घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005
घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 | |
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ऐसी महिलाओं के, जो कुटुम्ब के भीतर होने वाली किसी प्रकार की हिंसा से पीड़ित हैं, संविधान के अधीन प्रत्याभूत अधिकारों के अधिक प्रभावी संरक्षण और उससे सम्बन्धित या उसके आनुषङ्गिक विषयों का उपबन्ध करने के लिए अधिनियम | |
शीर्षक | 2005 का अधिनियम सङ्ख्याङ्क 43 |
द्वारा अधिनियमित | भारतीय संसद् |
अनुमति-तिथि | 13 सितम्बर 2005 |
शुरूआत-तिथि | 26 अक्टूबर 2006 |
स्थिति : प्रचलित |
घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 भारत की संसद् द्वारा पारित एक अधिनियम है जिसका उद्देश्य घरेलू हिंसा से महिलाओं को बचाना है और पीड़ित महिलाओं को विधिक सहायता उपलब्ध कराना है। यह 26 अक्टूबर 2006 को लागू हुआ।[1][2]
घरेलू हिंसा क्या है?
[संपादित करें]शारीरिक दुर्व्यवहार अर्थात शारीरिक पीड़ा, अपहानि या जीवन या अंग या स्वास्थ्य को खतरा या लैगिंग दुर्व्यवहार अर्थात महिला की गरिमा का उल्लंघन, अपमान या तिरस्कार करना या अतिक्रमण करना या मौखिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार अर्थात अपमान, उपहास, गाली देना या आर्थिक दुर्व्यवहार अर्थात आर्थिक या वित्तीय संसाधनों, जिसकी वह हकदार है, से वंचित करना,मानसिक रूप से परेशान करना ये सभी घरेलू हिंसा कहलाते हैं।
इस क़ानून के तहत घरेलू हिंसा के दायरे में अनेक प्रकार की हिंसा और दुर्व्यवहार आते हैं। किसी भी घरेलू सम्बंध या नातेदारी में किसी प्रकार का व्यवहार, आचरण या बर्ताव जिससे (१) आपके स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, या किसी अंग को कोई क्षति पहुँचती है, या (२) मानसिक या शारीरिक हानि होती है, घरेलू हिंसा है।
इसके अलावा घरेलू सम्बन्धों या नातेदारी में, किसी भी प्रकार का
- शारीरिक दुरुपयोग (जैसे मार-पीट करना, थप्पड़ मारना, दाँत काटना, ठोकर मारना, लात मारना इत्यादि),
- लैंगिक शोषण (जैसे बलात्कार अथवा बलपूर्वक बनाए गए शारीरिक सम्बंध, अश्लील साहित्य या सामग्री देखने के लिए मजबूर करना, अपमानित करने के दृष्टिकोण से किया गया लैंगिक व्यवहार, और बालकों के साथ लैंगिक दुर्व्यवहार),
- मौखिक और भावनात्मक हिंसा ( जैसे अपमानित करना, गालियाँ देना, चरित्र और आचरण पर आरोप लगाना, लड़का न होने पर प्रताड़ित करना, दहेज के नाम पर प्रताड़ित करना, नौकरी न करने या छोड़ने के लिए मजबूर करना, आपको अपने मन से विवाह न करने देना या किसी व्यक्ति विशेष से विवाह के लिए मजबूर करना, आत्महत्या की धमकी देना इत्यादि),
- आर्थिक हिंसा ( जैसे आपको या आपके बच्चे को अपनी देखभाल के लिए धन और संसाधन न देना, आपको अपना रोज़गार न करने देना, या उसमें रुकावट डालना, आपकी आय, वेतन इत्यादि आपसे ले लेना, घर से बाहर निकाल देना इत्यादि), भी घरेलू हिंसा है।
व्यथित व्यक्ति के अधिकार
[संपादित करें]इस अधिनियम को लागू करने की ज़िम्मेदारी जिन अधिकारियों पर है, उनके इस कानून के तहत कुछ कर्तव्य हैं जैसे- जब किसी पुलिस अधिकारी, संरक्षण अधिकारी, सेवा प्रदाता या मजिस्ट्रेट को घरेलू हिंसा की घटना के बारे में पता चलता है, तो उन्हें पीड़ित को निम्न अधिकारों के बारे में सूचित करना है:
- पीड़ित इस कानून के तहत किसी भी राहत के लिए आवेदन कर सकती है जैसे कि - संरक्षण आदेश,आर्थिक राहत,बच्चों के अस्थायी संरक्षण (कस्टडी) का आदेश,निवास आदेश या मुआवजे का आदेश
- पीड़ित आधिकारिक सेवा प्रदाताओं की सहायता ले सकती है
- पीड़ित संरक्षण अधिकारी से सम्पर्क कर सकती है
- पीड़ित निशुल्क विधिक सहायता की माँग कर सकती है
- पीड़ित भारतीय दण्ड संहिता (IPC) के तहत आपराधिक याचिका भी दाखिल कर सकती है, इसके तहत प्रतिवादी को तीन वर्ष तक का कारवास हो सकता है, इसके तहत पीड़ित को गम्भीर शोषण सिद्ध करने की आवश्यकता हैl
किससे संपर्क करें?
