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चित्रशाला

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National Gallery of Art
चित्रशाला में प्रदर्शित कलाकृतियाँ

चित्रशाला उस विशेष भवन को कहते हैं जिसमें विभिन्न कलाकृतियाँ (चित्र तथा मूर्तियाँ आदि) संरक्षित तथा प्रदर्शित की जाती हैं। प्राय: कलासंग्रहालय (अंग्रेजी: म्यूजियम) का प्रयोग चित्रशाला के लिये होता रहा है किंतु इसके लिये चित्र संग्रहालय अथवा चित्रशाला (आर्ट म्यूजियम या आर्ट गैलरी) अधिक उपयुक्त शब्द है और यही अधिक प्रचलित है।

परिचय एवं इतिहास

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चित्रशालाएँ दो प्रकार की हो सकती हैं- सार्वजनिक और व्यक्तिगत। चित्रशाला प्राय: कलाकारों की अपनी कृतियों का प्रदर्शनकक्ष होता है। आधुनिक काल के पूर्व राजमहलों में भी चित्रशालाएँ होती थीं। मंदिर तथा गिरजाघरों में भी धार्मिक चित्र तथा मूर्तियाँ प्रदर्शित की जाती थीं। अजंता, ऐलोरा, बाघ, सीग्रिया इत्यादि तथा मिस्र, चीन, लंका और यूरोप में तमाम धार्मिक भवन तथा गिरजाघर धार्मिक चित्रशालाएँ हैं। प्राचीन काल में प्रसिद्ध कलाकार मंदिर, गिरजाघर, धार्मिक भवन की दीवारों तथा छतों पर चित्र बनाया करते थे। भारत में अजंता ऐसी ही एक अति प्राचीन चित्रशाला है। मध्ययुगीन भारतीय मंदिरों की दीवारों पर पौराणिक या धार्मिक चित्रावलियाँ पाई जाती हैं। उस समय के राजप्रासादों के दीवारों पर बने चित्र देखे जा सकते हैं। आज भी मंदिरों की दीवारों पर चित्रांकन किया जाता है और चित्र लगाए जाते हैं। वर्तमाल काल में धनी मानी व्यक्तियों और सुरुचिसंपन्न नागरिकों द्वारा प्रसिद्ध कलाकारों के चित्र संग्रहीत किए जाते हैं।

कला संग्रहालय अधिकांशत: ऐसे हैं जिनमें चित्रशालाएँ भी होती हैं पर ऐसे भी हैं जिनमें चित्र नहीं भी हो सकते। यह मात्र ऐतिहासिक महत्त्व की, दुर्लभ और विलक्षण वस्तुओं का पुरातत्व संग्रहालय भी हो सकता है। अब तो विज्ञान, इतिहास, भूगोल, यहाँ तक कि साहित्य आदि विषयों के भी संग्रहालय बनने लगे हैं जिनमें तत्संबंधी विषयों को ऐतिहासिक ज्ञानवर्धक, विचित्र, विरल और उपयोगी वस्तुओं का संग्रह होता है। पहले यूरोप तथा अन्य पाश्चात्य देशों के अधिकतर संग्रहालयों में चित्रशालाएँ भी होती थीं। आज भी संसार भर में अधिकतर चित्रशालाओं में सग्रहालयों के भाग हैं। किंतु स्वतंत्र चित्रशालाएँ तथा चित्र कलावीथियाँ (आर्ट गैलरीज) भी निर्मित हो गई हैं। कलासंग्रहालयों में प्रदर्शित सामग्रियाँ क्रोत या प्रदात्त होती हैं। ये कलासंग्राहकों तथा कला मर्मज्ञों द्वारा प्राप्त होती रही हैं। अध्ययन एवं सुरक्षा के निमित्त ऐसी वस्तुओं के संग्रह तथा प्रदर्शन की प्रवृत्ति सार्वभौम है।

