऊतकों से चिपकने में सहायता प्रदान करती हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]