[संपादित करें]पीड़ित के रूप में आप इस कानून के तहत 'संरक्षण अधिकारी' या 'सेवा प्रदाता' से संपर्क कर सकती हैं। पीड़ित के लिए एक ‘संरक्षण अधिकारी’ संपर्क का पहला बिंदु है।संरक्षण अधिकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही शुरू करने और एक सुरक्षित आश्रय या चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने में मदद कर सकते हैं।प्रत्येक राज्य सरकार अपने राज्य में ‘संरक्षण अधिकारी’ नियुक्त करती हैl ‘सेवा प्रदाता’ एक ऐसा संगठन है जो महिलाओं की सहायता करने के लिए काम करता है और इस कानून के तहत पंजीकृत है lपीड़ित सेवा प्रदाता से, उसकी शिकायत दर्ज कराने अथवा चिकित्सा सहायता प्राप्त कराने अथवा रहने के लिए एक सुरक्षित स्थान प्राप्त कराने हेतु संपर्क कर सकती हैlभारत में सभी पंजीकृत सुरक्षा अधिकारियों और सेवा प्रदाताओं का एक डेटाबेस यहाँ उपलब्धहै।सीधे पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट से भी संपर्क किया जा सकता हैl आप मजिस्ट्रेट - फर्स्ट क्लास या मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट से भी संपर्क कर सकती हैं, किंतु किस क्षेत्र के मैजिस्ट्रेट से सम्पर्क करना है यह आपके और प्रतिवादी के निवास स्थान पर निर्भर करता है l १० लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में अमूमन मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट से संपर्क करने की आवश्यकता हो सकती हैl
घरेलू हिंसा के मामले में कौन शिकायत दर्ज करा सकता है ?
[संपादित करें]सुरक्षा अधिकारी के अलावा पीड़ित ‘सेवा प्रदाता’ से भी सम्पर्क कर सकती है, सेवा प्रदाता, पीड़ित खुद शिकायत कर सकती है। अगर आप पीड़ित नहीं हैं तो भी आप संरक्षण अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं। कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसे किसी कारण से लगता है कि घरेलू हिंसा की कोई घटना घटित हुई है या हो रही है या जिसे ऐसा अन्देशा भी है कि ऐसी घटना घटित हो सकती है, वह संरक्षण अधिकारी को सूचित कर सकता है। यदि आपने सद्भावना में यह काम किया है तो जानकारी की पुष्टि न होने पर भी आपके खिलाफ कार्यवाही नहीं की जाएगीlर शिकायत दर्ज कर, ‘घरेलू हिंसा घटना रिपोर्ट’ बना कर मजिस्ट्रेट और संरक्षण अधिकारी को सूचित करता है।
केस दर्ज कराने पर न्यायालय से क्या अपेक्षा कर सकते हैं ?
[संपादित करें]यदि आप अपनी समस्याओं का स्थायी समाधान चाहते हैं,तो आप न्यायालय में जा सकते हैं। इस अधिनियम के तहत उत्तरदायी न्यायाधीशों को 'मजिस्ट्रेट्स' कहा जाता है।
पीड़ित को स्वयं आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है, संरक्षण अधिकारी या सेवा प्रदाता के माध्यम से ऐसा किया जा सकता है। आवश्यक है कि मजिस्ट्रेट संरक्षण अधिकारी या सेवा प्रदाता द्वारा दर्ज की गयी पहली शिकायत के तथ्यों को ध्यान में रखें।
इस अधिनियम के तहत शिकायत के अलावा पीड़ित न्यायालय में सिविल केस भी दाखिल कर सकती / सकता है।
यदि पीड़ित सिविल केस भी दाखिल करती /करता है और उसे घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कोई राशि दी गयी है तो मजिस्ट्रेट यह राशि सिविल केस में तय राशि से घटा देगा।
मजिस्ट्रेट के ऊपर आवेदन मिलने के तीन दिन के अन्दर केस पर कार्यवाही शुरू करने का उत्तरदायित्व हैl केस शुरू होने के पश्चात, मजिस्ट्रेट को अधिकतम 60 दिन के भीतर केस का निवारण करने की कोशिश करनी हैl
धारा 4
[संपादित करें]घरेलू हिंसा किया जा चुका हो या किया जाने वाला है या किया जा रहा है , की सूचना कोई भी व्यक्ति संरक्षण अधिकरी को दे सकता है जिसके लिए सूचना देने वाले पर किसी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं तय की जाएगी। पीड़ित के रूप में आप इस कानून के तहत 'संरक्षण अधिकारी' या 'सेवा प्रदाता' से संपर्क कर सकती हैं। पीड़ित के लिए एक ‘संरक्षण अधिकारी’ संपर्क का पहला बिंदु है।संरक्षण अधिकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही शुरू करने और एक सुरक्षित आश्रय या चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने में मदद कर सकते हैं।