जाफर इब्न अबी तालिब
जाफर इब्न अबी तालिब | |
---|---|
इस्लामी सुलेख जाफर इब्न अबी तालिब का नाम सुलेख में | |
व्यक्तिगत विशिष्ठियाँ | |
जन्म |
590 ईस्वी मक्का, अरब प्रायद्वीप (अब सऊदी अरब) |
निधन |
629 ईस्वी मुइता, जॉर्डन |
जीवनसाथी | Asma bint Umays[*] |
बच्चे | अब्दुल्ला इब्न जाफ़र, Muhammad ibn Ja'far[*], Awn ibn Ja'far[*] |
पिता | अबू तालिब इब्न अब्दुल मुत्तलिब |
माता | Fatimah bint Asad[*] |
जाफर इब्न अबी तालिब (अरबी: جعفر بن أبي طالب; 590–629 ईस्वी) इस्लाम के एक प्रमुख साथी और पैगंबर मुहम्मद के चचेरे भाई थे। उन्हें इस्लामी इतिहास में उनके अद्वितीय चरित्र और बलिदान के लिए याद किया जाता है। वे अली इब्न अबी तालिब के बड़े भाई थे और इस्लाम में प्रारंभिक परिवर्तितों में से एक थे।[1]
प्रारंभिक जीवन
[संपादित करें]जाफर का जन्म 590 ईस्वी में मक्का में हुआ था। वे अबी तालिब और फ़ातिमा बिंत असद के पुत्र थे। उनके पिता अबी तालिब पैगंबर मुहम्मद के चाचा थे। उनका पालन-पोषण एक धार्मिक और परोपकारी परिवार में हुआ।[2]
इस्लाम में योगदान
[संपादित करें]जाफर प्रारंभिक इस्लामी इतिहास के महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों में से एक हैं। उन्होंने हबशा (वर्तमान इथियोपिया) की ओर हिजरत में नेतृत्व किया, जहां उन्होंने ईसाई राजा नजाशी के समक्ष इस्लाम के संदेश को प्रस्तुत किया। उनकी वक्तृत्व कला और ज्ञान के कारण, नजाशी ने मुसलमानों को सुरक्षा प्रदान की।[3]
मुइता की लड़ाई और शहादत
[संपादित करें]629 ईस्वी में, जाफर ने मुइता की लड़ाई में भाग लिया। इस युद्ध में उन्हें इस्लामी सेना का एक प्रमुख कमांडर नियुक्त किया गया। उन्होंने बहादुरी से लड़ते हुए अपने जीवन का बलिदान दिया। इस्लामी परंपरा के अनुसार, जाफर को "अत्तय्यार" (जिसके पास पंख हैं) की उपाधि दी गई, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उनकी शहादत के बाद उन्हें स्वर्ग में पंख दिए गए।[4]
विरासत
[संपादित करें]जाफर इब्न अबी तालिब का जीवन इस्लामी मूल्यों, त्याग और निष्ठा का प्रतीक है। उन्हें मुस्लिम समुदाय में उच्च सम्मान प्राप्त है। उनका उदाहरण सभी मुसलमानों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।[5]