अंग्रेजी का म्यूजियम शब्द, जिसके हिंदी पर्याय संग्रहालय, कलासंग्रहालय, कलाकक्ष आदि हैं, म्यूजेज से बना है। म्यूज का अर्थ होता है गोत या कलाओं को अधिष्ठात्री देवी। ग्रीक भाषा में "म्यूजिअन" उस स्मारक को कहते थे जो ग्रीक पुराणों की म्यूजेज (देवियों) को अर्पित होता था। तीसरी शताब्दी ईसा के पूर्व सिंकदरिया और मिस्र में तोलेमी राजाओं के राजमहलों के ए भाग को, जिसें सिकंदर महान के ग्रंथागार की सामग्रियाँ रखी जाती थीं, "म्यूजियन" कहा जाता था। उसे विद्याभवन भी कहते थे1 यद्यपि उस समय कला सामग्रियों के संग्रह को म्यूजियम नहीं कहते थे तथापि उसका तात्पर्य संग्रहालय होता था और उसे ज्ञानार्जन का साधन समझा जाता था। उसी प्रकार मध्यकालीन गिरजाघरों के संग्रहालयों को आध्यात्मिक तथा कलात्मक प्रेरणा का स्रोत समझा जाता था। गिरजाघरों की दीवारों, खिड़कियों तथा छतों पर भी धार्मिक कथाओं का चित्रांकन तथा अलंकरण होता था और उससे जनसाधारण को शिक्षा मिलती थी। वेनिस में सेंट मार्क, हेल का गिरजाघर, जर्मनी तथा पेरिस को, लूव्र में अपोलो की वीथी (गैलरी) उसी ढंग के कलासंग्रहालय हैं।

16 वीं शताब्दी में इटली में "म्यूजियन" शब्द के स्थान पर "म्यूजियों" का प्रयोग हुआ। पुनर्जागरणकालीन इटली के राजकुमारों तथा शाही परिवार के समृद्ध लोगों में कलात्मक सामग्रियों के संग्रह तथा प्रदर्शन की भावना उत्पन्न हुई और उन्होंने उन्हें कलाकक्षों में सजाना आरंभ किया। इनमें फ्लोरेंस का मदोसी राजघराना, मांटुआ का गोंजागा परिवार, फरेरा राजघराना, उर्बीनो का मोंटेफेल्ट्रो तथा गूबियो राजघराने इस प्रकार के कलात्मक संग्रहालय के संरक्षण के लिये प्रसिद्ध हैं और यहीं से म्यूज़ियम का महत्त्व आरंभ हो जाता है। बाद में विद्वानों में भी चित्र तथा कलात्मक सामग्रियों के चयन, संकलन और संग्रह का चाव बढ़ा।

पुनर्जागरणकालीन इतालवी "म्यूज़िओ" में अधिकतर आयु की बनी कलात्मक वस्तुएँ, जैस मेडल, ताम्रपट्टिकाएँ, महान, लोगों के उत्कीर्ण व्यक्तिचित्र अथवा वस्तुचित्र ही होते थे1 इनमें बड़े बड़े धार्मिक कथाचित्रों के रखने के लिये पर्याप्त स्थान नहीं होता था। इन्हें लंबी लंबी दीर्घाओं (गैलरीज़) में रखना पड़ता था। 16वीं शताब्दी तक ऐसे चित्रों के लिये विशेष रूप से राजमहलों में कलावीथियाँ (आर्टगैलरीज) बनवाने की प्रथा चल पड़ी और तभी से चित्रशाला सा ""आर्टगैलरी"" का रूप स्पष्ट होने लगा। सेबास्चिआनो सेर्लिओ पहला व्यक्ति था जिसने 16वीं शताब्दी में ऐसी विशेष दीर्घाओं के महत्त्व पर जोर दिया। सन् 1581 में बर्नाडो बोंटालेंटी ने ऐसी ही एक सुनियोजित वीथी फ्लोरेंस में यूफिजो राजमहल की ऊपरी मंजिल में बनवाई थी जो आज भी विख्यात है। बाद में योरोप के अन्य तमाम राजघरानों में इस प्रकार को चित्रशाला बनवाने की प्रथा सी चल गई।

फ्रांस की क्रांति के पश्चात् कलासंग्रहालय (म्यूज़ियम) या चित्रवीथी (आर्ट गैलरी) केवल राजघरानों का शौक न होकर जनसाधारण की शिक्षा तथा मनोरंजन का साधन बनी और इसकी व्यवस्था तथा संरक्षण का कार्य एक निश्चित योजना के आधार पर होने लगा। बाद में संग्रहीत कलात्मक वस्तुओं तथा चित्रों के वर्गीकरण पर ध्यान गया और उनको रचनाकाल के क्रम से अलग अलग कोटि में रखकर अलग अलग कक्ष में सजाया जाने लगा। इस प्रकार चित्रशालाएँ पुरानी पंरपराओं, सामाजिक जीवन, रीति रिवाज, संस्कृति तथा सभ्यता के अध्ययन का केंद्र बन गई।

