ग्रामीण अर्थव्यवस्था
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ग्रामीण अर्थव्यवस्था किसी देश या क्षेत्र की ग्रामीण इलाकों में होने वाली आर्थिक गतिविधियों और संसाधनों के उत्पादन, वितरण और उपभोग की प्रणाली को कहते हैं। इसमें कृषि, पशुपालन, हस्तशिल्प, लघु उद्योग, और ग्रामीण सेवाएँ शामिल होती हैं।[1]
मुख्य तत्व
[संपादित करें]ग्रामीण अर्थव्यवस्था मुख्यतः निम्नलिखित तत्वों पर आधारित होती है:
- कृषि और बागवानी - अनाज, फलों, सब्जियों और अन्य फसलों का उत्पादन।
- पशुपालन और मत्स्य पालन - मवेशियों, मुर्गियों और मछलियों का पालन।
- हस्तशिल्प और लघु उद्योग - ग्रामीण उद्योग जैसे कुटीर उद्योग, वस्त्र, लकड़ी और मिट्टी के काम।
- ग्रामीण सेवाएँ - स्वास्थ्य, शिक्षा, बैंकिंग, परिवहन और अन्य स्थानीय सेवाएँ।
महत्व
[संपादित करें]ग्रामीण अर्थव्यवस्था का महत्व इस प्रकार है:
- यह ग्रामीण लोगों को रोजगार और आय का स्रोत प्रदान करती है।
- कृषि और अन्य ग्रामीण उद्योग राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है।
- स्थानीय संसाधनों का सतत उपयोग और संरक्षण सुनिश्चित करती है।
चुनौतियाँ
[संपादित करें]- सीमित बाजार और बुनियादी ढांचे की कमी।
- मौसमी कृषि पर निर्भरता और असमान आय वितरण।
- शिक्षा और तकनीकी प्रशिक्षण की कमी।
- पर्यावरणीय दबाव और प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम।
सुधार और विकास
[संपादित करें]सरकार और गैर-सरकारी संस्थाएँ ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास के लिए विभिन्न योजनाएँ और परियोजनाएँ लागू करती हैं, जैसे कृषि तकनीकी प्रशिक्षण, लघु उद्योग विकास, बैंकिंग सुविधा विस्तार और ग्रामीण रोजगार योजनाएँ।
संबंधित विषय
[संपादित करें]संदर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Rural economy | International Labour Organization". www.ilo.org (अंग्रेज़ी भाषा में). 5 अगस्त 2025. अभिगमन तिथि: 2 अक्टूबर 2025.