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चैत सिंह

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राजा चेत सिंह सन 1770 से अगस्त 1781 तक काशी राज्य के नरेश रहे। सन् 1770 ई. में महाराज बलवन्त सिंह की मृत्यु के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र भूमिहार ब्राह्मण चेत सिंह काशी-राज की गद्दी पर आसीन हुए और मात्र १० वर्षों तक ही के शासनकाल में अपनी शूरवीरता और पराक्रम से प्रथम ब्रिटिश गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स को काशी पर आक्रमण करने के परिणाम स्वरुप समस्त काशीवासियों के विरोध के कारण, भयभीत होकर काशी से भाग जाने पर मजबूर कर दिया, इस घटना को बनारस विद्रोह कहा जाता है, जिसके पलायन की हड़बड़ी और घबराहट से सम्बन्धित एक कहावत आज भी प्रचलित है-

घोड़ा पर हौदा और हाथी पर जीन,
चुपके से भागा, वारेन हेस्टिंग।

ग्वालियर में निवास

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16 अगस्त सन् 1781 ईस्वी के दिन शिवालय घाट के युद्ध में काशी नरेश महाराजा चेत सिंह ने ब्रिटिश गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स को पराजित करके बनारस से भगा दिया था। हेस्नटिंग्स अपनी जान बचाकर चुनार भाग निकला। लेकिन वहां से अंग्रेजी फौज की मदद लेकर उसने 28 अगस्त सन् 1781 ईस्वी राजा चेत सिंह पर दोबारा हमला किया। काशी नरेश राजा चेत सिंह ने उसका मुकाबला किया लेकिन अंग्रेजी फौज के पास संंख्या बल ज्यादा होने एवं युद्ध में हुए भारी नुक्सान और शस्त्र संसाधनों की कमी के कारण महाराजा चेत सिंह को काशी छोड़कर पलायन करके ग्वालियर जाना पड़ा। काशी नरेश महाराजा चेत सिंह बनारस छोड़कर नहीं जाना चाहते थे लेकिन उनके सैन्य कमांडरों ने उन्हें बनारस से सुरक्षित ग्वालियर पहुंचा दिया। काशी राज्य के सैन्य कमांडरों को एक उम्मीद थी कि यदि काशी नरेश सुरक्षित रहेंगे तो भविष्य में बनारस राज्य को अंग्रेजों के चंगुल से पुनः स्वतंत्र कराया जा सकता है। लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया, ग्वालियर में रहते हुए काशी नरेश महाराजा चेत सिंह ने मराठों के सहयोग से बनारस को पुनः स्वतंत्र कराने का हरसंभव प्रयास किया लेकिन उस दौर में मराठे भी कमजोर हो चुकें थे। अंग्रेजों ने धीरे धीरे समस्त उत्तर भारत पर कब्ज़ा कर लिया और बनारस को स्वतंत्र कराने का काशी नरेश महाराजा चेत सिंह का सपना अधूरा ही रह गया। काशी नरेश रामनगर के किले को छोड़कर इलाहाबाद (प्रयागराज), रीवा होते हुए ग्वालियर पहुंचे, जहां महाद जी सिंधिया ने उन्हें शरण दी। लेकिन काशी नरेश महाराजा चेत सिंह आजीवन कभी बनारस नहीं लौट पाए। अपने राज्य से निष्कासित होकर ग्वालियर में रहते हुए 29 मार्च सन् 1810 ईस्वी में उनकी मृत्यु हो गई।

काशी नरेश राजा चेत सिंह के राजकार्य

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महाराजा चेत सिंह की वीरता के ऐतिहासिक पक्ष के साथ उनकी धार्मिक निष्ठा, साहित्य प्रेम एवं सांगीतिक अनुशीलन की भव्यता का अवलोकन कराने वाली आपके दरबारी कवि श्री बलभद्र की नाना छन्दों में रची ११६६ पद्यों की उद्भुत रचना 'चेतसिंह-विलास' में प्राप्त होती है, जिसमें कवि ने राजा मनसाराम, बलवन्त सिंह, एवं चेत सिंह का जीवन-परिचय काव्य रूप में दिया है। साथ ही दरबार के अन्य सुप्रसिद्ध कवियों एवं विद्वानों का नामोल्लेख किया है। ज्योतिषी रंगनाथ, पुरोहित, देवभद्र, कवि रघुनाथ और उनके यशस्वी पुत्र कवि गोकुलनाथ एवं महाराज चेत सिंह के साहित्य-गुरु भोलानाथ मिश्र जिन्होंने महाराज का न केवल राज्याभिषेक कराया था, अपितु उन्हें शिक्षित और विनीत भी बनाया था, आदि विद्वानों का विशेष रूप से उल्लेख किया है। राजगद्दी पर बैठने के कुछ दिनों उपरान्त उन्होंने काशी की पंचकोशी की यात्रा की, अपने पैतृक ग्राम गंगापुर गए, जहाँ के सुन्दर जलाशय का वर्णन कवि बलभद्र रचित 'चेतसिंह-विलास' में मिलता है। महाराज चेत सिंह के शासन-काल में दुलारी, कंजन, किशोरी, रुक्मणी, छित्तन बाई ने नृत्य-संगीत से दरबार जीवन्त था।[उद्धरण चाहिए]

उत्तराधिकारी

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इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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