फ्रांसीसी राज्यक्रांति के पश्चात् राजभवनों की कलात्मक सामग्रियाँ विभिन्न लोगों में बँट गई। तब तक लंदन में कलात्मक वस्तुओं के संग्रह की प्रथा जोरों से चल पड़ी थी। फलत: फ्रांस से अनेक बहूमूल्य तथा उत्कृष्ट कलाकृतियां लंदन तथा योरोप के बाजारों में बिकने लगी थीं। इसे रोकने के लिये फ्रांस सरकार ने राजकीय संग्रहालय तथा चित्रशाला की योजना बनाई ताकि देश की अनुपम कलाकृतियों को राष्ट्रीय निधि के रूप में सुरक्षित रखा जा सके। इस दृष्टि से एलिकजांदे लेनोआ के नेतृत्व में वहाँ एक आयोग गठित हुआ और "म्यूजे नेशनल द मानुमेंट्स फ्रांसेज" नामक प्रथम राष्ट्रीय संग्रहालय की स्थापना हुई। तत्पश्चात् संसार के अन्य प्रगतिशील देशों में भी राष्ट्रीय संग्रहालय तथा चित्रशालाएँ स्थापित होने लगीं।

आरंभ में कला संग्रहालय के लिये प्राचीन काल के प्रसिद्ध कलात्मक राजमहल चुने जाते थे। इसप्रकार के संग्रहालयों में लूव्र, लक्जेमबर्ग, स्कुनि तथा कार्नावेलेट (पेरिस), बेलवीडियर (वियना) इत्यादि प्रसिद्ध हैं। दिल्ली में जयपुर हाउस तथा बड़ौदा, हैदराबाद इत्यादि कई भारतीय नगरों में इस तरह के संग्रहालय हैं। अमरीका में इसाबेला, स्टुअर्ट गार्डेनर संग्रहालय (बोस्टन - मास) प्रसिद्ध हैं। रूस और चीन में भी तमाम पुराने राजमहलों को संग्रहालयों में परिवर्तित कर दिया गया है। 19वीं शताब्दी में अधिकतर दुमंजिले संग्रहालय बनाए गए और भवन आवश्यकतानुसार कायदे से सुंदर ढंग से बनाए जाने लगे। आधुनिक काल में तो बड़े ही विचित्र ढंग की प्रभावशाली चित्रशालाएँ बनाई गई। न्यूयार्क में अरूपवादी चित्रकला का संग्रहालय (1945) बना जो अपने ढंग का अद्भुत है। कला संग्रहालय के निर्माण में हमेशा इसपर ध्यान दिया जाता है कि भवन ऐसे ढंग से बनाया जाय कि दर्शक क्रमश: एक ओर से देखता हुआ दूसरी ओर निकल जाय और कुछ अनदेखा न रह जाय। इसीलिये शुरू में गोलाकार कलासंग्रहालय बनाने का भी प्रचलन हुआ। पेरिस में पाल नेलसन ने ऐसे ही संग्रहालय भवन की डिजाइनें बनाईं। संग्रहालय में गोलाकार पर्यटन की व्यवस्था आज भी अच्छी समझी जाती है। इस प्रकार के प्रसिद्ध कलासंग्रहालय बर्लिन, म्यूनिख, ब्रिटिश म्यूजियम, नेशनल गैलरी ऑव लंदन, ड्रेस्डेन म्यूजियम, वियना तथा मार्सेई के म्यूजियम दर्शनीय हैं। अब तो सभी देशों में इस प्रकार के अनेक संग्रहालय बन गए हैं।

राष्ट्रीय चित्रशालाएँ

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राष्ट्रीय चित्रशाला (national art galleries) स्थापित करने करने का सर्वप्रथम प्रयास फ्रांसीसी क्रांति के पश्चात् आरंभ हुआ। फ्रांस में नेपोलियन ने सर्वप्रथम एक पुराने राजमहल लूव्र में राष्ट्रीय चित्रशाला स्थापित करवाई जिसे बाद में "म्यूजे नेपोलियन" भी कहा गया। नेपोलियन ने अपने यूरोपीय हमलों में जो कुछ कलात्मक सामग्री उपलब्ध की थी वह इस संग्रहालय में रखी गई। इस प्रकार पहली बार साधारण जनता को एक ही भवन में संसार भर की उत्कृष्ट कलात्मक सामग्री देखने को मिली। नेपोलियन ने विभिन्न देशों की सर्वोत्कृष्ट कलात्मक सामग्रियाँ उपलब्ध की थीं। यह बात उन देशों को बहुत ही खटकती थी। इसीलिये बाद में सभी देशों ने यह यत्न किया कि उनकी लूटी हुई कलात्मक वस्तुएँ लौटा दी जाय। इसी प्रयास से उन्हें अपने यहाँ भी राष्ट्रीय कलासंग्रहालय स्थापित करने की प्रेरणा मिली।

