जींद की रियासत
जिंद रियासत, ब्रितानी शासनकाल में भारत की एक रियासत थी। इसका क्षेत्रफल ३२६० वर्ग किलोमीटर था।
भारात के स्वतंत्र होने के बाद २० अगस्त १९४८ को इस राज्य को पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य में विलीन कर लिया गया। वर्तमान समय में जिन्द नगर और जिन्द जिला, हरियाणा के भाग हैं।
जींद का इतिहास[संपादित करें]
जींद, पटियाला और नाभा रियासत के राजा एक ही खानदान से रहे हैं। सरहिंद के मुगल सम्राट के खिलाफ विद्रोह के बाद चौधरी फूल के खानदान से गजपत सिंह ने 1768 में जींद रियासत को संभाला और वह पहले राजा बने। जींद रियासत की सीमाएं उस समय दादरी, जींद, सफीदों, करनाल और संगरूर तक फैली थीं। राजा गजपत सिंह की मौत 1789 में हुई। इसके बाद राजा भाग सिंह ने गद्दी संभाली और वे 1819 तक राजा रहे। 1819 में राजा फतेह सिंह ने राजकाज संभाल लिया। 1822 में उनकी मृत्यु के बाद संगत सिंह को राजा बनाया गया। राजा संगत सिंह के कोई औलाद नहीं थी। 1834 में उनकी मृत्यु के बाद शाही परिवार में सत्ता संघर्ष शुरू हो गया, जो तीन साल तक चला। इस दौरान राजा फतेह सिंह की पत्नी ने राजकाज संभाला। इसके बाद 1837 में स्वरूप सिंह राजगद्दी पर बैठे। वे 1884 तक राजा रहे। 1884 से 1887 तक राजा रघुबीर सिंह को सत्ता मिली। उनके बेटे बलबीर सिंह की मृत्यु कम उम्र में हो जाने के कारण राजा रघुबीर सिंह से सत्ता सीधे उनके पौत्र राजा रणबीर सिंह को गई।यह दौर जींद रियासत के इतिहास में बहुत ही बुरा साबित हुआ। जींद रियासत के राजाओं ने खुले तौर पर अंग्रेजों का साथ दिया और विद्रोह के दौरान जींद रियासत की सेनाएं अंग्रेजों की तरफ से लड़ीं। इसके इनाम के तौर पर झज्जर रियासत को तोड़ कर उसका हिस्सा दादरी जींद रियासत को दिया गया[1]
250 साल पुरानी जींद रियासत के गौरवशाली इतिहास को सहेजने का काम पंजाब सरकार ने उठाया है। इस रियासत में लगभग 850 दुर्लभ फोटो हैं, जिन्हें पंजाब के पर्यटन विभाग ने डिजिटलाइजेशन करवाकर रखा है। हालांकि, जींद से संबंधित कोई बड़ी निशानी आज नहीं बची है। यहां तक कि यहां का किला भी नष्ट हो चुका है। जींद रियासत पर 1763 में फुलकियां सिखों का राज कायम हुआ था। नाभा के साथ जंग के बाद संगरूर भी इस रियासत का हिस्सा बन गया तो 1827 में राज्य का हेडक्वार्टर जींद से संगरूर शिफ्ट कर दिया गया। उसके बाद से सियासत की गतिविधियों से लेकर विकास का केंद्र संगरूर ही रहा। संगरूर का उस समय सामरिक और व्यापारिक महत्व था।[2]
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ [[https://web.archive.org/web/20141014223945/http://www.sikh-history.com/sikhhist/gurus/nanak7.html Archived 14 अक्टूबर 2014 at the वेबैक मशीन. Sikh History and Jind]
- [मृत कड़ियाँ] Old history of Jind]
- ↑ Old history of Jind[मृत कड़ियाँ]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
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