चंद्रलेखा (नर्तकी)
चंद्रलेखा भारत की एक नर्तक और कोरियोग्राफर थी जिनका पूरा नाम चंद्रलेखा प्रभुदास पटेल था, जिनका जन्म ६ दिसंबर १९२८ को हुआ था और मृत्यु ३० दिसंबर २००६ को। वह भरतनाट्यम को मार्शल आर्ट्स जैसे कलारिपैयट्टू की फ्यूज़िंग की एक बेहतरीन प्रतिपादक थी। वह एक अज्ञेयवादी डॉक्टर पिता और महाराष्ट्र के वाडा में एक धर्माभिमानी हिंदू माता के घर पैदा हुई थी। उन्होंने अपने बचपन को गुजरात और महाराष्ट्र में बिताया। २००४ में संगीत नाटक अकादमी, संगीत नाटक अकादमी के लिए भारत की नेशनल एकेडमी, नृत्य और ड्रामा का सर्वोच्च पुरस्कार उन्हें प्रदान किया गया था।[1] हाई स्कूल पूरा करने के बाद, चंद्रलेखा ने कानून का अध्ययन किया, परन्तु इसके बजाय नृत्य सीखने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी। उन्होंने दसी अट्टम जो की दक्षिणी भारत के मंदिर नर्तकियों द्वारा किया जाता है, उसका अधयन्न किया। वह अपनी नृत्य शिक्षा में बालासरस्वती और रूक्मिणी देवी अरुंडेल से भी प्रभावित थीं। परन्तु उनकी कोरियोग्राफी से पता चलता है कि वह अपने पूर्व अभ्यास से ज्यादा प्रभावित थी। चंद्रलेखा शिरिरा नामक नृत्य प्रारुप में अपने कुख्यात योगदान के लिए जानी जाती है। उन्होंने कई अन्य पुरुस्कार भी प्राप्त किए हैं:
- संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार: क्रिएटिव डांस के लिए १९९१ में
- कालिदास सम्मान २००३-२००४[2]
- संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप २००४ में[3]