चित्रशाला का वर्गीकरण

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पहले के संग्रहालयों में सांमतों और राजाओं की व्यक्तिगत रुचि की सामग्रियाँ ही होती थीं। किंतु जब राष्ट्रीयं संग्रहालय बनने लगे तब लोगों का ध्यान इस ओर भी गया कि सारी कलात्मक सामग्री को ऐतिहासिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक दृष्टि से इस प्रकर वर्गीकृत किया जाय कि उनके सहज विकासक्रम का पता चल सके। वियना में कलात्मक सामग्रियों के निर्देशक क्रिश्चियन वान मिचेल ने राष्ट्रीय संग्रहालय को सर्वप्रथम इसी ढंग पर सजाया और यह परिपाटी चल पड़ी। फलत: लंदन (1824), बर्लिन (1830) म्यूनिख (1836) तथा अन्य कई नगरों में इस प्रकार के राष्ट्रीय संग्रहालय बने। 19वीं शताब्दी में धीरे धीरे योजनाबद्ध संग्रहालय का विकास होता गया। इंग्लैंड में विक्टोरिया तथा अलबर्ट संग्रहालय बड़े ही सुनियोजित ढंग से हर प्रकार की कला को उनके विकासक्रम से सजाया ताकि उनका वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन किया जा सके। प्रागैतिहासिक काल से लेकर पूर्व और पश्चिम की आधुनिकतम तमाम कलात्मक सामग्रियों का क्रम से संयोजित किया गया। यहाँ तक कि आदिवासियों की कला तथा लोककला को भी उनके विकासक्रम से प्रदर्शित किया जाने लगा।

इस प्रकार संग्रहालय का अपना एक विज्ञान बन गया और उसमें निरंतर प्रगति होती गई। संग्रहालय के लिये विशेषज्ञ तैयार होने लगे जिन्हें "क्यूरेटर" कहा जाता है। विशेषज्ञों ने संग्रहालय को और भी निखारने के लिये शुरू में उन्हें चार विभागें में विभक्त किया -

(1) कला, (2) इतिहास, (3) उद्योग और विज्ञान तथा (4) प्राकृतिक इतिहास (मेमालोजी, नृतत्वविज्ञान)

कला से संबंधित संग्रहालय के अंतर्गत ही चित्रशाला या आर्ट गैलरी आती है।

बीसवीं सदी की चित्रशालाएँ

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पेरिस की विश्वप्रसिद्ध लुव्रे चित्रशाला

20 वीं शताब्दी में संग्रहालयों के भवन और भी वैज्ञानिक बनने लगे हैं। चित्रशालाएँ कालात्मक सामग्री के अनुरूप निर्मित की जाने लगी हैं ताकि देखने और समझने में सुविधा हो। विभिन्न काल की कलाकृतियों, संबंधित काल के भवनों की तरह की चित्रशालाएँ बनवाकर सजाई जाती हैं। यहाँ तक कि चित्रों के प्रमाण के अनुरूप उनके लिये भवन बनाए जाते हैं और उन्हें देखने के लिये कम या अधिक प्रकाश की व्यवस्था की जाती है। प्रकाश की व्यवस्था संग्रहालयों के लिये महत्वपूर्ण आवश्यकता है। अब तो संग्रहालय के साथ साथ व्याख्यानकक्ष, पुस्तकालय, परिवर्तनीय प्रदर्शनीकक्ष, अध्ययनकक्ष, अध्यापनकक्ष, उधार दी जानेवाली सामग्रियों का भवन, उधार मँगाई गई कलाकृतियों का भवन, आधुनिक चित्रकला कक्ष इत्यादि तमाम चीजें जुड़ती जा रही हैं। धीरे धीरे संग्रहालय इतना बड़ा होता जा रहा है कि दर्शक का मन ऊबने लगा है। इसीलिये अब इसपर विशेष ध्यान दिया जाता है कि कलासंग्रहालय का वातावरण अधिक अधिक रुचिकर बनाया जाय। विभिन्न कक्षों की विभिन्न बनावट रखी जाती है, उनमें विभिन्न रंग की पुताई होती है, उनका आकार भिन्न भिन्न होता है, बाग बगीचे, प्रदर्शनमंजूषा (शो केसेज) तथा अन्य रुचिकर सामग्रियों से उन्हें आकर्षक बनाया जाता है। सामग्रियों की पुस्तकाकार सूची दर्शकों को दी जाती है ताकि वे उनसे परिचित हो सकें।

