गोलाध्याय

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गोलाध्याय, भास्कराचार्य द्वारा रचित ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि के चार भागों में से एक भाग है। अन्य तीन भाग लीलावती, बीजगणित, तथा ग्रहगणित हैं।[1]

इसमें चक्रवाल गणित का एक प्रश्न देखिए-

का सप्तषष्टिगुणिताकृतिरेकयुक्ता
का चैकष्टि गुणिता च सखे सरूपा ।
स्यानमूलता यदि कृतिप्रकृतिर्नितान्तं
त्नच्चेतसि प्रवद तात तता लतावत् ॥
(तात्पर्य है कि वह कौन सा वर्ग है जिसे ६७ से गुणा कर उसमें १ का वर्ग जोड़ दें, अथवा वह कौन सा वर्ग है जिसे ६१ से गुणा करके १ का वर्ग जोड़ देंने से प्राप्त अंक पूर्ण वर्ग हो जाता है (या उसका निरवयव वर्गमूल मिल जाता है।)।

वर्ण्य विषय[संपादित करें]

इसमें १३ अध्याय हैं जिनमें निम्नलिखित विषयों का समावेश है-

  • गोले के अध्ययन की प्रशंसा (गोलप्रशंसाध्यायः ; श्लोक २-४)
  • गोले की प्रकृति (गोलस्वरूपप्रश्नाध्यायः)
  • ब्रह्माण्ड तथा भूगोल (भुवनकोशाध्यायः)
  • ग्रहों की माध्य गति (मध्यगतिवासनाध्यायः)
  • ग्रहों की गति का Eccentric epicyclic model (छेद्यकाधिकारः)
  • The armillary sphere (ज्योत्पत्तिवासनाध्यायः)
  • गोलीय त्रिकोणमिति (गोलबन्धाधिकारः)
  • दीर्घवृत्त से सम्बन्धित गणनाएँ (त्रिप्रश्नवासनाध्यायः)
  • ग्रहों की प्रथम बार दर्शन (ग्रहणवासनाध्यायः तथा उदयास्तवासनाध्यायः)
  • चान्द्र दर्शन की गणना (lunar crescent ; शृङ्गोन्नतिवासनाध्यायः)
  • खगोलीय उपकरण (यन्त्राध्यायः)
  • ऋतुएँ (ऋतुवर्णनाध्यायः)
  • खगोलीय गणना सम्बन्धी प्रश्न (प्रश्नाध्यायः)

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. दिनकर जोशी (२००५). Glimpses of Indian Culture [भारतीय संस्कृति की झलक] (अंग्रेज़ी में). स्टार पब्लिकेशन. पृ॰ ७१-७२. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788176501903.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]