जीवनानन्द दास
जीवानन्द दास | |
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जन्म | जीवानन्द दास 17 फ़रवरी 1899 बेकरगंज, बंगाल (अब बांग्लादेश का बरिसाल) |
मौत | 22 अक्टूबर 1954 कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत | (उम्र 55 वर्ष)
पेशा | कवि, लेखक, प्राध्यापक |
भाषा | बांग्ला |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
उच्च शिक्षा | ब्रजमोहन कालेज कोलकाता विश्वविद्यालय |
विधा | काव्य, उपन्यास, लघुकथाएँ, समालोचन |
आंदोलन | Bengali Modernism |
उल्लेखनीय कामs | Banalata Sen, Rupasi Bangla, Akashlina, Banalata Sen, Campe, Bodh |
खिताब | निखिल बंग रवीन्द्र साहित्य सम्मेलन पुरस्कार (1952) साहित्य अकादमी पुरस्कार (1955) |
जीवनसाथी | लाबन्यप्रभा दास (साँचा:Nee गुप्ता) |
बच्चे | 2 |
रिश्तेदार | कुसुमकुमारी दास (माता) |
हस्ताक्षर |
जीवनानन्द दास (१७ फ़रवरी १८९९- २२ अक्तुबर १९५४) बोरिशाल (बांग्लादेश) में जन्मे बांग्ला के सबसे जनप्रिय रवीन्द्रोत्तर कवि हैं। उन्हें १९५५ में मरणोपरान्त श्रेष्ठ कविता के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[1] १९२६ में उनका पहला कविता संग्रह प्रकाशित हुआ। झरा पालक, धूसर पांडुलिपि, बनलता सेन, महापृथिबी, रूपसी बांगला आदि उनकी बहुचर्चित कृतियाँ हैं।
रबीन्द्रनाथ के रुमानी कविता के प्रभाव को अस्वीकार कर उनहोनें अपना ही एक अलग काव्यभाषा का जन्म दिया जो पहले पाठक-समाज को गवारा नहीं था। परन्तु २०वीं सदी के शेष भाग से वह उभर कर आयें और पाठक के दिलोदिमाग को चा गये। पहले तो रबीन्द्रनाथ भी उनके काव्यभाषा के खिलाफ कटु आलोचना किये थे। उनके जीवनकाल में वह केवल २६९ कवितायें प्रकाश कर पाये थे जिसमें १६२ था उनके प्रकाशित संकलनों में। उनके मृत्यु के बाद उनके सारे अप्रकाशित कवितायें प्रकाश होने के पश्चात यह संख्या ८०० से भी ज्यादा हो चुका है। यंहा तक की उनके घर से १२ अप्रकाशित उपन्यास मिले जो अपने-आप में अभिनव था। इसके अलावे ३५ कहानियाँ भी मिलीं।
उनका पारिवारिक जीवन बहुत ही दुखद था। १९५४ में जब एकदिन वह कोलकाता के ट्राम से कुचले पाये गये तो लोगों का मानना था कि वह आत्महत्या कर लिये हैं।
कृतियाँ
[संपादित करें]काव्यग्रन्थ
- झरा पालोक (१९२७)
- धूसर पाण्दुलिपि (१९३६)
- वनलता सेन (१९४२)
- महापृथिबी (१९४४)
- सातटि तारार तिमिर (१९४८)
- श्रेष्ठो कविता (१९५४)
- रूपसी बांगल (१९५७)
- बेला अबेला कालबेला (१९६१)
- सुदर्शना (१९७३)
- आलो पृथिबी (१९८१)
- मानव बिहंगम (१९७९)
- अप्रकाशितो एकान्नो (१९९९)
- कवितासमग्र जीवनानंद। देबीप्रसाद बन्द्योपाध्याय सम्पादित (१९९३ एवम १९९९)
उपन्यास
- माल्यवान
- पूर्णीमा
- कल्याणी
- चारजोन
- बिभाव
- मृणाल
- निरूपमयात्रा
- कारुवासना
- जीवनप्रणाली
- विराज
- प्रेतिनीर
- सुतीर्थो
- बासमोतीर उपाख्यान
प्रबन्ध-निबन्ध-आलोचना
- प्रबन्धसमग्र जीवनानंद। फैजुल लतिफ सम्पादित।
- प्रकाशितो ओ अप्रकाशितो जीवनानंद। अबु हसन शहरियार सम्पादित
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ समकालीन भारतीय साहित्य (पत्रिका). नई दिल्ली: साहित्य अकादमी. जनवरी मार्च १९९२. पृ॰ १९३.
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(मदद)
- क्लिनटन बि सिलि रचित ए पोयट अपार्ट (१९९०)
- क्लिनटन बि सिलि रचित सेन्ट औफ सान (२००८)
- जो विनटर रचित नेकेड लोनलि हैन्ड (२००३)
- अम्बुज बसु रचित एकटि नक्षत्र आसे (१९६५)
- संजय भट्टाचार्या रचित कवि जीवननंद (१९७०)
- गोपालचन्द्र राय रचित जीवनानंद (१९७१)
- अबदुल मन्नान सैयद रचित शुद्धात्मा कवि (१९७२)
- बीरेन्द्र भट्टाचर्या रचित जीवननंद (१९७३)
- शास्वत बसु रचित कवि जीवननंद (१९७५)
- आसदुज्जमान रचित जीवनशिल्पी जीवनानंद (१९७६)
- बिजोनकान्ति सरकार रचित रूपोसी बांगलार कवि (१९७९)
- पूर्णेन्दु पत्री रचित रूपोसि बांगलार दुइ कवि (१९८०)
- अजित घोष रचित काचेर मानुष (१९८३)
- अमलेन्दु बसु रचित जीवनानंद (१९८४)
- सुचेता मित्र रचित आमि सेइ पुरोहित (१९८५)
- मलय रायचौधुरी रचित पोस्टमडर्न जीवनानंद (२०००)
- हिमवन्तो बन्द्योपाध्याय रचित आमार जीवनानंद (२००५)