फ्रांस की अधिकतर अच्छी चित्रशालाएँ पेरिस में हैं। पेरिस में लूव्र संसार की उत्कृष्टतम चित्रशाला मानी जाती है। समय समय पर उसे व्यक्तिगत संग्रहकर्ताओं से मूल्यवान् कलासामग्रियाँ प्राप्त होती रही है और इस प्रकार यह अत्यंत समृद्ध चित्रशाला बन गई है। सन् 1900 में वर्ल्ड फेयर (विश्व मेला) के सिलसिले में जो राजमहल तथा इमारतें उपलब्ध हुई थीं उन्हीं में अधिकतर कलासामग्रियाँ रखी गई। बाद में सभी जगह की अत्यंत महत्वपूर्ण सामग्रियाँ लूव्र में रखी जाने लगीं। नई चित्रशालाओं के लिये भी उपयुक्त भवन बनवाए गए, जैसे पैलेस दु शैलोट। आधुनिक चित्रकला के लिये अलग से "म्यूजेडर्न नेशनल डि आर्ट" बनाया गया। द्वितीय महायुद्ध के बाद दीजों, ली हावरे, लिओन, नीस, राइम इत्यादि में भी नए संग्रहालय बने और आधुनिक विधि से उन्हें संयोजित किया गया। फ्रेंच चित्रशालाएँ अफ्रीका, अलजीरिया तथा ट्यूनिस में बनाई गई।

फ्रांस की महत्वपूर्ण चित्रशालाएँ पेरिस में म्यूजे गिमेट, म्यूजे दु लूव्र, म्यूजे नेशनल दे आर्ट माडर्न तथा दीजों, लिले, लिओं, रुआँ, स्ट्रासबर्ग और टूर्स में म्यूजे देज़ बूज़ आर्टूंस; वार्सेई में म्यूज़े नेशलन द हिस्ट्री दे फ्रांस हैं।

संयुक्त राज्य अमरीका

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बेंजामिन सिलीमैन (जूनियर) के प्रयास से अमरीका में चित्रशालाओं का प्रादुर्भाव हुआ। इससे पहले भी कई व्यक्तिगत संग्रहकर्ताओं, जैसे हेनरी ऐबट टामस जेब्रिआं इत्यादि द्वारा संग्रहीत चित्र न्यूयॉर्क के संग्रहालय को प्राप्त हो चुके थे। बाद में विलियम ब्लाजेट, जे. जे. जार्विस; हेनरी टकरमैन तथा चार्ल्स जी. पर्किस के प्रयास से चित्रशालाएँ बनाने का काम आगे बढ़ा। 1870 में न्यूयार्क, बोस्टन (मास) में चित्रशालाएँ बनीं। इसके पश्चात् अमरीक में विशेष ढंग की चित्रशालाओं का निर्माण हुआ जैसे ह्विटनी में अमरीकी कला तथा आधुनिक कला के संग्रहालय, गुगेनहीम में अरूपवादी कला का संग्रह इत्यादि। मेट्रोपोलिटन संग्रहालय में सभी काल के चित्र हैं। बोस्टन में मध्यकाल तथा सुदूरपूर्व के चित्र, शिकागो में आभासवादी (इंप्रेशनिस्ट) ढंग के चित्र, क्लीवलैंड में धार्मिक चित्र, फिलाडेलफिया में डच चित्र इत्यादि का अलग अलग विशेष संग्रह प्रस्तुत किया गया।

अमरीका की सबसे महत्वपूर्ण चित्रशालाएँ बाल्टीमोर, बोस्टन, शिकागो, सिनसिनाटी, क्लीवलैंड, डेट्रॉएड, कैंजस सिटी, लॉस ऐंजेल्स, मिनेपोलिस, न्यूयार्क, फिलाडेलफिया, सान फ्रांसिस्को, सेंट लुई, टोलेडो, वाशिंगटन तथा वोसेंस्टर में है। वैसे अब अमरीका के अन्य छोटे नगरों में भी अच्छे कलासंग्रहालय बन गए हैं और अनेक महत्वपूर्ण व्यक्तिगत संग्रहालय भी हैं। इस समय चित्रशालाओं की दृष्टि से अमरीका सबसे अधिक समृद्ध है।

