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घटोत्कच गुप्त

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(घटोत्कच (राजा) से अनुप्रेषित)
घटोत्कच
द्वितीय गुप्त सम्राट
शासनावधि२८०-३१९ ई.
पूर्ववर्तीश्रीगुप्त
उत्तरवर्तीचंद्रगुप्त प्रथम
संतानचंद्रगुप्त प्रथम
राजवंशगुप्त
पिताश्रीगुप्त
मातारचनादेवी

घटोत्कचगुप्त (280 ई – 319 ई)[1] गुप्तवंश का दूसरा राजा और उस वंश के प्रथम शासक श्रीगुप्त का पुत्र था।[1] स्वयं तो वह केवल 'महाराज' अर्थात् सामंत मात्र था, किंतु उसका पुत्र चंद्रगुप्त प्रथम वंश का प्रथम सम्राट् हुआ।

घटोत्कच (300-319 ई.) गुप्त काल में श्रीगुप्त का पुत्र और उसका उत्तराधिकारी था। लगभग 280 ई. में श्रीगुप्त ने घटोत्कच को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। घटोत्कच तत्सामयिक शक साम्राज्य का सेनापति था। उस समय शक जाति ब्राह्मणों से बलपूर्वक क्षत्रिय बनने को आतुर थी। घटोत्कच ने 'महाराज' की उपाधि को धारण किया था। शक राज परिवार तो क्षत्रियत्व हस्तगत हो चला था, किन्तु साधारण राजकर्मी अपनी क्रूरता के माध्यम से क्षत्रियत्व पाने को इस प्रकार लालायित हो उठे थे, कि उनके अत्याचारों से ब्राह्मण त्रस्त हो उठे।

ब्राह्मणों ने क्षत्रियों की शरण ली, किन्तु वे पहले से ही उनसे रुष्ट थे, जिस कारण ब्राह्मणों की रक्षा न हो सकी।

ठीक इसी जाति-विपणन में पड़कर एक ब्राह्मण की रक्षा हेतु घटोत्कच ने 'कर्ण' और 'सुवर्ण' नामक दो शक मल्लों को मार गिराया।

यह उनका स्पष्ट राजद्रोह था, जिससे शकराज क्रोध से फुँकार उठे और लगा, मानों ब्राह्मण और क्षत्रिय अब इस धरती से उठ जायेंगे। घटोट्कच का शासनकाल चौथी शती के प्रथम और द्वितीय दशकों में रखा जा सकता है। घटोत्कचगुप्त नामक एक शासक की कुछ मुहरें वैशाली से प्राप्त हुई हैं और विसेंट स्मिथ तथा ब्लाख जैसे कुछ विद्वान् इन मुहरों को गुप्तपुत्र घटोत्कचगुप्त का ही मानते हैं। सेंट पीटर्सवर्ग के संग्रह में एक ऐसा सिक्का मिला है, जिस पर एक ओर राजा का नाम 'घटो-गुप्त' तथा दूसरी और 'विक्रमादित्य' की उपाधि अंकित है। प्रसिद्ध मुद्राशास्त्री एलेन ने इस सिक्के का समय ५०० ई. के आसपास निश्चित किया है। इस तथा कुछ अन्य आधारों पर वि. प्र. सिन्हा ने वैशाली की मुहरों तथा उपर्युक्त सिक्केवाले घटोत्कचगुप्त को कुमारगुप्त का एक पुत्र माना है, जिसने उसकी मृत्यु के बाद अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी थी। कुमारगुप्त के जीवित रहते सभवत: यही घटोत्कचगुप्त मध्यप्रदेश के एरण का प्रांतीय शासक था। उसका क्षेत्र वहाँ से ५० मील उत्तर-पश्चिम तुंबवन तक फैला हुआ था, जिसकी एक चर्चा एक गुप्त अभिलेख में हुई है।

घटोत्कच के काल की कुछ मुद्राएँ ऐसी मिली हैं, जिन पर 'श्रीघटोत्कचगुप्तस्य' या केवल 'घट' लिखा है।


‘मधुमती’ नामक क्षत्रिय कन्या से घटोत्कच का पाणिग्रहण (विवाह) हुआ था।

लिच्छिवियों ने घटोत्कच को शरण दी, साथ ही उनके पुत्र चंद्रगुप्त प्रथम के साथ अपनी पुत्री कुमारदेवी का विवाह भी कर दिया।

प्रभावती गुप्त के पूना एवं रिद्धपुर ताम्रपत्र अभिलेखों में घटोच्कच को गुप्त वंश का प्रथम राजा बताया गया है।

इसका राज्य संभवतः मगध के आसपास तक ही सीमित था।

महाराज घटोत्कच ने लगभग 319 ई. तक शासन किया था। इस राजा को पहला शासक माना जाता है

सन्दर्भ

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  1. Mookerji, Radha K. (1995). The Gupta Empire (5th ed.). Motilal Banarsidass. p. 11. ISBN 81-208-0440-6. Archived from the original on 30 जून 2014. Retrieved 30 अक्तूबर 2013. {{cite book}}: Check date values in: |access-date= (help)