प्रत्येक राज्य सरकार अपने राज्य में ‘संरक्षण अधिकारी’ नियुक्त करती हैl ‘सेवा प्रदाता’ एक ऐसा संगठन है जो महिलाओं की सहायता करने के लिए काम करता है और इस कानून के तहत पंजीकृत है lपीड़ित सेवा प्रदाता से, उसकी शिकायत दर्ज कराने अथवा चिकित्सा सहायता प्राप्त कराने अथवा रहने के लिए एक सुरक्षित स्थान प्राप्त कराने हेतु संपर्क कर सकती हैlभारत में सभी पंजीकृत सुरक्षा अधिकारियों और सेवा प्रदाताओं का एक डेटाबेस यहाँ उपलब्धहै।सीधे पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट से भी संपर्क किया जा सकता हैl आप मजिस्ट्रेट - फर्स्ट क्लास या मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट से भी संपर्क कर सकती हैं, किंतु किस क्षेत्र के मैजिस्ट्रेट से सम्पर्क करना है यह आपके और प्रतिवादी के निवास स्थान पर निर्भर करता है l १० लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में अमूमन मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट से संपर्क करने की आवश्यकता हो सकती हैl
धारा 5
[संपादित करें]यदि धरेलू हिंसा की कोई सूचना किसी पुलिस अधिकारी या संरक्षण अधिकारी या मजिस्ट्रेट को दी गयी है तो उनके द्वारा पीड़िता को जानकारी देनी होगी किः-
- (क) उसे संरक्षण आदेश पाने का
- (ख) सेवा प्रदाता की सेवा उपलब्धता
- (ग) संरक्षण अधिकारी की सेवा की उपलब्धता
- (घ) मुफ्त विधिक सहायता प्राप्त करने का
- (ङ) परिवाद-पत्र दाखिल करने का अधिकार प्राप्त है। पर संज्ञेय अपराध के लिए पुलिस को कार्रवाई करने से यह प्रावधान नहीं रोकता है।
धारा 10
[संपादित करें]सेवा प्रदाता, जो नियमतः निबंधित हो, वह भी मजिस्ट्रेट या संरक्षा अधिकारी को घरेलू हिंसा की सूचना दे सकता है।
धारा 12
[संपादित करें]पीड़िता या संरक्षण अधिकारी या अन्य कोई घरेलू हिंसा के बारे में या मुआवजा या नुकासान के लिए मजिस्ट्रेट को आवेदन दे सकता है। इसकी सुनवाई तिथि तीन दिनों के अन्दर की निर्धारित होगी एवं निष्पादन 60दिनों के अन्दर होगा।
धारा 14
[संपादित करें]मजिस्ट्रेट पीड़िता को सेवा प्रदात्ता से परामर्श लेने का निदेश दे सकेगा।
धारा 16
[संपादित करें]पक्षकार ऐसी इच्छा करें तो कार्यवाही बंद कमरे में हो सकेगी।
धारा 17 तथा 18
[संपादित करें]पीड़िता को साझी गृहस्थी में निवास करने का अधिकार होगा और कानूनी प्रक्रिया के अतिरिक्त उसका निष्कासन नहीं किया जा सकेगा। उसके पक्ष में संरक्षण आदेश पारित किया जा सकेगा।
धारा 19
[संपादित करें]पीड़िता को और उसके संतान को संरक्षण प्रदान करते हुए संरक्षण देने का स्थानीय थाना को निर्देश देने के साथ निवास आदेश एवं किसी तरह के भुगतान के संबंध में भी आदेश पारित किया जा सकेगा और सम्पत्ति का कब्जा वापस करने का भी आदेश दिया जा सकेगा।
धारा 20 तथा 22
[संपादित करें]वित्तीय अनुतोष- पीड़िता या उसके संतान को घरेलू हिंसा के बाद किये गये खर्च एवं हानि की पूर्ति के लिए मजिस्ट्रेट निदेश दे सकेगा तथा भरण-पोषण का भी आदेश दे सकेगा एवं प्रतिकर आदेश भी दिया जा सकता है।
धारा 21
[संपादित करें]अभिरक्षा आदेश संतान के संबंध में दे सकेगा या संतान से भेंट करने का भी आदेश मैजिस्ट्रेट दे सकेगा।
धारा 24
[संपादित करें]पक्षकारों को आदेश की प्रति निःशुल्क न्यायालय द्वारा दिया जाएगा।
घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, २००६
[संपादित करें]नियम 9
[संपादित करें]आपातकालीन मामलों में पुलिस की सेवा की मांग संरक्षण अधिकारी या सेवा प्रदाता द्वारा पीड़ित के लिए की जा सकती है।
नियम 13
[संपादित करें]परामर्शदाताओं की नियुक्ति संरक्षण अधिकारी द्वारा उपलब्ध सूची में से की जायेगी।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ (PDF) https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/2021/2/H2005-43.pdf. अभिगमन तिथि 24 August 2024. गायब अथवा खाली
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(मदद) - ↑ "Daughter-in-law's rights under Domestic Violence Act can't be defeated for peace of her elderly in-laws: HC". The Indian Express. 21 March 2024. अभिगमन तिथि 24 August 2024.