ग्रेट ब्रिटेन

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ग्रेट ब्रिटेन में 1803 से कलासंग्रहालयों को विशेष रूप से सुगठित किया गया। इनमें नेशनल गैलरी, विक्टोरिया ऐंड एलबर्ट म्यूजियम तथा टेट गेलरी प्रमुख हैं। वैसे 1875 में ही जान रस्किन ने शेफील्ड म्यूजियम को आधुनिक ढंग से सुगठित करने का प्रयास किया था। प्रथम महायुद्ध के पश्चात् केंब्रिज में फिट्ज विलियम म्यूजियम तथा कार्डिफ में नेशनल म्यूजियम ऑव वेल्स तथा ग्लास्गो, बरमिंघम, लीड्स, लिवरपूल और मैनचेस्टर की चित्रशालाओं को भी 1950 तक अच्छी तरह सुसज्जित कर दिया गया। ब्रिटिश कामनवेल्थ के अंतर्गत कनाडा में ओटावा की चित्रशाला, आस्ट्रेलिया में मेलबोर्न का नेशनल गैलरी ऑव विक्टोरिया, यूरोपीय चित्रकला के लिये दर्शनीय हैं। अफ्रीका में केप टाउन तथा जोहांसबर्ग की चित्रशालाएँ, भारत में पिं्रस ऑव वेल्स म्यूजियम, बंबई, द नेशनल म्यूजियम ऑव इंडिया, नई दिल्ली, तथा बड़ौदा म्यूज़ियम बड़े ही महत्वूर्ण है।

जापान में टोकियो तथा क्योटो की चित्रशालाएँ, तुर्की में इस्तंबूल तथा अंकरा की चित्रशालाएँ और मिस्र में काहिरा की चित्रशाला महत्वपूर्ण हैं।

ब्रिटेन के अन्य महत्वपूर्ण कलासंग्रहालय तथा चित्रशालाएँ हैं बर्नाडे कैसल का बोज़ म्यूज़ियम, बमिंघम का सिटी म्यूज़ियम, केंब्रिज का फिट्ज विलियम म्यूज़ियम, ऊलविच गैलरी, एडिनबरा की नेशनल गैलरी ऑव स्काटलैंड, गैलस्गो को आर्ट गैलरी, लिवरपूल वाकर आर्ट गैलरी, लंदन में ब्रिटिश म्यूजियम की नेशनल गैलरी, नेशनल पोर्ट्रेट गेलरी, टेट गैलरी, आक्स्फोर्ड का ऐशमोलीन म्यूज़ियम इत्यादि।

20वीं सदी के पूर्व तक यूरोप में अधिकतर चित्रशालाएँ पुरानी परिपाटी पर, एक ही ढंग से स्थापित होती रहीं। जर्मनी में भी अधिकतर चित्रशालाओं की यही स्थिति थी। लेकिन 20वीं शताब्दी के आरंभ में विलहेम वान बोडे के नेतृत्व में बर्लिन की चित्रशालाओं में बहुत अधिक परिवर्तन हुआ। उन्हें अधिक से अधिक व्यापक बनाया जाने लगा। उनमें योरोप, अमेरिका तथा पूर्वी देशों की कला को भी समुचित स्थान दिया गया। बोडे के प्रयास से चित्रशालाएँ वैज्ञानिक ढंग से सजाई जाने लगीं। उसके प्रदर्शन करने के ढंग को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हुई। दूसरे महायुद्ध के बाद बर्लिन की चित्रशालाओं की सामग्री पूर्व और पश्चिम, दो भागों में बँट गई और उनकी विशेषता नष्ट हो गई। फिर भी जर्मनी के कुछ महत्वपूर्ण नग जैसे म्यूनिख, फ्रैंकफर्ट, हैमबर्ग, कैसेल, स्टटगार्ट तथा न्यूरेमबर्ग की चित्रशालाएँ बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं। आधुनिक चित्रकला की दृष्टि से ईसन का फोकवांग संग्रहालय बहुत ही महत्वपूर्ण है। वैसे नाजी जर्मन में इस प्रकार के संग्रहालय अवांछनीय घोषित कर दिए गए थे और उसकी सामग्रियाँ बुरी तरह नष्ट भ्रष्ट कर दी गई थीं, फिर भी कोलोन, न्यूरेमर्ब तथा स्टटगार्ट में उन्हें फिर किसी प्रकार स्थापित किया जा सका। पूर्वी जर्मनी में राष्ट्रीय संग्रहालय तथा चेमनीज़, हेल और लाइपजिग की चित्रशालाएँ महत्वपूर्ण हैं।

