चारू मुजुमदार

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चारू मुजुमदार
जन्म 1918
सिलीगुड़ी
मौत जुलाई 28, 1972
कोलकाता
प्रसिद्धि का कारण नकसलवाद
उल्लेखनीय कार्य {{{notable_works}}}
चारू मजुमदार

चारू मुजुमदार (बंगाली: চারু মজুমদার; 1918–1972) भारत के एक कम्यूनिस्ट थे। धनी पारिवारिक कड़ियों को छोड़कर उन्होंने एक कठिन और सादा क्रान्तिकारी जीवन को चुना। उनका जन्म सिलीगुड़ी के एक खुशहाल ज़मीनदार परिवार में 1918 में हुआ था। आगे के जीवन में उन्होंने हथियारबंद नकसल आन्दोलन में भाग लिया था। चारू ने 1968 के नकसलबारी विद्रोह के ऐतिहासिक महत्व पर लिखा है और उसकी रचनाएँ आज भी लाल क्रांतिकारियों का मार्गदर्शन करती हैं। [1]

जीवन[संपादित करें]

चारू का जन्म 1918 में सिलीगुड़ी में हुआ। उसके पिता एक स्वतन्त्रता सेनानी थे। उसने 1938 में कॉलेज छोड़ दिया था। 1946 में वह तेभागा आन्दोलन से जुड़ गए थे। उन्हें थोड़े से समय के लिए 1962 में जेल में बन्द किया गया था।

1937-38 में कॉलेज की पढ़ाई को छोड़कर चारू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए और बीड़ी कर्मचारियों को संगठित करने के प्रयास में जुट गए। इसके पश्चात वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए ताकि इसकी किसान शाखा के लिए काम कर सकें। जल्द ही उनके नाम एक गिरफ़्तारी का वॉरंट जारी हुआ जिसके कारण उन्हें बाएँ कार्यकर्ता के रूप में पहली बार भूमिगत होना पड़ा। हालांकि सी पी आई को प्रथम विश्व युद्ध के समय प्रतिबंधित किया गया था, वह सी पी आई की गतिविधियों को किसानों के बीच जारी रखे और जलपुरीगंज जिला कमिटि के 1942 में सदस्य बन गए थे। इस प्रगति से प्रेरित होकर चारू ने फ़सल को क़बज़े लेने का अभियान जलपुरीगंज में 1943 के बड़े अकाल के दौरान सफलतापूर्वक चलाया। 1946 में वह तेभागा आन्दोलन से जुड़े और उत्तर बंगाल के कामगारों के लिए हथियारबंद आन्दोलन शुरू किया। इसके पश्चात वह कुछ समय के लिए दार्जीलिंग के चाय के बागानों के कर्मचारियों के बीच काम करते रहे।

सी पी आई को 1948 में प्रतिबंधित किया गया था। चारू ने अगले तीन वर्ष जेल में बिताए। जनवरी 1954 में चारू ने लीला मुजुमदार सेनगुप्ता शादी की जो जलपुरीगंज से सी पी आई की सदस्या रही थी। इस जोड़े ने सिलीगुड़ी की ओर प्रस्थान किया जो अगले कुछ सालों तक मुजुमदार की गतिविधियों का केन्द्र बना रहा। यहीं पर उसके बीमार पिता और अवैवाहित बहन गम्भीर दरिद्रता का जीवन जी रहे थे।[उद्धरण चाहिए]

1960 की दशक से मध्य में मजुमदार ने उत्तर बंगाल में सी पी एम में एक बाईं टुकड़ी बनाई। 1967 में नकसलबारी एक हथियारों से लैस किसान विद्रोह छिड़ गया जिसकी अगुवाई कॉमरेड कानू सान्याल कर रहे थे। इस दल को आगे चलकर नकसली कहा जाने लगा। ऐसे समय पर चारू ने आठ लेख लिखे थे जिनका उद्देश्य यह था कि सफल क्रांति चीनी क्रांति के मार्ग पर हिंसात्मक संघर्श का रूप ले सकती है। 1969 में चारू ने ऑल इंडिया कोऑरडिनेशन कमिटी ऑफ़ कम्यूनिस्ट रेवोलूशनरीज़ बनाई जिसके वह जेनेरल सेकरेटरी बने। जुलाई 16, 1972 को चारू को अपने खुफ़िया ठिकाने से पकड़ा गया। 28 जुलाई को रात 4 बजे वह लॉक-अप में अपनी अंतिम साँसे ले चुके थे। मृत्यु हृदयाघात से हुई थी।

मृत शरीर भी परिवार को नहीं सौंपा गया। पुलिस, निकटतम परिवारजनों के साथ शरीर को शवदाहगृह ले गई। पूरा इलाका घेरे में लिया गया था और किसी भी दूसरे रिश्तेदार को जिस्म को जलाते समय अन्दर आने की अनुमति नहीं दी। .[2]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Charu Majumdar -- The Father of Naxalism". हिन्दुस्तान टाइम्स. मूल से 4 नवंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अप्रैल 2015.
  2. "The last of the three". द इंडियन एक्सप्रेस.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]