ग्रासनाल के रोग
ग्रासनाल (Oesophagus) के रोग निम्नलिखित विशेष रोग हैं:
ग्रसन कष्ट (Dysphagia)
[संपादित करें]जिसके अंतस्थ (intrinsic) और बहिरस्थ (extrinsic) दो प्रकार के कारण होते हैं। अंतस्थ में जन्मजात रचनात्रुटि, शोथ, व्रण, संकट (Stenosis) अर्बुद तथा तंत्रिकाजन्य दशाएँ हो सकती हैं। कैंसर और सारकोमा दोनों ही प्रकार के अर्बुद होते हैं, किंतु कैंसर अधिक होता है। बहिरस्थ कारणों में ग्रासनाल से बाहर के सभी प्रकार के अर्बुदों से ग्रासनाल दब जाता है। अवटुग्रंथि (Thyroid) की वृद्धि, मध्य अंतराल की वर्धित लसाकाग्रंथियाँ, महाधमनी की रोम्यूरिज़्म, परिहृद निस्सारण आदि भी यह दशा उत्पन्न कर सकते हैं। डिफ्थीरिया के कारण तंत्रिकाशोथ तथा पेशीअवसाद (Myasthenia) के ग्रसन कष्ट होता है।
2. ग्रसनाल का शोथ और व्रण तथा व्रण के पश्चात् उत्पन्न हुआ संकट।
3. ग्रासनाल का कैंसर नीचे के तृतीयांश भाग में, मुख में, अधिक होता है। निगलने की कठिनाई धीरे धीरे बढ़ती जाती है। अत: नाल एक पतली नली के समान हो जाती है, जिससे गाढ़ी वस्तु निगलना भी कठिन हो जाता है। बेरियम खिलाकर एक्सरे चित्र लेने से रोगनिदान सहज हो जाता है। सारकोमा भी होता है।
4. हृद्द्वार आकर्ष (Cardiosperm) - हृद्द्वार संवरणों पेशी में बार बार आकर्ष होने से ग्रासनाल का निचला भाग विस्तृत हो जाता है।
5. शिरावृद्धि (Taleugectiosis) - वर्धित शिराओं से रक्तस्त्राव हो सकता है। (मुकुंद स्वरूप वर्मा)