पूर्वी जर्मनी (बर्लिन) में इहेमलोज़ स्टाटलीश संग्रहालय (1830) प्राचीन, पूर्वी तथा मिस्री कला के अतिरिक्त सभी प्रकार की कला शैलियां के चित्रों तथा मूर्तियों से सुसज्जित है। जर्मन चित्रकला के लिये ड्रेस्डेन की स्टाटलीश जेमाल्दे गैलरी महत्वपूर्ण है। लाइपजिंग की चित्रशाला, म्यूजियम डेर बिलडेनडेन कूँस्ते (1837) में सभी काल के चित्र हैं। वैसे ही वीमर का स्टाटलीश कुंस्टसामलंग संग्रहालय भी अपनी विविधता के लिये दर्शनीय है।

लेनिनग्राड में हर्मिटेज स्टेट म्यूजियम प्रसिद्ध प्राचीन चित्रकारों की कला, लेनिनग्राड़ में रशन स्टेट म्यूजियम में रूसी चित्रकला, मास्को में लोककला, स्टेट म्यूजियम ऑव माडर्न वेस्टनं आर्ट यूरोपीय चित्रकला और ट्रेटयाकोव गैलरी रूसी चित्रकला के लिये प्रसिद्ध है।

इसी प्रकार प्राग में नेशनल म्यूजियम (चेकोस्लोवाकिया), सोफिया में नेशनल म्यूज़ियम (बलगारिया), कोपेनहेगेन में नेशनल म्यूजीट, नाई कार्ल्स वर्ग ग्लिप टो थेक, रोजेनबर्ग स्लीट, तथा स्टेटेंस म्यूजियम (डेनमार्क), क्विटो में अर्चीवो नेशनल म्यूज़ियम (इक्वेडोर), बुडापेस्ट में म्यूज़ियम ऑव फाइन आर्ट्स (हंगरी); मेक्सिको सिटी में म्युजिओ नेशनल दे आर्टेज तथा नेशनल गैलरी (मेक्सिको), ओसलो में नेशनल गैलरी (नार्वे), क्रैकाओ तथ वारसा में नेशनल म्यूज़ियम (पोलैंड), स्टाकहोम में नेशनल म्यूज़ियम (स्विडेन), कराकस में म्यूजिओ डि आर्टे कलोनियल तथा म्यूज़िओ नेशनल (वेनेजुला), बेलग्रेड में म्यूज़ियम ऑव आर्ट, ल्जूब्लजाना में नेशनल पिक्चर गैलरी (यूगोस्लाविया) प्रसिद्ध चित्रशालाएँ हैं।

इटली के प्रत्येक नगर में चित्रशालाएँ हैं जिनमें फ्लोरेंस, मिलान, नेपुल्स, रोम, ट्यूरिन तथा वेनिस की चित्रशालाएँ अति प्रसिद्ध हैं। वहाँ के सैकड़ों गिर्जाघर भी चित्रशालाओं में परिवर्तित किए जा चुके हैं। नीदरलैंड में ऐम्सटर्डम, आर्नेहम, हेग, हार्लेम, रोटडंम, यूट्रेक्ट; बेल्जियम में ऐंटवर्प, ब्रूजेज़, ब्रूसेल्स, घेंट लीज; स्विटजरलैंड में बासले, बर्न, जेनेवा, लुसाले, तथा ज्यूरिख; स्पेन में मैड्रिड का म्यूजिओ डेल प्राडो, बार्सीलोना तथा विश की, पुर्तगाल में नेशनल म्यूज़ियम, लिस्बन तथा नेशनल कोश म्यूज़ियम की; आस्ट्रिया में वियना का आर्ट म्यूज़ियम, बेलवीडियर म्यूज़ियम तथा ग्राज, इंसब्रक, क्लैगेन फर्ट, लिंज और सालबर्ग की, स्कैंडीनेविया में कोपेनहेगेन, स्टाकहोम, ओस्लो, गोटेबोर, लुंड तथा मैलमों की; फिनलैंड में नेशलन म्यूज़ियम हेलसिंकी की; कनाडा में ओटावा, टोरांटो की; आस्ट्रेलिया में द नेशनल गैलरी ऑव मेलबोर्न तथा सिडनी की; दक्षिणी अफ्रीका में केप टाउन तथा जोहांसबर्ग की; जापान में टोकियो तथा क्योतो की; तुर्क में अकारा तथा इस्तंबूल की; मिस्र में काहिरा की, ईराक में बगदाद स्थित ईरा म्यूज़ियम; इसरायल जेरूसलम में ब्रेज़ाबेल म्यूज़ियम तथा तेलअबीव में तेलअबीब म्यूज़ियम, पाकिस्तान में कराची के नेशनल म्यूज़ियम तथा लाहौर के सेंट्रल म्यूज़ियम की प्रसिद्ध चित्रशालाएँ हैं।

