चंडी दी वार

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चंडी दी वार एक वार है जो दशम ग्रंथ के पंचम अध्याय में है। इसे 'वार श्री भगवती जी की' भी कहते हैं। यह मार्कण्डेय पुराण और दुर्गासप्तशती के आधार पर रचा गया है। इसमें देवताओं और असुरों के बीच संगर्ष का वर्णन है। इसमें चण्डी एक मुक्तकारी दैवी शक्ति बन जातीं हैं असत्य के मार्ग पर चलने वालों का विनाश करतीं हैं।

चण्डी दी वार एक दार्शनिक, आध्यात्मिक और वीररस से पूर्ण रचना है। कहीं कहीं 'वार दुर्गा की' भी आया है। चण्डी दी वार, सिख संस्कृति का महत्वपूर्ण भाग है। इसका पहला श्लोक, अरदास का आरम्भिक श्लोक है।

'वार', पंजाबी साहित्य का एक काव्यभेद है जो वर्णनात्मक शैली में लिखा जाता है। "वार" शब्द संस्कृत की "वृ' धातु से व्युत्पन्न है। "कीर्ति', "घेरा', "धावा' (आक्रमण) आदि इसके अर्थ हैं।

चण्डी दी वार के प्रथम भाग का नाम 'चण्डी चरित्र उक्ति बिलास' है जिसमें मार्कण्डेय पुराण में वर्णित कथा आयी है। इसमें दुर्गा, अपना रूप बदलने वाले महिषासुर से युद्ध करतीं हैं और उसकी तथा उसके साथियों की हत्या करतीं हैं। दूसरे भाग में यही कथा पुनः दोहरायी गयी है। चण्डी दी वार के तीसरे भाग में दुर्गासप्तशती की कथा को लिखा गया है।

चंडी दी वार वीर-रस से भरपूर है। निहंग सिंघ इस वाणी का पाठ हर रोज करते हैं। इसमें दशम पिता ने अनेक छन्दों का उपयोग किया है। 'चंडी दी वार' में सर्वप्रथम मां को नमन करने के बाद वे गुरु नानकदेव का स्मरण करते हैं –[1]

प्रिथम भगौती सिमरि कै गुरु नानक लईं धिआइ॥

फिर गुरु अंगददेव, गुरु अमरदास, गुरु रामदास, गुरु अर्जुन देव, गुरु हरगोबिंद, गुरु हर राय, गुरु हरकिशन सिंह और गुरु तेगबहादुर का स्मरण करते हैं।

फिर अंगद गुर ते अमरदासु रामदासै होईं सहाइ।
अरजन हरिगोबिंद नो सिमरौ स्री हरिराइ॥
स्री हरि किशन धिआईऐ जिस डिठे सभि दुखि जाइ।
तेग बहादर सिमरिऐ घर न निधि आवै धाइ॥

योद्धा का मन उसके शस्त्र में बसता है। शस्त्र पूजकों की परम्परा वाले देश का एक महानायक और कैसी शुरुआत करेगा जब वह दुष्टों के नाश का संकल्प लिए हो ! गुरु गोविन्द लिखते हैं –

खंडा प्रिथमै साज कै जिन सभ सैसारु उपाइआ।
ब्रहमा बिसनु महेस साजि कुदरति दा खेलु रचाइ बणाइआ ॥

अर्थात् परमात्मा! तुमने सबसे पहले खंडा (दुधारी तलवार) धारण किया, फिर संसार का निर्माण किया। अब वे शक्ति की प्रतीक दुर्गा के अवतरण और राम-कृष्ण द्वारा रावण और कंस के संहार का उदाहरण देते हुए शक्ति की उपासना का महत्व बताते है –

तै ही दुरगा साजि कै दैता दा नासु कराइआ।
तैथों ही बलु राम लै नाल बाणा दहसिरु घाइआ॥
तैथों ही बलु क्रिसन लै कंसु केसी पकड़ि गिराइआ॥

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. संस्कृति की स्याही, संघर्ष की कलम (पाञ्चजन्य, दिसम्बर २०१६)

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]