चीन में पश्चिम-विरोधी भावना

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चीन में पश्चिम-विरोधी भावना १९९० के दशक के आरम्भ से बढ़ रही है और वह भी विशेषकर चीनी युवाओं में[1]। कुछ प्रमुख घटनाएँ जिनसे चीन में पश्चिम-विरोधी भावनाएँ बढ़ी है वे हैं: १९९९ में बॅलग्रेड में नाटो द्वारा चीनी दूतावास पर की गई बमबारी[2], २००८ बीजिंग ओलम्पिक मशाल रिले के दौरान पश्चिमी देशों में तिब्बत की स्वतन्त्रता को लेकर हुए प्रदर्शन[3], पश्चिमी मिडिया का अभिकथित पक्षपात[4], विशेषकर मार्च २००८ के तिब्बत दंगो के दौरान।

हालांकि उपलब्ध जनमत सर्वेक्षणों में चीनी लोगों का दृष्टिकोण संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रति आमतौर पर सकारात्मक है[5], लेकिन फिर भी पश्चिम की चीन के प्रति दुर्भावनाओं पर सन्देह बना हुआ है[5], जिसका प्रमुख कारण इतिहास है और विशेषकर "अपमान की सदी"[6] कुछ लोगों का आरोप है कि यह सन्देह साम्यवादी दल के "देशभक्ति शिक्षा अभियान" के द्वारा बढ़ाया गया है[7]

पृष्ठभूमि[संपादित करें]

किंग राजवंश[संपादित करें]

पश्चिम-विरोधी भावना ने अफ़ीम युद्ध और बॉक्सर विद्रोह के रूप में मूर्त रूप लिया जब न्यायसंगत सद्भाव समाज ने पश्चिमी लोगों, ईसाई मिशनरियों और चीन में धर्मान्तरित किए जा चुके चीनी ईसाईयों पर आक्रमण किया। किंग राजवंश पश्चिम-विरोधियों के बीच विभाजित था, नरमपन्थी और सुधारवादी। एक मांचू राजकुमार, ज़ैई और एक चीनी जनरल दोंग फ़ौज़ियांग ने १०,००० मुसलमान कान्सू बहादुरों के साथ विदेशियों (पश्चिमियों) पर आक्रमण किया और उन्हें लांगफ़ांग की लड़ाई में विद्रोह के दौरान परास्त किया।

मुसलमान[संपादित करें]

उच्च पदों पर बैठे चीनी मुसलमान अधिकारियों की पश्चिम के लोगों के लिए घृणा अन्य अमुसलमान चीनियों के समान ही इस कारण से थी कि वे किस प्रकार चीनी मामलों को सम्भालते है, नाकी किसी धार्मिक कारण से। संवर्धन और धन वे अन्य प्रयोजन थे जो चीनी मुसलमान सैन्य अधिकारियों के बीच विदेशियों के प्रति घृणा का कारण था[8]

कुओमिन्तांग पश्चिम-विरोधी[संपादित करें]

कुओमिन्तांग दल के बहुत से सदस्य पश्चिम-विरोधी थे।

कुओमिन्तांग के मुसलमान जनरल बाइ चौंग्ज़ी ने गुआंज़ी में पश्चिम-विरोधी लहर का नेतृत्व किया, अमेरिकियों, यूरोपीय लोगों और अन्य विदेशियों और चीन में चीनी लोगों का धर्मान्तरण करने आए ईसाई मिशनरियों पर आक्रमण किया और कुलमिलाकर उस प्रान्त को विदेशियों के लिए असुरक्षित बना दिया। इन हमलों के बाद पश्चिमी लोगों ने प्रान्त छोड़ दिया और धर्मानतरित किए जा चुके कुछ चीनी ईसाईयों पर भी विदेशी एजण्ट होने के कारण हमले किए गए। जनरल बाइ के आन्दोलन के तीन लक्ष्य थे विदेशीवाद-विरोध, उपनिवेशवाद-विरोध और (ईसाई) धर्म-विरोध।


सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Anti-western sentiment flourishes in China". ABC. 24-04-2008. मूल से 27 जुलाई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 08-06-2009. |accessdate=, |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  2. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  3. "Protests against 'Tibet independence' erupt in cities". China Daily. 19-04-2008. मूल से 20 अक्तूबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23-05-2009. |accessdate=, |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  4. "Looking past Western media bias against China". China Daily. 28-02-2008. मूल से 3 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 07-06-2009. |accessdate=, |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  5. "Hope and Fear: Full report of C-100's Survey on American and Chinese Attitudes Toward Each Other" (PDF). Committee of 100 with assistance from Zogby International and Horizon Research Consultancy Group. 2008. मूल (PDF) से 9 नवंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8-06-2009. |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  6. Peter Ford (17/04/2008). "Chinese vent anti-Western fury online". The Christian Science Monitor. मूल से 12 फ़रवरी 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 08/06/2009. |accessdate=, |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  7. Zhao, Suisheng: "A State-led Nationalism: The Patriotic Education Campaign in Post- Tiananmen China", Communist and Post-Communist Studies, Vol. 31, No. 3. 1998. pp. 287-302
  8. James Hastings, John Alexander Selbie, Louis Herbert Gray (1916). Encyclopædia of religion and ethics, Volume 8. EDINBURGH: T. & T. Clark. पृ॰ 893. मूल से 27 अप्रैल 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28-11-2010. |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)(Original from Harvard University)