भारत की चित्रशालाएँ

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भारतीय पुराणों में प्राय: चित्रशाला तथा विश्वकर्मामंदिर का वर्णन मिलता है। ये संभवत: मनोविनोद तथा शिक्षा के केंद्र थे। पुराणों में चित्रकला में अभिरुचि के साथ चित्रसंग्रह और चित्रशाला के अनेक संकेत मिलते हैं। इससे लगता है कि भारत में अति प्राचीन काल से ही चित्रशालाएँ थीं। वैसे भी इस देश में मंदिरों में चित्रकला तथा मूर्तिकला को आदिकाल से प्रमुखता मिलती आई है जो आज भी वर्तमान है। अजंता का कलामंडप इसका अद्भुत प्रमाण है। यह करीब दो हजार वर्ष पुरानी, संसार की अप्रतिम चित्रशाला है। प्राचीन कल के सभी मंदिर मूर्तिकला से परिपूर्ण हैं और कहीं कहीं अब भी उनमें चित्रकला वर्तमान है। मध्यकालीन मंदिरों में तो चित्रकला तथा मूर्तिकला के उत्कृष्ट उदाहरण मिलते हैं। इस काल में राजा महाराजा, बादशाहों, नवाबों के महलों में भी चित्रशालाएँ बनने लग गई थीं। आधुनिक अर्थों में भारत में सर्वप्रथम संग्रहालय तथा चित्रशाला एशियाटिक सोसाइटी ऑव बंगाल के प्रयास से 1814 में स्थापित हुई जिसे हम आज भारतीय संग्रहालय, कलकत्ता (इंडियन म्यूज़ियम, कलकत्ता) के नाम से जानते हैं और यह एशिया के सबसे समृद्ध संग्रहालयों में गिना जाता है।

मंदिरों की चित्रशालाएँ अधिकतर दक्षिणा भारत में हैं। इस प्रकर की चित्रशालाओं में तंजोर में राजराज संग्रहालय प्रसिद्ध है। अब उसे पुनर्गठित किया जाता गया है। सरस्वती महल में चित्रशाला स्थापित है। सीतारंगम मंदिर, मीनाक्षीसुंदरेश्वरी का मंदिर तथा मदुराई का मंदिर भी उल्लेखनीय है। सीतारंगम मंदिर में मूर्तिकला के अद्भुत नमूने हैं मीनाक्षी में हाथीदाँत की कला अद्भुत है। वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, तिरुपत में भी कलात्मक कृतियों का अच्छा संग्रह हैं।

इस समय भारत में सैकड़ों संग्रहालय है और कइयों में चित्रों का भी अच्छा संग्रह हैं पर सुनियोजित चित्रशालाएँ बहुत नहीं हैं। अधिकतर संग्रहालयों में राजस्थानी, मुगल, पहाड़ी, दक्खिनी, नेपाल तथा तिब्बती शैली के चित्र हैं। कुछेक में आधुनिक यूरोपीय चित्र भी हैं पर ऐसी चित्रशालाएँ, जहाँ आदि से अंत तक चित्रकला का इतिहास तथा प्रगति समझने में मदद मिले, कतिपय ही हैं। मुंबई के प्रिंस ऑव वेल्स संग्रहालय में पूर्वी तथा पश्चिमी सिद्धहस्त चित्रहारों की कृतियों के साथ साथ मध्यकालीन तथा आधुनिक चित्रकला के विभिन्न पक्षों के चित्र हैं तथा अजंता की बड़ी बड़ी अनुकृतियाँ भी हैं।

मैसूर की चित्रशाला में अधिकतर भारतीय आधुनिक शैली के चित्र है। ग्वालियर संग्रहालय में अजंता तथा बाघ के चित्रों की अनुकृतियों का अच्छा संग्रह है। इसी प्रकार हैदराबाद की चित्रशाला में भी अंजता तथा एलोरा की कलाकृतियों की सुंदर अनुकृतियाँ रखी गई हैं। इसमें यूरोपीय कला का भी सुंदर संग्रह है।

नई दिल्ली में एक बड़ी ही सुव्यवस्थित चित्रशाला नेशनल गैलरी ऑव माडर्न आर्ट है। इसमें अधिकतर शैली के भारतीय चित्र हैं। इसमें मुगल तथा राजस्थानी चित्र भी पर्याप्त मात्रा में हैं।

बाहरी कड़ियाँ

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