जगत नारायण मुल्ला

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सरकारी वकील जगतनारायण 'मुल्ला'

पंडित जगत नारायण मुल्ला (जन्म- 14 दिसम्बर 1864 ई., कश्मीर; मृत्यु- 11 दिसम्बर 1938 ई.) अपने समय में उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध वकील और सरकारी अभियोजक थे। 'मुल्ला' उनका उपनाम था। वें 3 वर्ष तक लखनऊ विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे। पंडित जगत नारायण , पंडित मोती लाल नेहरू के भाई नन्द लाल नेहरू के समधी थे। नन्दलाल नेहरू के पुत्र किशन लाल नेहरू का विवाह जगत नारायण की पुत्री स्वराजवती मुल्ला से हुआ था। ref>Jagat Narain Mulla (1863 - 1938)

काकोरी कांड जिसमें भारत में सशस्त्र क्रांति करने के लिए पं राम प्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और 8 अन्य क्रांतिकारियों ने ट्रेन से जा रहे सरकारी खजाने को लखनऊ के पास काकोरी स्टेशन पर लूट कर उस से हथियार खरीदने की प्लानिंग की थी

उस काकोरी कांड में ब्रिटिश के तरफ से पब्लिक प्रॉसिक्यूटर मोतीलाल नेहरू थे

लेकिन मोतीलाल ने अपना नाम न देकर अपने फूफेरे भाई और अपने जूनियर पंडित जगत नारायण मुल्ला का नाम दिया था

पंडित जगत नारायण मुल्ला भी तथाकथित रूप से गिरफ्तार कश्मीरी ब्राह्मण थे और मोतीलाल नेहरू का रिश्तेदार थे और इलाहाबाद में मोतीलाल नेहरू का जूनियर वकील था उनके ही ऑफिस में काम करते थे

और मोतीलाल नेहरू तथा जगत नारायण मुल्ला ने पूरी ताकत लगा दिया कि राम प्रसाद बिस्मिल रोशन सिंह राजेंद्र लाहिड़ी और अशफाक उल्ला खान को फांसी पर लटका दिया जाए और वही हुआ

जगत नारायण मुल्ला की धारदार दलीलों से अदालत में उन्होंने साबित कर दिया कि उन्होंने भारत के ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशस्त्र क्रांति किया सरकारी खजाना लूटने की कोशिश किया और अंग्रेजों ने मोतीलाल नेहरू और उनके जूनियर पंडित जगत नारायण मुल्ला की मदद से ही सभी क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया

बाद में पंडित जगत नारायण मुल्ला कांग्रेस से भी जुड़े और उनके बेटे आनंद नारायण मुल्ला को आजादी के बाद कांग्रेस ने लोकसभा का टिकट देकर 10 सालों तक संसद भेजा उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट में जज ही बनाया उसके बाद उनको राज्यसभा भी भेजा

परिचय[संपादित करें]

जगत नारायण मुल्ला के पिता पंडित काली सहाय मुल्ला उत्तर प्रदेश में सरकारी सेवा में थे। इसीलिए जगत नारायण की शिक्षा उत्तर प्रदेश में ही हुई। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से क़ानून की परीक्षा उत्तीर्ण की और लखनऊ में वकालत करने लगे। शीघ्र ही उनकी गणना प्रसिद्ध वकीलों में होने लगी। अपने समय के प्रमुख व्यक्तियों, जैसे-पंडित मोतीलाल नेहरू, बाबू गंगा प्रसाद वर्मा, सी. वाई. चिन्तामणि, बिशन नारायण दर आदि से उनके घनिष्ठ सम्बन्ध थे।

1916 ई. की लखनऊ कांग्रेस की स्वागत-समिति के अध्यक्ष वही थे। लगभग 15 वर्षों तक लखनऊ नगरपालिका के अध्यक्ष रहे। मांटेग्यू चेम्सफ़ोर्ड सुधारों के बाद उत्तर प्रदेश कौंसिल के सदस्य निर्वाचित हुए और प्रदेश के स्वायत्त शासन विभाग के मंत्री बने। जगत नारायण मुल्ला 3 वर्ष तक वे लखनऊ विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे। हंटर कमेटी के सदस्य

जब भारत में जलियांवाला बाग़ के हत्याकाण्ड सहित दमन का नया दौर शुरू हो गया था और इन घटनाओं की जाँच के लिए सरकार ने जो ‘हंटर कमेटी’ गठित की थी, उसके तीन भारतीय सदस्यों में एक जगत नारायण मुल्ला भी थे। इन तीनों ने कमेटी की रिपोर्ट में अपनी असहमति दर्ज की थी।

निधन[संपादित करें]

जीवन के अन्तिम वर्षों में जगत नारायण मुल्ला अस्वस्थ रहने लगे थे। इलाज के लिए स्विट्ज़रलैण्ड तक गए। बाद में 11 दिसम्बर 1938 को उनका देहान्त हो गया।

सन्दर्भ[संपादित करें]