जयचन्द विद्यालंकार
जयचन्द विद्यालंकार (५ दिसंबर, १८९८ - )[1] भारत के महान इतिहासकार एवं लेखक थे। वे स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती, गौरीशंकर हीराचन्द ओझा और काशीप्रसाद जायसवाल के शिष्य थे। उन्होने ‘भारतीय इतिहास परिषद’ नामक संस्था खड़ी की थी। उनका उद्देश्य भारतीय दृष्टि से समस्त अध्ययन को आयोजित करना और भारत की सभी भाषाओं में ऊंचे साहित्य का विकास करना था। जयचन्द विद्यालंकार ही भगत सिंह के राजनीतिक गुरु थे।
जयचन्द्र विद्यालंकार भारत में इतिहास की ऐसी प्रतिभा माने जाते हैं कि लोगों ने इतिहास की उनकी मूल धारणाओं तक पहुँचने के लिये विधिवत हिन्दी का अध्ययन किया। उन्हें अपनी धारणाएं हिन्दी में ही सामने रखने की जिद थी।[2]
नेशनल कॉलेज में अध्यापन के दौरान ही जयचंद्रजी ने पंजाब प्रांत में हिंदी-नागरी के प्रचार-प्रसार का काम जोरों से किया। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन से जुड़े रहे। सम्मेलन द्वारा तीस के दशक में आयोजित की गई इतिहास परिषदों के वे कई बार सभापति रहे। आज़ादी के बाद सन 1950 में कोटा में हुई हिंदी साहित्य सम्मेलन के वार्षिक अधिवेशन के वे सभापति भी रहे।
परिचय
[संपादित करें]उनकी शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी, हरिद्वार में हुई। 'विद्यालंकार' की उपाधि प्राप्त करने के बाद वे कुछ समय तक गुरुकुल कांगड़ी में, गुजरात विद्यापीठ में तथा कौमी महाविद्यालय, लाहौर में अध्यापक रहे। इतिहास में शोध के प्रति आरम्भ से ही उनकी रूचि थी। १९३७ में उन्होने भारतीय इतिहास परिषद की स्थापना की जिसमें डॉ राजेन्द्र प्रसाद का भी सहयोग था। जयचन्द विदेशियों द्वारा लिखे गये भारतीय इतिहास की एकांगी दृष्टि को परिमार्जित करने के लिए कटिबद्ध थे। इसके लिए व्यापक शोध के आधार पर उन्होने प्राचीन भारत के इतिहास पर विशेष रूप से ग्रन्थों की रचना की। उनके ग्रन्थों में उनके ज्ञान, मौलिक विचारधारा एवं आलोचनात्मक दृष्टि के दर्शन होते हैं। उन्हें हिन्दी के तत्कालीन मंगलाप्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया था।[3]
उन्होने भारत छोड़ो आन्दोलन में भी सक्रिय रूप से भाग लिया और तीन वर्ष तक जेल में बन्द रहे।
कृतियाँ
[संपादित करें]- इतिहास ग्रन्थ
जयचन्द विद्यालंकार की प्रमुख ऐतिहासिक कृतियाँ हैं-
- भारतीय इतिहास का भौगोलिक आधार
- भारतभूमि और उसके निवासी
- भारतीय इतिहास की रूपरेखा
- इतिहास प्रवेश
- पुरुखों का चरित्र
- भारतीय इतिहास की मीमांसा
- भारतीय इतिहास का क ख ग
- भारतीय इतिहास का उन्मिलन
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "गत ५ दिसंबर १९६८ को मेरी आयुके ७० वर्ष पूर्ण हुए". मूल से 16 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जून 2016.
- ↑ गुजरा कहाँ कहां से (पृष्ट १४२) Archived 2016-08-20 at the वेबैक मशीन (गूगल पुस्तक ; लेखक- कन्हैयालाल नन्दन)
- ↑ "भारतीय चरित कोष, पृष्ट ३०७". मूल से 20 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जून 2016.
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- भारतीय इतिहास की रूपरेखा (गूगल पुस्तक ; जयचन्द विद्यालंकार)
- जयचन्द्र विद्यालंकार र नेपालसँग उनको संबन्ध (जयचन्द्र विद्यालंकार और नेपाल के साथ उनका सम्बन्ध)
- इतिहासकार और भगत सिंह के शिक्षक: जयचंद्र विद्यालंकार