चुटु राजवंश

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चुटु नरेश मूलानन्द द्वारा गढ़ा गया सीसे का सिक्का (१४.३० ग्राम वज़न, २७ मिलिमीटर व्यास)
आगे: चाप वाला स्तूप या टीला, चरणों में नदी
पीछे: जाली से घिरा पेड़, दाईं तरफ़ त्रिरत्न
चुटु आरम्भ में सातवाहन राजवंश के एक पश्चिमी क्षेत्र के सामंत हुआ करते थे (सातवाहन साम्राज्य का नक़्शा)

चुटु वंश के शासकों ने दक्षिण भारत के कुछ भागों पर ईसा पूर्व पहली शताब्दी से लेकर तीसरी शताब्दी (ईसा पश्चात) तक शासन किया। उनकी राजधानी वर्तमान कर्नाटक के उत्तर कन्नड जिले के बनवासी में थी। अशोक के शिलालेखों को छोड़ दें तो चुटु शासकों के शिलालेख ही कर्नाटक से प्राप्त सबसे प्राचीन शिलालेख हैं।[1]

विवरण[संपादित करें]

चुटु सातवाहन साम्राज्य के छिन्न भिन्न हो जाने के पश्चात् जो राज्य बने उनमें चुटु उस समय सबसे अधिक शक्तिशाली थे। इनका राज्य कुंतल (दक्षिणी पठार के दक्षिण-पश्चिम) में था। इनका संबंध सातवाहनों के सामंत (महाभोजों) से था। कुछ विद्वान् इनकी उत्पत्ति पर मौन हैं और कुछ चुटुकुल को सातवाहन कुल की शाखा बतलाते हैं। किंतु इन मतों के लिये सुनिश्चित प्रमाण का अभाव है। प्रारंभ में ये सातवाहनों के सामंत के रूप में शासन करते रहे होंगे।[2]

चुटुकुलानन्द ने, जिसके सिक्के कारवार में उपलब्ध हुए हैं, यज्ञसातकर्णि के बाद सातवाहनों की शक्ति के ह्रास का लाभ उठाकर कुंतल में अपना राज्य स्थापित किया। इस वंश के हारीतिपुत्र विष्णुकड चुटुकुलानंद साकर्णि का वनवासि का अभिलेख तीसरी शताब्दी के पूर्वार्ध का है। कुछ विद्वान् कन्हेरी के एक अभिलेख में आए नामों के समीकरण के आधार पर, जो सर्वमान्य नहीं है, चुटु लोगों का अधिकार उत्तर में अपरांत तक मानते हैं। इसी प्रकार अनंतपुर और चुद्दपह से प्राप्त हारीति नाम के सिक्कों के आधार पर कुछ विद्वान् चुटु लोगों का अधिकार पूर्व की ओर फैला हुआ बतलाते हैं। चौथी शताब्दी के पूर्वार्ध में मलवल्लि के अभिलेख से इस वंश के श्विस्कंदवर्मन् और उनके पूर्ववर्ती (संभवत: पिता) विष्णुकंड्डचुटुसातकर्णि का नाम मिलता है। इस समय ये संभवत: पल्लवों के सामंत बन गए थे। चौथी शताब्दी के मध्य में कदंब नरेश मयूरशर्मन् ने कुंतल पर अधिकार कर चुटुवंश का अंत किया।[3]

शासनव्यवस्था[संपादित करें]

चुटुकुल के राज्य में शासनव्यवस्था सातवाहनों की व्यवस्था से अभिन्न थी। करों के नाम वही हैं। इस वंश के नरेशों की उपाधि 'राजन्' थी। राज्य 'आहारों' में विभक्त था। 'हारीतिपुत्र' नाम सातवाहनों के काल के सदृश ही मातृपरक सामाजिक व्यवस्था का परिचायक है।

सिक्के[संपादित करें]

चुटु सिक्के अधिकतर मूलानन्द के काल में ढाले गए थे और सीसे के बने होते थे।[4] इनपर बौद्ध धर्म से सम्बन्धित चिह्न मिलते हैं, जैसे कि स्तूप, त्रिरत्न, इत्यादि।

प्रमुख शासक[संपादित करें]

  • चुटुकुलानन्द (30 ईसापूर्व–70 ई.)
  • मूलानन्द (78–175 ई)
  • शिवालनन्द (175–280 ई)

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. The Kadamba Kula: A History of Ancient and Mediaeval Karnataka Archived 2017-01-06 at the वेबैक मशीन, George Mark Moraes, pp. 4, Asian Educational Services, 1931, ISBN 9788120605954, ... After the fall of this dynasty, the Chutu family became the masters of Kuntala. They often styled themselves the Satavahanas, and possibly claimed some relationship with them. The inscriptions of the Chutu dynasty are, next to the edicts of Asoka, the oldest documents found in the north of Mysore ...
  2. Pallava Rock Architecture And Sculpture, Elisabeth Beck, Sri Aurobindo Institute of Research in Social Sciences, 2006, ISBN 9788188661466, ... The Chutus, also feudatories of the Satavahanas, succeeded them in the western part of their empire ...
  3. Journal of the Andhra Historical Society, Volumes 8-9, Andhra Historical Research Society, Rajahmundry, Madras, Andhra Historical Research Society, 1933, ... chutukulananda Satakanni falls very close to 200 AC. He was the Chutu king from whom Mayurasarma conquered the Banavasi country, and he was thus perhaps the last king of that dynasty, at any rate the last Chutu king that ruled from Banavasi ...
  4. Delhi iron pillar: new insights, R. Balasubramaniam, Indian Institute of Advanced Study, 2002, ... Moreover, the Chutus of Banwasi (who were also contemporaries of the Guptas and ruling in the Deccan) minted fine lead coins ...